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Table:
विषय प्रश्नों की संख्या मनोविज्ञान 30 हिंदी 30 संस्कृत 30 गणित & विज्ञान 60 कुल 150
: REET, Level 2, गणित & विज्ञान, Free Test Series, 2025, Important Questions, मनोविज्ञान, हिंदी, संस्कृत, Model Paper, Practice, Success.
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35
Model Paper 2: REET लेवल 2nd गणित विज्ञान | Full Length Test 150 प्रश्न | भाषा: हिंदी | संस्कृत
6 / 150
Solution
• मैस्लो ने दो प्रकार के अभिप्रेरक बताए –
1. जन्मजात अभिप्रेरक
2. अर्जित अभिप्रेरक
• जन्मजात अभिप्रेरक :- ऐसा प्रेरक जो अनिवार्य आवश्यकताओं को प्रेरित करता है, प्राथमिक प्रेरक/जन्मजात प्रेरक कहलाता है।
जैसे – भूख, प्यास, नींद, काम आदि।
• अर्जित प्रेरक– वे प्रेरक जो बाह्य सामाजिक वातावरण से प्राप्त किए जाते हैं, इन प्रेरकों के समय व्यक्ति अनिवार्य रूप से प्रेरित नहीं होता।
जैसे- पद, प्रतिष्ठा, पुरस्कार, उपलब्धि, प्रशंसा, दण्ड, सम्बन्ध, सत्ता, अनुमोदन, शक्ति आदि।
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35. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न का उत्तर दीजिए :
स्वावलंबन सफलता की कुंजी है। स्वावलंबी व्यक्ति जीवन में यश और धन दोनों अर्जित करता है। दूसरे के सहारे जीने वाला व्यक्ति तिरस्कार का पात्र बनता है। निरंतर निरादर और तिरस्कार पाता हुआ वह अपने आप में हीन-भावना से ग्रस्त होने लगता है। जीवन का यह तथ्य व्यक्ति के जीवन पर ही नहीं, वरन जातीय व राष्ट्र पर भी लागू होता है। यही कारण है कि स्वाधीनता संघर्ष के दौरान गाँधीजी ने देशवासियों में जातीय गौरव का भाव जगाने हेतु स्वावलंबन का संदेश दिया था। चरखा-आंदोलन और डांडी कूच इस दिशा में गाँधीजी के बड़े प्रभावी कदम सिद्ध हुए। स्वावलंबन के मार्ग पर चलकर ही व्यक्ति, जाति, समाज अथवा राष्ट्र उत्कर्ष को प्राप्त होते हैं।
‘दूसरे के सहारे जीने वाला व्यक्ति तिरस्कार का पात्र बनता है।‘ रेखांकित पद में संज्ञा का प्रकार है–
Solution
‘दूसरे के सहारे जीने वाला व्यक्ति तिरस्कार का पात्र बनता है।‘ रेखांकित पद ‘व्यक्ति’ जातिवाचक संज्ञा का उदाहरण है।
जिन संज्ञाओं में एक जाति के अन्तर्गत आने वाले सभी व्यक्तियों, वस्तुओं, स्थानों के नामों का बोध होता है, जातिवाचक संज्ञा कहलाती है; जैसे–
पशु-पक्षियों की जाति– तोता, चिड़िया, कबूतर इत्यादि।
पेड़ों एवं फलों की जाति – आम, पपीता, केला, पीपल इत्यादि।
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36. निर्देश– गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
राष्ट्रीय एकता का अर्थ यह है कि देश के सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी संप्रदाय, जाति, धर्म, भाषा अथवा क्षेत्र से संबंधित हों, इन सब सीमाओं से ऊपर उठकर इस समूचे देश के प्रति वफादार और आत्मीयतापूर्ण हों। इसके लिए यदि उनको अपने निजी स्वार्थ अथवा समूह के स्वार्थ का भी त्याग करना पड़े तो उसके लिए उन्हें तैयार रहना चाहिए और उनके लिए देश का हित सर्वोपरि होना चाहिए। किंतु कभी-कभी तो लगता है कि देश की स्वतंत्रता के बाद हम राष्ट्रीय एकता से विमुख होकर राष्ट्रीय विघटन की ओर अग्रसर हो रहे हैं। स्वतंत्रता के पहले गाँधीजी के नेतृत्व में पूरा देश एक होकर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध लड़ा था। परंतु उसके बाद पुन: हम धर्म, भाषा, क्षेत्रीयता के नाम से आपसी झगड़ों में उलझ गए हैं। कई बार ऐसा लगता है कि हमारे देश में असमिया, बंगाली, पंजाबी, मराठा, मद्रासी इत्यादि तो हैं, पर भारतीय बिरले ही हैं। हमारा देश प्राचीन काल से ही विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, विचारधाराओं तथा परंपराओं का समन्वय-स्थल रहा है परंतु आधुनिक काल में जब से विभिन्न धर्मों और संप्रदायों में अलगाव होने लगा, पारस्परिक द्वेष, घृणा और संघर्ष बढ़ने लगा, तभी राष्ट्र प्रत्येक दृष्टि से कमजोर होने लगा। राजनीतिक दल इस पारस्परिक तनाव का लाभ उठाकर राजनीतिक स्वार्थ पूरा करने लगे। इसीलिए नेहरु जी ने कहा था, "मैं सांप्रदायिकता को देश का सबसे बड़ा शत्रु मानता हूँ।"
‘स्वार्थ ’ शब्द में वचन का प्रकार है–
Solution
‘स्वार्थ’ एकवचन शब्द है।
एकवचन– संज्ञा के जिस रूप के द्वारा एक संख्या का बोध हो, एकवचन कहलाता है; जैसे– पुस्तक, तोता, लड़की, पेंसिल, गाय, बकरी इत्यादि।
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37. निर्देश– गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
राष्ट्रीय एकता का अर्थ यह है कि देश के सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी संप्रदाय, जाति, धर्म, भाषा अथवा क्षेत्र से संबंधित हों, इन सब सीमाओं से ऊपर उठकर इस समूचे देश के प्रति वफादार और आत्मीयतापूर्ण हों। इसके लिए यदि उनको अपने निजी स्वार्थ अथवा समूह के स्वार्थ का भी त्याग करना पड़े तो उसके लिए उन्हें तैयार रहना चाहिए और उनके लिए देश का हित सर्वोपरि होना चाहिए। किंतु कभी-कभी तो लगता है कि देश की स्वतंत्रता के बाद हम राष्ट्रीय एकता से विमुख होकर राष्ट्रीय विघटन की ओर अग्रसर हो रहे हैं। स्वतंत्रता के पहले गाँधीजी के नेतृत्व में पूरा देश एक होकर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध लड़ा था। परंतु उसके बाद पुन: हम धर्म, भाषा, क्षेत्रीयता के नाम से आपसी झगड़ों में उलझ गए हैं। कई बार ऐसा लगता है कि हमारे देश में असमिया, बंगाली, पंजाबी, मराठा, मद्रासी इत्यादि तो हैं, पर भारतीय बिरले ही हैं। हमारा देश प्राचीन काल से ही विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, विचारधाराओं तथा परंपराओं का समन्वय-स्थल रहा है परंतु आधुनिक काल में जब से विभिन्न धर्मों और संप्रदायों में अलगाव होने लगा, पारस्परिक द्वेष, घृणा और संघर्ष बढ़ने लगा, तभी राष्ट्र प्रत्येक दृष्टि से कमजोर होने लगा। राजनीतिक दल इस पारस्परिक तनाव का लाभ उठाकर राजनीतिक स्वार्थ पूरा करने लगे। इसीलिए नेहरु जी ने कहा था, "मैं सांप्रदायिकता को देश का सबसे बड़ा शत्रु मानता हूँ।"
‘भाषा’ शब्द में लिंग का प्रकार है–
Solution
‘भाषा’ स्त्रीलिंग शब्द है।
स्त्रीलिंग– शब्द के जिस रूप के द्वारा स्त्री जाति के होने का बोध हो, स्त्रीलिंग कहलाता है; जैसे– घोड़ी, बकरी, माता, बालिका, पेंसिल, कुर्सी इत्यादि।
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38. निर्देश– गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
राष्ट्रीय एकता का अर्थ यह है कि देश के सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी संप्रदाय, जाति, धर्म, भाषा अथवा क्षेत्र से संबंधित हों, इन सब सीमाओं से ऊपर उठकर इस समूचे देश के प्रति वफादार और आत्मीयतापूर्ण हों। इसके लिए यदि उनको अपने निजी स्वार्थ अथवा समूह के स्वार्थ का भी त्याग करना पड़े तो उसके लिए उन्हें तैयार रहना चाहिए और उनके लिए देश का हित सर्वोपरि होना चाहिए। किंतु कभी-कभी तो लगता है कि देश की स्वतंत्रता के बाद हम राष्ट्रीय एकता से विमुख होकर राष्ट्रीय विघटन की ओर अग्रसर हो रहे हैं। स्वतंत्रता के पहले गाँधीजी के नेतृत्व में पूरा देश एक होकर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध लड़ा था। परंतु उसके बाद पुन: हम धर्म, भाषा, क्षेत्रीयता के नाम से आपसी झगड़ों में उलझ गए हैं। कई बार ऐसा लगता है कि हमारे देश में असमिया, बंगाली, पंजाबी, मराठा, मद्रासी इत्यादि तो हैं, पर भारतीय बिरले ही हैं। हमारा देश प्राचीन काल से ही विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, विचारधाराओं तथा परंपराओं का समन्वय-स्थल रहा है परंतु आधुनिक काल में जब से विभिन्न धर्मों और संप्रदायों में अलगाव होने लगा, पारस्परिक द्वेष, घृणा और संघर्ष बढ़ने लगा, तभी राष्ट्र प्रत्येक दृष्टि से कमजोर होने लगा। राजनीतिक दल इस पारस्परिक तनाव का लाभ उठाकर राजनीतिक स्वार्थ पूरा करने लगे। इसीलिए नेहरु जी ने कहा था, "मैं सांप्रदायिकता को देश का सबसे बड़ा शत्रु मानता हूँ।"
"देश का हित सर्वोपरि होना चाहिए।" कथन का तात्पर्य है–
Solution
देश का हित सर्वोपरि होना चाहिए– स्वार्थ त्यागकर देश के लिए हित की चिंता।
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42. निर्देश– गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
राष्ट्रीय एकता का अर्थ यह है कि देश के सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी संप्रदाय, जाति, धर्म, भाषा अथवा क्षेत्र से संबंधित हों, इन सब सीमाओं से ऊपर उठकर इस समूचे देश के प्रति वफादार और आत्मीयतापूर्ण हों। इसके लिए यदि उनको अपने निजी स्वार्थ अथवा समूह के स्वार्थ का भी त्याग करना पड़े तो उसके लिए उन्हें तैयार रहना चाहिए और उनके लिए देश का हित सर्वोपरि होना चाहिए। किंतु कभी-कभी तो लगता है कि देश की स्वतंत्रता के बाद हम राष्ट्रीय एकता से विमुख होकर राष्ट्रीय विघटन की ओर अग्रसर हो रहे हैं। स्वतंत्रता के पहले गाँधीजी के नेतृत्व में पूरा देश एक होकर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध लड़ा था। परंतु उसके बाद पुन: हम धर्म, भाषा, क्षेत्रीयता के नाम से आपसी झगड़ों में उलझ गए हैं। कई बार ऐसा लगता है कि हमारे देश में असमिया, बंगाली, पंजाबी, मराठा, मद्रासी इत्यादि तो हैं, पर भारतीय बिरले ही हैं। हमारा देश प्राचीन काल से ही विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, विचारधाराओं तथा परंपराओं का समन्वय-स्थल रहा है परंतु आधुनिक काल में जब से विभिन्न धर्मों और संप्रदायों में अलगाव होने लगा, पारस्परिक द्वेष, घृणा और संघर्ष बढ़ने लगा, तभी राष्ट्र प्रत्येक दृष्टि से कमजोर होने लगा। राजनीतिक दल इस पारस्परिक तनाव का लाभ उठाकर राजनीतिक स्वार्थ पूरा करने लगे। इसीलिए नेहरु जी ने कहा था, "मैं सांप्रदायिकता को देश का सबसे बड़ा शत्रु मानता हूँ।"
‘गाँधीजी के नेतृत्व में पूरा देश एक होकर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध लड़ा था।’ वाक्य में प्रयुक्त काल है–
Solution
‘गाँधीजी के नेतृत्व में पूरा देश एक होकर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध लड़ा था।’ वाक्य पूर्ण भूतकाल का उदाहरण है।
पूर्ण भूतकाल– पूर्ण भूतकाल की क्रिया की समाप्ति के समय का स्पष्ट बोध होता है कि क्रिया को समाप्त हुए काफी समय बीत चुका है।
वाक्य में प्रयुक्त क्रिया के जिस रूप से यह विदित होता हो कि क्रिया बहुत पहले पूर्ण हो चुकी है तो वहाँ पूर्ण भूतकाल होता है।
पहचान– या था, आ था, ई थी, ए थे से क्रिया का अंत होता है; जैसे–मैंने आम खाया था।
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Solution
जिया चुपके-चुपके सुन रही थी।– वाक्य रीतिवाचक क्रिया-विशेषण का उदाहरण है।
वे अव्यय शब्द जो क्रिया के होने की रीति या ढंग का बोध कराते हैं, उन्हें ‘रीतिबोधक क्रियाविशेषण’ कहते हैं; जैसे– धीरे-धीरे, सहसा, शीघ्र, तेज, मीठा, शायद, मानो, ऐसे, अचानक, स्वयं, यथाशक्ति, नि:सन्देह, अकस्मात्, रीत्यनुसार, तेज-तेज, फटाफट, अच्छी तरह, ध्यानपूर्वक, तेजी से, एकसाथ, एकाएक, गटागट, धड़ाधड़, होले-होले, खटाखट, सटासट, भलि-भाँति इत्यादि।
रीतिबोधक क्रिया विशेषण की पहचान के लिए वाक्य में प्रयुक्त क्रिया के साथ 'कैसे/कैसा/कैसी' से प्रश्न करना चाहिए। शेर धीरे-धीरे आगे बढ़ता है। वह फटाफट खाता है।
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Solution
ब्राह्मण– भूमिसर, भूमिदेव, द्विज, महीदेव, भूदेव इत्यादि।
धरती– भू, भूमि, धरा, धरणी, धरती, वसुधा इत्यादि।
पवन– वात, वायु, हवा, समीर, अनिल इत्यादि।
रात्रि– रात, निशा, यामिनी, विभावरी इत्यादि।
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61. वर्षागमे चारुमरुं विहाय क्वान्यत्र कस्यापि रमेत चित्तम्।
सर: सु वर्षासमयेऽपि यस्मिन् शरत्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति।।
‘वर्षागमे चारुमरं विहाय’ इति पद्यांशे क: छन्द:?
Solution
● वर्षागमे चारुमरं विहाय इसमें इन्द्रवज्रा छन्द प्रयुक्त हुआ है।
इन्द्रवज्रा छन्द
लक्षण:- ‘स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः।
•अर्थात् - इस छन्द के प्रत्येक पाद में कुल 11 वर्ण होते हैं। ये वर्ण क्रमश: तगण, तगण, जगण, दो गुरु के रूप में होते हैं।
वसन्ततिलका
लक्षण:- उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ गः
•अर्थात् - इस छन्द के प्रत्येक पाद में 14 वर्ण होते हैं। ये वर्ण क्रमश: तगण, भगण, जगण, जगण और 2 गुरु के रूप में होते हैं।
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65. वर्षागमे चारुमरुं विहाय क्वान्यत्र कस्यापि रमेत चित्तम्।
सर: सु वर्षासमयेऽपि यस्मिन् शरत्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति।।
‘कस्यापि’ इति पदस्य सन्धिविच्छेद: क:?
Solution
● कस्यापि = कस्य + अपि। इसमें दीर्घ सन्धि प्रयुक्त हुई है।
सूत्र - "अकः सवर्णे दीर्घः’
·इस सूत्र के अनुसार अक् (अ, इ, उ, ऋ, लृ) से परे उनका सवर्ण स्वर आए तो दोनों के स्थान पर सवर्ण दीर्घ स्वर हो जाता है, अर्थात् अ/आ के बाद अ/आ आने पर दोनों को आ होता है, इ/ई के बाद इ/ई आने पर दोनों को ई होता है, उ/ऊ के आने पर दोनों को ऊ होता है, ऋ/ऋ के बाद ऋ/ऋ आने पर दोनों को ऋ होता है।
66 / 150
66. इह खलु पञ्चेन्द्रियाणि, पञ्चेन्द्रियद्रव्याणि, पञ्चेन्द्रियार्थाः च भवन्ति। तत्र चक्षुः श्रोत्रं घ्राणं जिह्वा त्वक् च इति पञ्चेन्द्रियाणि। पञ्चेन्द्रियाणि। पञ्चेन्द्रियद्रव्याणि खं वायुः ज्योतिः आपो भूः इति। पञ्चेन्द्रियार्थाः शब्दस्पर्शरूपरसगन्धाः मनः पुनः सराणि च इन्द्रियाणि अर्थसंग्रहसमर्थानि भवन्ति। न इन्द्रियवशगः स्यात्। न चञ्चल मनः अनुभ्रामयेत्। गुरु-वृद्ध-आचार्यान् अर्चयेत्। मूर्ध-श्रोत्र घ्राण-पाद-तैलनित्यः स्यात्। अतिथीनां पूजकः स्यात्। काले हित-मित-मधुरार्थवादी स्यात्। वश्यात्मा, महोत्साहः, विनयबुद्धिः निर्भीकिः, क्षमावान्, सर्वप्राणिषु बन्धुभूतः स्यात्। न अनृत ब्रूयान्। न अति ब्रूयात्। न अन्यस्वम् आहरेत्। न वैर रोचयेत्। न कुर्यात् पापम् न पापेऽपि। पापी स्यात्। न अन्यदोषान् ब्रूयात्। न अन्यरहस्याम् आगमेयत्। अधार्मिकैः न दुष्टैः सह आसीत्। न नासिका कुष्णीयात्। न दन्तान् विघट्टयेत् न नासिका कुष्णीयात्। न दन्तान् विघट्येत्। न भूमि विलिखेत्। न दुष्टयानानि आरोहेत्। न द्रुमम् आरोहेत्। तृणम्। न दुष्टयानानि आरोहेत्। न द्रुमम् आरोहेत्। न जलोग्रवेगम् अवगाहेत्। न अदेशे, न अकाले, न कुत्सयन, न प्रतिकूलोपहितम्, न पर्यषितम्, अत्रम् खादेत्। न नक्तं दधि भुञ्जीत। न कञ्चिद् अवजानीयात्। न वेगान् धारयेत्। न अहंमानी स्यात्। न नियमं भिन्द्यात्। न कार्यकालम् अतिपातयेत्। न अपरीक्षितम् अभिनिविशेत्। न च अतिदीर्घसूत्री स्यात्। न सिद्धौ उत्सेक गच्छेत न असिद्धौ दैन्यम्।
‘गच्छेत’ इतिपदं कस्मिन् लकारे प्रयुक्तमस्ति?
Solution
● गच्छेत पद गम् धातु विधिलिङ्ग लकार प्रथम पुरुष एकवचन का रूप है।
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67. इह खलु पञ्चेन्द्रियाणि, पञ्चेन्द्रियद्रव्याणि, पञ्चेन्द्रियार्थाः च भवन्ति। तत्र चक्षुः श्रोत्रं घ्राणं जिह्वा त्वक् च इति पञ्चेन्द्रियाणि। पञ्चेन्द्रियाणि। पञ्चेन्द्रियद्रव्याणि खं वायुः ज्योतिः आपो भूः इति। पञ्चेन्द्रियार्थाः शब्दस्पर्शरूपरसगन्धाः मनः पुनः सराणि च इन्द्रियाणि अर्थसंग्रहसमर्थानि भवन्ति। न इन्द्रियवशगः स्यात्। न चञ्चल मनः अनुभ्रामयेत्। गुरु-वृद्ध-आचार्यान् अर्चयेत्। मूर्ध-श्रोत्र घ्राण-पाद-तैलनित्यः स्यात्। अतिथीनां पूजकः स्यात्। काले हित-मित-मधुरार्थवादी स्यात्। वश्यात्मा, महोत्साहः, विनयबुद्धिः निर्भीकिः, क्षमावान्, सर्वप्राणिषु बन्धुभूतः स्यात्। न अनृत ब्रूयान्। न अति ब्रूयात्। न अन्यस्वम् आहरेत्। न वैर रोचयेत्। न कुर्यात् पापम् न पापेऽपि। पापी स्यात्। न अन्यदोषान् ब्रूयात्। न अन्यरहस्याम् आगमेयत्। अधार्मिकैः न दुष्टैः सह आसीत्। न नासिका कुष्णीयात्। न दन्तान् विघट्टयेत् न नासिका कुष्णीयात्। न दन्तान् विघट्येत्। न भूमि विलिखेत्। न दुष्टयानानि आरोहेत्। न द्रुमम् आरोहेत्। तृणम्। न दुष्टयानानि आरोहेत्। न द्रुमम् आरोहेत्। न जलोग्रवेगम् अवगाहेत्। न अदेशे, न अकाले, न कुत्सयन, न प्रतिकूलोपहितम्, न पर्यषितम्, अत्रम् खादेत्। न नक्तं दधि भुञ्जीत। न कञ्चिद् अवजानीयात्। न वेगान् धारयेत्। न अहंमानी स्यात्। न नियमं भिन्द्यात्। न कार्यकालम् अतिपातयेत्। न अपरीक्षितम् अभिनिविशेत्। न च अतिदीर्घसूत्री स्यात्। न सिद्धौ उत्सेक गच्छेत न असिद्धौ दैन्यम्।
‘क्षमावान्’ इत्यत्र क: प्रत्यय:?
Solution
● क्षमावान् पद में मतुप् प्रत्यय है। मतुप् प्रत्यय
● ‘अ’ या ‘आ’ जिनके अन्त में होता है, उन शब्दों में ‘मतुप्’ प्रत्यय लगाने पर ‘म’ का ‘व’ हो जाता है।
● इसके रूप क्रमश: मान्, मती, मत् अथवा वान्, वती, वत् के रूप में दिखते हैं।
● मतुप् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिङ्गों में चलते हैं।
● मतुप् प्रत्यय मत्वर्थीय प्रकरण का प्रत्यय है।
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68. इह खलु पञ्चेन्द्रियाणि, पञ्चेन्द्रियद्रव्याणि, पञ्चेन्द्रियार्थाः च भवन्ति। तत्र चक्षुः श्रोत्रं घ्राणं जिह्वा त्वक् च इति पञ्चेन्द्रियाणि। पञ्चेन्द्रियाणि। पञ्चेन्द्रियद्रव्याणि खं वायुः ज्योतिः आपो भूः इति। पञ्चेन्द्रियार्थाः शब्दस्पर्शरूपरसगन्धाः मनः पुनः सराणि च इन्द्रियाणि अर्थसंग्रहसमर्थानि भवन्ति। न इन्द्रियवशगः स्यात्। न चञ्चल मनः अनुभ्रामयेत्। गुरु-वृद्ध-आचार्यान् अर्चयेत्। मूर्ध-श्रोत्र घ्राण-पाद-तैलनित्यः स्यात्। अतिथीनां पूजकः स्यात्। काले हित-मित-मधुरार्थवादी स्यात्। वश्यात्मा, महोत्साहः, विनयबुद्धिः निर्भीकिः, क्षमावान्, सर्वप्राणिषु बन्धुभूतः स्यात्। न अनृत ब्रूयान्। न अति ब्रूयात्। न अन्यस्वम् आहरेत्। न वैर रोचयेत्। न कुर्यात् पापम् न पापेऽपि। पापी स्यात्। न अन्यदोषान् ब्रूयात्। न अन्यरहस्याम् आगमेयत्। अधार्मिकैः न दुष्टैः सह आसीत्। न नासिका कुष्णीयात्। न दन्तान् विघट्टयेत् न नासिका कुष्णीयात्। न दन्तान् विघट्येत्। न भूमि विलिखेत्। न दुष्टयानानि आरोहेत्। न द्रुमम् आरोहेत्। तृणम्। न दुष्टयानानि आरोहेत्। न द्रुमम् आरोहेत्। न जलोग्रवेगम् अवगाहेत्। न अदेशे, न अकाले, न कुत्सयन, न प्रतिकूलोपहितम्, न पर्यषितम्, अत्रम् खादेत्। न नक्तं दधि भुञ्जीत। न कञ्चिद् अवजानीयात्। न वेगान् धारयेत्। न अहंमानी स्यात्। न नियमं भिन्द्यात्। न कार्यकालम् अतिपातयेत्। न अपरीक्षितम् अभिनिविशेत्। न च अतिदीर्घसूत्री स्यात्। न सिद्धौ उत्सेक गच्छेत न असिद्धौ दैन्यम्।
‘गुरुवृद्धाचार्यान्’ इति पदे क: समास:?
Solution
● गुरुवृद्धाचार्यान् = गुरुश्च वृद्धश्च आचार्यश्च। यहाँ द्वन्द्व समास प्रयुक्त हुआ है।
● प्रायेण उभयपदार्थ प्रधान: द्वन्द्व: पञ्चम: अर्थात् द्वन्द्व समास उभयपदार्थप्रधान होता है अर्थात् जितना पूर्वपद प्रधान होता है, उतना ही उत्तरपदप्रधान होता है।
131 / 150
131. यदि x, y और z क्रमश: आँकड़ों 7, 5, 11, 2, 3, 20, 16, 23, 29, 23 के माध्यक, बहुलक और परिसर है, तो (4x + y – z) का मान क्या है?
Solution
132 / 150
132. किसी परिवार द्वारा विभिन्न मदों पर किए गए मासिक व्यय को सारणी में दर्शाया गया हैं –
यदि शिक्षा तथा यात्रा पर खर्च का अन्तर 4000 रुपए है तो परिवार की कुल आय कितनी है?
Solution
प्रश्नानुसार,
25% – 15% = 4000 रुपए
Þ 10% = 4000 रुपए
अत: कुल आय = \(\frac{4000}{10}\)×100=40,000 रुपए
142 / 150
Solution
घन की भुजा = a
गोले का व्यास = a
गोले की त्रिज्या =
घन का आयतन : गोले का आयतन
143 / 150
143. यदि a = 12, b = –7 तथा c = –5 हो, तो a3 + b3 + c3 का मान होगा-
Solution
यहाँ a + b + c = 12 + (–7) + (–5)
= 12 – 7 – 5
= 0
अत: a3 + b3 + c3 = 3abc
= 3 × (12) × (–7) × (–5)
= 1260
144 / 150
144. x2 – y2 + x + y – z2 + 2yz – z का एक गुणनखण्ड है।
Solution
x2 – y2 + x + y – z2 + 2yz – z
Þ x2 – y2 – z2 + 2yz + x + y – z
Þ x2 – (y2 + z2 – 2yz) + x + y – z
Þ x2 – (y – z)2 + x + y – z
∵ a2 – b2 = (a + b) (a – b)
Þ [x + (y – z)] [x – (y – z)] + (x + y – z)
Þ (x + y – z) (x – y + z) + (x + y – z)
Þ (x + y – z) [(x – y + z) + 1]
Þ (x + y – z) (x – y + z + 1)
145 / 150
145. यदि △ ">△ △ ABC में AB = BC,∠ ">∠ ∠ B = 80° तथा ∠ ">∠ ∠ A = x° हो तो (3x – 20)° का मान है-
Solution
DABC एक समद्विबाहु है जिसमें भुजा AB = BC
ÐC = ÐA {∵ समान भुजाओं के सम्मुख कोण}
Þ ÐC = x
∵ त्रिभुज के तीनों कोणों का योग = 180°
Þ x + 80° + x = 180°
Þ 2x = 100°
Þ x = 50°
अत: (3x – 20)°
= 3 × 50° – 20°
= 150° – 20° = 130°
146 / 150
Solution
वर्ग की सभी भुजाएँ बराबर होती है।
भुजा PQ = भुजा QR
Þ 2x + 3 = x + 9
Þ 2x – x = 9 – 3
Þ x = 6
भुजा PQ = 2x + 3 = 2 × 6 + 3 = 15 सेमी.
अत: वर्ग PQRS का क्षेत्रफल = (भुजा)2
= (15)2 = 225 वर्ग सेमी.
149 / 150
149. दिए गए चित्र में यदि O वृत्त का केन्द्र है, तो x और y के बीच सम्बन्ध होगा-
Solution
ABCD एक चक्रीय चतुर्भुज है।
ÐADC = 180° – y …… (i) (∵ चक्रीय चतुर्भुज में सम्मुख कोणों का योग 180° होता है।)
वृत्त के किसी चाप द्वारा केन्द्र पर बनाया गया कोण उसी चाप द्वारा शेष परिधि पर बनाए गए कोण का दुगुना होता है। अत:
ÐAOC = 2ÐADC
Þ ÐAOC = 2(180° – y) {∵ समीकरण (i) से}
Þ x = 360° – 2y
Þ x + 2y = 360°
150 / 150
Solution
घन का आयतन = a3
नए घन का आयतन = घन –(1) का आयतन + घन –(2) का आयतन + घन –(3) का आयतन
a3 = \(a_{1}^{3}+a_{2}^{3}+a_{3}^{3}\)
Þ a3 = (3)3 + (4)3 + (5)3
Þ a3 = 27 + 64 + 125
Þ a3 = 216
Þ a3 = 63
Þ a = 6 सेमी.
अत: नए घन की भुजा a = 6 सेमी.
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