Model Paper 1: REET Level 2nd SST फ्री टेस्ट सीरीज 2025 | महत्वपूर्ण प्रश्न |

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REET Level 2nd SST की तैयारी के लिए सर्वश्रेष्ठ फ्री टेस्ट सीरीज 2025 में शामिल हों। इस मॉडल पेपर 1 में मनोविज्ञान, हिंदी, संस्कृत और सामाजिक विज्ञान के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं। अपनी तैयारी को परखें और REET परीक्षा में सफलता प्राप्त करें।

विषयवार प्रश्न संख्या:

विषयप्रश्न संख्या
मनोविज्ञान30
हिंदी30
संस्कृत30
सामाजिक विज्ञान60
कुल150

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Model Paper 1: REET लेवल 2nd SST | Full Length Test 150 प्रश्न | भाषा: हिंदी | संस्कृत

Model Paper 1: REET लेवल 2nd SST | Full Length Test 150 प्रश्न | भाषा: हिंदी | संस्कृत

🔴महत्वपूर्ण निर्देश 🔴

✅ टेस्ट शुरू करने से पहले कृपया सही जानकारी भरे |
✅ सभी प्रश्नों को आराम से पढ़कर उत्तर दे |
✅सभी प्रश्नों का उत्तर टेस्ट पूर्ण करने पर दिखाई देगा |
✅ टेस्ट पूर्ण करने पर सभी प्रश्नों के उत्तर विस्तार से समझाया गया है |

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13. निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए–

रामस्नेही संप्रदाय की पीठ संस्थापक
A शाहपुरा 1 हरिरामदास जी
B रैण 2 रामदास जी
C खेड़ापा 3 दरियावजी
D सिंहथल 4 रामचरण जी

कूट–

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23. सूची-I को सूची-II के साथ सुमेलित कीजिए-

सूची-I सूची-II
(हवाई अड्‌डा) (संबंधित जिला)
(A) रातानाडा हवाई अड्‌डा 1. उदयपुर
(B) सांगानेर हवाई अड्‌डा 2. जयपुर
(C) महाराणा प्रताप हवाई अड्‌डा 3. अजमेर
(D) किशनगढ़ हवाई अड्‌डा 4. जोधपुर

कूट:-

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27. निम्नलिखित में से कौन राज्य स्थायी कार्यपालिका में शामिल है?

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28. श्री भजनलाल शर्मा व्यक्ति क्रम के अनुसार राजस्थान के मुख्यमंत्री है–

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29. राज्य विधानसभा का नेता कौन होता है? (निम्न में से सबसे उपयुक्त विकल्प चुनें)

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30. निम्नलिखित में से राजस्थान राज्य की प्रथम महिला राज्यपाल (गवर्नर) कौन थी?

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31. श्री हरिभाऊ किसनराव बागड़े का  पद है–
(निम्नलिखित में से सबसे उपयुक्त विकल्प चुनें)

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32. भारत में मतदान के दौरान मतदान केन्द्र पर 'मतदाता रजिस्टर' का प्रभारी कौन होता है?

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33. सेवानिवृत्त होने के पश्चात उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश वकालत कर सकते हैं–

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34. भारत के उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित में से किस निर्णय में कहा है कि प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है?

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35. निम्नलिखित में से किस महिला सदस्य को संविधान सभा की पहली समिति में सम्मिलित किया गया था?

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36. किस शासन प्रणाली में कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है?(निम्न में से सबसे उपयुक्त विकल्प चुनें)

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37. 86वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा 'शिक्षा के अधिकार' को किस मौलिक अधिकार का भाग बनाया है?

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48. निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए-

खेती का नाम

खेती

A.

विटीकल्चर

1.

मत्स्य पालन

B.

एपीकल्चर

2.

रेशम कीट पालन

C.

सेरीकल्चर

3.

मधुमक्खी पालन

D.

पीसीकल्चर

4.

अंगूर की खेती

नीचे दिए गए कूट से सही उत्तर का चयन कीजिए-

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69. 5.20 कृते संस्कृतपदं वर्तते -

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81. “अर्थो हि कन्यापरकीय एव
तामद्य संप्रेष्य परिग्रहीतुः ।
जातोममायं विशदः प्रकामं
प्रत्यर्पितन्यास इवान्तरात्मा ।।”

‘परिग्रहीतुः' पदे उपसर्गः अस्ति-

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82. “अर्थो हि कन्यापरकीय

एव तामद्य संप्रेष्य परिग्रहीतुः ।

जातोममायं विशदः प्रकामं

प्रत्यर्पितन्यास इवान्तरात्मा ।।”

‘आत्मा' शब्दे लिङ्गः अस्ति–

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83. “अर्थो हि कन्यापरकीय एव

तामद्य संप्रेष्य परिग्रहीतुः ।

जातोममायं विशदः प्रकामं

प्रत्यर्पितन्यास इवान्तरात्मा ।।”

‘इवान्तरात्मा' पदस्य सन्धिविच्छेदं कुरु?

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84. भ्रष्टाचारः न केवलं भारतस्य अपितु अखिलस्यापि विश्वस्य ज्वलन्ता समस्या अस्ति। 'भ्रष्टाचारः' इति नाम श्रुत्वैव जनानां मनस्सु नैकविधानि विचाराणि समुत्पद्यन्ते, किन्तु विचाराणि यथा आगच्छन्ति तथैव यान्ति च। अस्याः समस्यायाः उत्तरदायी, कश्चास्याः जनकः इति प्रश्नः पौनः पुन्येन भूयते। वास्तविकरूपेण वयमेव अस्याः समस्यायाः जनकत्वं सम्पादयामः। यदि अस्माकं किमपि लघुकार्यं भवति चेत् वयम् अधिकारिभ्यः उत्कोचधनं दमः, यतः असमाकं कार्यम् अविलम्बेन स्यात्। किन्तु एवं न कृत्वा वयं स्वकार्यं विना उत्कोचधनेन कारयामश्चेत् आस्माकीनः देशः भ्रष्टाचारमुक्तः भवितुं शक्यते

‘भ्रष्टाचार' इत्यत्र सन्धिः वर्तते?

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85. भ्रष्टाचारः न केवलं भारतस्य अपितु अखिलस्यापि विश्वस्य ज्वलन्ता समस्या अस्ति। 'भ्रष्टाचारः' इति नाम श्रुत्वैव जनानां मनस्सु नैकविधानि विचाराणि समुत्पद्यन्ते, किन्तु विचाराणि यथा आगच्छन्ति तथैव यान्ति च। अस्याः समस्यायाः उत्तरदायी, कश्चास्याः जनकः इति प्रश्नः पौनः पुन्येन भूयते। वास्तविकरूपेण वयमेव अस्याः समस्यायाः जनकत्वं सम्पादयामः। यदि अस्माकं किमपि लघुकार्यं भवति चेत् वयम् अधिकारिभ्यः उत्कोचधनं दमः, यतः असमाकं कार्यम् अविलम्बेन स्यात्। किन्तु एवं न कृत्वा वयं स्वकार्यं विना उत्कोचधनेन कारयामश्चेत् आस्माकीनः देशः भ्रष्टाचारमुक्तः भवितुं शक्यते।

‘भ्रष्टाचारमुक्तः' इत्यत्र समासः?

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86. “अर्थो हि कन्यापरकीय एव

तामद्य संप्रेष्य परिग्रहीतुः ।

जातोममायं विशदः प्रकामं

प्रत्यर्पितन्यास इवान्तरात्मा ।।”

पद्यांशे छन्दः अस्ति-

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87. भ्रष्टाचारः न केवलं भारतस्य अपितु अखिलस्यापि विश्वस्य ज्वलन्ता समस्या अस्ति। 'भ्रष्टाचारः' इति नाम श्रुत्वैव जनानां मनस्सु नैकविधानि विचाराणि समुत्पद्यन्ते, किन्तु विचाराणि यथा आगच्छन्ति तथैव यान्ति च। अस्याः समस्यायाः उत्तरदायी, कश्चास्याः जनकः इति प्रश्नः पौनः पुन्येन भूयते। वास्तविकरूपेण वयमेव अस्याः समस्यायाः जनकत्वं सम्पादयामः। यदि अस्माकं किमपि लघुकार्यं भवति चेत् वयम् अधिकारिभ्यः उत्कोचधनं दमः, यतः असमाकं कार्यम् अविलम्बेन स्यात्। किन्तु एवं न कृत्वा वयं स्वकार्यं विना उत्कोचधनेन कारयामश्चेत् आस्माकीनः देशः भ्रष्टाचारमुक्तः भवितुं शक्यते।

‘भवितुम्' इत्यत्र प्रत्ययः वर्तते -

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88. भ्रष्टाचारः न केवलं भारतस्य अपितु अखिलस्यापि विश्वस्य ज्वलन्ता समस्या अस्ति। 'भ्रष्टाचारः' इति नाम श्रुत्वैव जनानां मनस्सु नैकविधानि विचाराणि समुत्पद्यन्ते, किन्तु विचाराणि यथा आगच्छन्ति तथैव यान्ति च। अस्याः समस्यायाः उत्तरदायी, कश्चास्याः जनकः इति प्रश्नः पौनः पुन्येन भूयते। वास्तविकरूपेण वयमेव अस्याः समस्यायाः जनकत्वं सम्पादयामः। यदि अस्माकं किमपि लघुकार्यं भवति चेत् वयम् अधिकारिभ्यः उत्कोचधनं दमः, यतः असमाकं कार्यम् अविलम्बेन स्यात्। किन्तु एवं न कृत्वा वयं स्वकार्यं विना उत्कोचधनेन कारयामश्चेत् आस्माकीनः देशः भ्रष्टाचारमुक्तः भवितुं शक्यते।

‘समुत्पद्यन्ते' इत्यत्र कति उपसर्गाः?

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89. “अर्थो हि कन्यापरकीय एव
तामद्य संप्रेष्य परिग्रहीतुः ।
जातोममायं विशदः प्रकामं
प्रत्यर्पितन्यास इवान्तरात्मा ।।”

‘सम्प्रेष्य' शब्दे प्रत्यय अस्ति-

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90. भ्रष्टाचारः न केवलं भारतस्य अपितु अखिलस्यापि विश्वस्य ज्वलन्ता समस्या अस्ति। 'भ्रष्टाचारः' इति नाम श्रुत्वैव जनानां मनस्सु नैकविधानि विचाराणि समुत्पद्यन्ते, किन्तु विचाराणि यथा आगच्छन्ति तथैव यान्ति च। अस्याः समस्यायाः उत्तरदायी, कश्चास्याः जनकः इति प्रश्नः पौनः पुन्येन भूयते। वास्तविकरूपेण वयमेव अस्याः समस्यायाः जनकत्वं सम्पादयामः। यदि अस्माकं किमपि लघुकार्यं भवति चेत् वयम् अधिकारिभ्यः उत्कोचधनं दमः, यतः असमाकं कार्यम् अविलम्बेन स्यात्। किन्तु एवं न कृत्वा वयं स्वकार्यं विना उत्कोचधनेन कारयामश्चेत् आस्माकीनः देशः भ्रष्टाचारमुक्तः भवितुं शक्यते।

‘कारयामः' इत्यत्र वचनं किम्?

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106. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
“ठीक है, दर्पण में तुम दूसरों को नहीं देख सकते। तुम जानते हो कि खिड़की में लगा काँच और यह दर्पण एक ही मूल पदार्थ से बने हैं। तुम स्वयं की तुलना काँच के इन दोनों रूपों से करके देखो। जब यह साधारण है तो तुम्हें सभी दिखते हैं और उन्हें देखकर तुम्हारे भीतर करुणा जागती है और जब इस काँच पर चाँदी का लेप हो जाता है, तो तुम स्वयं को देखने लगते हो।”
“तुम्हारा जीवन भी तभी महत्त्वपूर्ण बनेगा जब तुम अपनी आँखों पर लगी चाँदी की परत को उतार दो।”

गद्यांश में आया ‘करुणा’ शब्द का अर्थ है–

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107. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
“ठीक है, दर्पण में तुम दूसरों को नहीं देख सकते। तुम जानते हो कि खिड़की में लगा काँच और यह दर्पण एक ही मूल पदार्थ से बने हैं। तुम स्वयं की तुलना काँच के इन दोनों रूपों से करके देखो। जब यह साधारण है तो तुम्हें सभी दिखते हैं और उन्हें देखकर तुम्हारे भीतर करुणा जागती है और जब इस काँच पर चाँदी का लेप हो जाता है, तो तुम स्वयं को देखने लगते हो।”
“तुम्हारा जीवन भी तभी महत्त्वपूर्ण बनेगा जब तुम अपनी आँखों पर लगी चाँदी की परत को उतार दो।”

निम्नलिखित में से स्त्रीलिंग शब्द है–

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108. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
“ठीक है, दर्पण में तुम दूसरों को नहीं देख सकते। तुम जानते हो कि खिड़की में लगा काँच और यह दर्पण एक ही मूल पदार्थ से बने हैं। तुम स्वयं की तुलना काँच के इन दोनों रूपों से करके देखो। जब यह साधारण है तो तुम्हें सभी दिखते हैं और उन्हें देखकर तुम्हारे भीतर करुणा जागती है और जब इस काँच पर चाँदी का लेप हो जाता है, तो तुम स्वयं को देखने लगते हो।”
“तुम्हारा जीवन भी तभी महत्त्वपूर्ण बनेगा जब तुम अपनी आँखों पर लगी चाँदी की परत को उतार दो।”

‘आँख’ एकवचन शब्द का बहुवचन रूप होगा–

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109. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
“ठीक है, दर्पण में तुम दूसरों को नहीं देख सकते। तुम जानते हो कि खिड़की में लगा काँच और यह दर्पण एक ही मूल पदार्थ से बने हैं। तुम स्वयं की तुलना काँच के इन दोनों रूपों से करके देखो। जब यह साधारण है तो तुम्हें सभी दिखते हैं और उन्हें देखकर तुम्हारे भीतर करुणा जागती है और जब इस काँच पर चाँदी का लेप हो जाता है, तो तुम स्वयं को देखने लगते हो।”
“तुम्हारा जीवन भी तभी महत्त्वपूर्ण बनेगा जब तुम अपनी आँखों पर लगी चाँदी की परत को उतार दो।”

‘ठीक है, दर्पण में तुम दूसरों को नहीं देख सकते।‘ वाक्य में प्रयुक्त काल है–

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110. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
“ठीक है, दर्पण में तुम दूसरों को नहीं देख सकते। तुम जानते हो कि खिड़की में लगा काँच और यह दर्पण एक ही मूल पदार्थ से बने हैं। तुम स्वयं की तुलना काँच के इन दोनों रूपों से करके देखो। जब यह साधारण है तो तुम्हें सभी दिखते हैं और उन्हें देखकर तुम्हारे भीतर करुणा जागती है और जब इस काँच पर चाँदी का लेप हो जाता है, तो तुम स्वयं को देखने लगते हो।”
“तुम्हारा जीवन भी तभी महत्त्वपूर्ण बनेगा जब तुम अपनी आँखों पर लगी चाँदी की परत को उतार दो।”

‘दर्पण’ शब्द का उचित अर्थ है–

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111. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए–
स्वतंत्र व्यवसाय की अर्थनीति के नए वैश्विक वातावरण ने विदेशी पूँजी निवेश को खुली छुट दे रखी है जिसके कारण दूरदर्शन में ऐसे विज्ञापनों की भरमार हो गई है, जो उन्मुक्त वासना, हिंसा, अपराध, लालच और ईर्ष्या जैसी मानव की हीनतम प्रवृत्तियों को आधार मानकर चल रहे हैं। अत्यन्त खेद का विषय है कि राष्ट्रीय दूरदर्शन ने भी उनकी भोंडी नकल की ठान ली है। आधुनिकता के नाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, सुनाया जा रहा है, उससे भारतीय जीवन मूल्यों का दूर का भी रिश्ता नहीं है, वे सत्य से भी कोसों दूर हैं। नई पीढ़ी, जो स्वयं में रचनात्मक गुणों के विकास करने की जगह दूरदर्शन के सामने बैठकर कुछ सीखना, जानना और मनोरंजन करना चाहती है, उसका भगवान ही मालिक है। जो असत्य है, वह सत्य नहीं हो सकता। समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही। आज ही मजबूरी हो गई है कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले वासनायुक्त अश्लील दृश्यों से चार पीढ़ियाँ एक साथ आँखें चार कर रही हैं। नतीजा सामने है।
बलात्कार, अपहरण, छोटी बच्चियों के साथ निकट सम्बन्धियों द्वारा शर्मनाक यौनाचार की घटनाओं में वृद्धि। ठुमक कर चलते शिशु दूरदर्शन पर दिखाए और सुनाए जा रहे स्वर और भंगिमाओं पर अपनी कमर चलकाने लगे हैं। ऐसे जो शिव नहीं, वह सुन्दर कैसे हो सकता है? यदि इस प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों से समाज को बचाना है तो एक व्यवस्थित आचार-संहिता लागू की जानी चाहिए। जिसमें सम्मिलित किया जाए कि समाचार-पत्रों, दूरदर्शन व अन्य चैनलों पर मर्यादित व सभ्य कार्यक्रमों का ही प्रसारण किया जाए। समाज के गणमान्य लोगों, माता-पिता अपनी वर्तमान पीढ़ी को सुसंस्कारित करने का बीड़ा उठाना होगा, जिससे अश्लील विज्ञापनों, अमर्यादित टी.वी. कार्यक्रमों पर रोक लग सके।

‘आँख’ तद्भव शब्द का तत्सम रूप है–

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112. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए–
स्वतंत्र व्यवसाय की अर्थनीति के नए वैश्विक वातावरण ने विदेशी पूँजी निवेश को खुली छुट दे रखी है जिसके कारण दूरदर्शन में ऐसे विज्ञापनों की भरमार हो गई है, जो उन्मुक्त वासना, हिंसा, अपराध, लालच और ईर्ष्या जैसी मानव की हीनतम प्रवृत्तियों को आधार मानकर चल रहे हैं। अत्यन्त खेद का विषय है कि राष्ट्रीय दूरदर्शन ने भी उनकी भोंडी नकल की ठान ली है। आधुनिकता के नाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, सुनाया जा रहा है, उससे भारतीय जीवन मूल्यों का दूर का भी रिश्ता नहीं है, वे सत्य से भी कोसों दूर हैं। नई पीढ़ी, जो स्वयं में रचनात्मक गुणों के विकास करने की जगह दूरदर्शन के सामने बैठकर कुछ सीखना, जानना और मनोरंजन करना चाहती है, उसका भगवान ही मालिक है। जो असत्य है, वह सत्य नहीं हो सकता। समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही। आज ही मजबूरी हो गई है कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले वासनायुक्त अश्लील दृश्यों से चार पीढ़ियाँ एक साथ आँखें चार कर रही हैं। नतीजा सामने है।
बलात्कार, अपहरण, छोटी बच्चियों के साथ निकट सम्बन्धियों द्वारा शर्मनाक यौनाचार की घटनाओं में वृद्धि। ठुमक कर चलते शिशु दूरदर्शन पर दिखाए और सुनाए जा रहे स्वर और भंगिमाओं पर अपनी कमर चलकाने लगे हैं। ऐसे जो शिव नहीं, वह सुन्दर कैसे हो सकता है? यदि इस प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों से समाज को बचाना है तो एक व्यवस्थित आचार-संहिता लागू की जानी चाहिए। जिसमें सम्मिलित किया जाए कि समाचार-पत्रों, दूरदर्शन व अन्य चैनलों पर मर्यादित व सभ्य कार्यक्रमों का ही प्रसारण किया जाए। समाज के गणमान्य लोगों, माता-पिता अपनी वर्तमान पीढ़ी को सुसंस्कारित करने का बीड़ा उठाना होगा, जिससे अश्लील विज्ञापनों, अमर्यादित टी.वी. कार्यक्रमों पर रोक लग सके।

‘वृद्धि’ शब्द का उचित विलोम है–

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113. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए–
स्वतंत्र व्यवसाय की अर्थनीति के नए वैश्विक वातावरण ने विदेशी पूँजी निवेश को खुली छुट दे रखी है जिसके कारण दूरदर्शन में ऐसे विज्ञापनों की भरमार हो गई है, जो उन्मुक्त वासना, हिंसा, अपराध, लालच और ईर्ष्या जैसी मानव की हीनतम प्रवृत्तियों को आधार मानकर चल रहे हैं। अत्यन्त खेद का विषय है कि राष्ट्रीय दूरदर्शन ने भी उनकी भोंडी नकल की ठान ली है। आधुनिकता के नाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, सुनाया जा रहा है, उससे भारतीय जीवन मूल्यों का दूर का भी रिश्ता नहीं है, वे सत्य से भी कोसों दूर हैं। नई पीढ़ी, जो स्वयं में रचनात्मक गुणों के विकास करने की जगह दूरदर्शन के सामने बैठकर कुछ सीखना, जानना और मनोरंजन करना चाहती है, उसका भगवान ही मालिक है। जो असत्य है, वह सत्य नहीं हो सकता। समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही। आज ही मजबूरी हो गई है कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले वासनायुक्त अश्लील दृश्यों से चार पीढ़ियाँ एक साथ आँखें चार कर रही हैं। नतीजा सामने है।
बलात्कार, अपहरण, छोटी बच्चियों के साथ निकट सम्बन्धियों द्वारा शर्मनाक यौनाचार की घटनाओं में वृद्धि। ठुमक कर चलते शिशु दूरदर्शन पर दिखाए और सुनाए जा रहे स्वर और भंगिमाओं पर अपनी कमर चलकाने लगे हैं। ऐसे जो शिव नहीं, वह सुन्दर कैसे हो सकता है? यदि इस प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों से समाज को बचाना है तो एक व्यवस्थित आचार-संहिता लागू की जानी चाहिए। जिसमें सम्मिलित किया जाए कि समाचार-पत्रों, दूरदर्शन व अन्य चैनलों पर मर्यादित व सभ्य कार्यक्रमों का ही प्रसारण किया जाए। समाज के गणमान्य लोगों, माता-पिता अपनी वर्तमान पीढ़ी को सुसंस्कारित करने का बीड़ा उठाना होगा, जिससे अश्लील विज्ञापनों, अमर्यादित टी.वी. कार्यक्रमों पर रोक लग सके।

‘शर्मनाक’ शब्द है–

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114. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए–
स्वतंत्र व्यवसाय की अर्थनीति के नए वैश्विक वातावरण ने विदेशी पूँजी निवेश को खुली छुट दे रखी है जिसके कारण दूरदर्शन में ऐसे विज्ञापनों की भरमार हो गई है, जो उन्मुक्त वासना, हिंसा, अपराध, लालच और ईर्ष्या जैसी मानव की हीनतम प्रवृत्तियों को आधार मानकर चल रहे हैं। अत्यन्त खेद का विषय है कि राष्ट्रीय दूरदर्शन ने भी उनकी भोंडी नकल की ठान ली है। आधुनिकता के नाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, सुनाया जा रहा है, उससे भारतीय जीवन मूल्यों का दूर का भी रिश्ता नहीं है, वे सत्य से भी कोसों दूर हैं। नई पीढ़ी, जो स्वयं में रचनात्मक गुणों के विकास करने की जगह दूरदर्शन के सामने बैठकर कुछ सीखना, जानना और मनोरंजन करना चाहती है, उसका भगवान ही मालिक है। जो असत्य है, वह सत्य नहीं हो सकता। समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही। आज ही मजबूरी हो गई है कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले वासनायुक्त अश्लील दृश्यों से चार पीढ़ियाँ एक साथ आँखें चार कर रही हैं। नतीजा सामने है।
बलात्कार, अपहरण, छोटी बच्चियों के साथ निकट सम्बन्धियों द्वारा शर्मनाक यौनाचार की घटनाओं में वृद्धि। ठुमक कर चलते शिशु दूरदर्शन पर दिखाए और सुनाए जा रहे स्वर और भंगिमाओं पर अपनी कमर चलकाने लगे हैं। ऐसे जो शिव नहीं, वह सुन्दर कैसे हो सकता है? यदि इस प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों से समाज को बचाना है तो एक व्यवस्थित आचार-संहिता लागू की जानी चाहिए। जिसमें सम्मिलित किया जाए कि समाचार-पत्रों, दूरदर्शन व अन्य चैनलों पर मर्यादित व सभ्य कार्यक्रमों का ही प्रसारण किया जाए। समाज के गणमान्य लोगों, माता-पिता अपनी वर्तमान पीढ़ी को सुसंस्कारित करने का बीड़ा उठाना होगा, जिससे अश्लील विज्ञापनों, अमर्यादित टी.वी. कार्यक्रमों पर रोक लग सके।

‘माता-पिता’ शब्द का सही समास-विग्रह है–

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115. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए–
स्वतंत्र व्यवसाय की अर्थनीति के नए वैश्विक वातावरण ने विदेशी पूँजी निवेश को खुली छुट दे रखी है जिसके कारण दूरदर्शन में ऐसे विज्ञापनों की भरमार हो गई है, जो उन्मुक्त वासना, हिंसा, अपराध, लालच और ईर्ष्या जैसी मानव की हीनतम प्रवृत्तियों को आधार मानकर चल रहे हैं। अत्यन्त खेद का विषय है कि राष्ट्रीय दूरदर्शन ने भी उनकी भोंडी नकल की ठान ली है। आधुनिकता के नाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, सुनाया जा रहा है, उससे भारतीय जीवन मूल्यों का दूर का भी रिश्ता नहीं है, वे सत्य से भी कोसों दूर हैं। नई पीढ़ी, जो स्वयं में रचनात्मक गुणों के विकास करने की जगह दूरदर्शन के सामने बैठकर कुछ सीखना, जानना और मनोरंजन करना चाहती है, उसका भगवान ही मालिक है। जो असत्य है, वह सत्य नहीं हो सकता। समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही। आज ही मजबूरी हो गई है कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले वासनायुक्त अश्लील दृश्यों से चार पीढ़ियाँ एक साथ आँखें चार कर रही हैं। नतीजा सामने है।
बलात्कार, अपहरण, छोटी बच्चियों के साथ निकट सम्बन्धियों द्वारा शर्मनाक यौनाचार की घटनाओं में वृद्धि। ठुमक कर चलते शिशु दूरदर्शन पर दिखाए और सुनाए जा रहे स्वर और भंगिमाओं पर अपनी कमर चलकाने लगे हैं। ऐसे जो शिव नहीं, वह सुन्दर कैसे हो सकता है? यदि इस प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों से समाज को बचाना है तो एक व्यवस्थित आचार-संहिता लागू की जानी चाहिए। जिसमें सम्मिलित किया जाए कि समाचार-पत्रों, दूरदर्शन व अन्य चैनलों पर मर्यादित व सभ्य कार्यक्रमों का ही प्रसारण किया जाए। समाज के गणमान्य लोगों, माता-पिता अपनी वर्तमान पीढ़ी को सुसंस्कारित करने का बीड़ा उठाना होगा, जिससे अश्लील विज्ञापनों, अमर्यादित टी.वी. कार्यक्रमों पर रोक लग सके।

‘ईर्ष्या’ शब्द का पर्यायवाची नहीं है–

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116. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए–
स्वतंत्र व्यवसाय की अर्थनीति के नए वैश्विक वातावरण ने विदेशी पूँजी निवेश को खुली छुट दे रखी है जिसके कारण दूरदर्शन में ऐसे विज्ञापनों की भरमार हो गई है, जो उन्मुक्त वासना, हिंसा, अपराध, लालच और ईर्ष्या जैसी मानव की हीनतम प्रवृत्तियों को आधार मानकर चल रहे हैं। अत्यन्त खेद का विषय है कि राष्ट्रीय दूरदर्शन ने भी उनकी भोंडी नकल की ठान ली है। आधुनिकता के नाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, सुनाया जा रहा है, उससे भारतीय जीवन मूल्यों का दूर का भी रिश्ता नहीं है, वे सत्य से भी कोसों दूर हैं। नई पीढ़ी, जो स्वयं में रचनात्मक गुणों के विकास करने की जगह दूरदर्शन के सामने बैठकर कुछ सीखना, जानना और मनोरंजन करना चाहती है, उसका भगवान ही मालिक है। जो असत्य है, वह सत्य नहीं हो सकता। समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही। आज ही मजबूरी हो गई है कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले वासनायुक्त अश्लील दृश्यों से चार पीढ़ियाँ एक साथ आँखें चार कर रही हैं। नतीजा सामने है।
बलात्कार, अपहरण, छोटी बच्चियों के साथ निकट सम्बन्धियों द्वारा शर्मनाक यौनाचार की घटनाओं में वृद्धि। ठुमक कर चलते शिशु दूरदर्शन पर दिखाए और सुनाए जा रहे स्वर और भंगिमाओं पर अपनी कमर चलकाने लगे हैं। ऐसे जो शिव नहीं, वह सुन्दर कैसे हो सकता है? यदि इस प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों से समाज को बचाना है तो एक व्यवस्थित आचार-संहिता लागू की जानी चाहिए। जिसमें सम्मिलित किया जाए कि समाचार-पत्रों, दूरदर्शन व अन्य चैनलों पर मर्यादित व सभ्य कार्यक्रमों का ही प्रसारण किया जाए। समाज के गणमान्य लोगों, माता-पिता अपनी वर्तमान पीढ़ी को सुसंस्कारित करने का बीड़ा उठाना होगा, जिससे अश्लील विज्ञापनों, अमर्यादित टी.वी. कार्यक्रमों पर रोक लग सके।

‘सुसंस्कारित’ शब्द में उपसर्ग, मूल शब्द व प्रत्यय है–

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117. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए–
स्वतंत्र व्यवसाय की अर्थनीति के नए वैश्विक वातावरण ने विदेशी पूँजी निवेश को खुली छुट दे रखी है जिसके कारण दूरदर्शन में ऐसे विज्ञापनों की भरमार हो गई है, जो उन्मुक्त वासना, हिंसा, अपराध, लालच और ईर्ष्या जैसी मानव की हीनतम प्रवृत्तियों को आधार मानकर चल रहे हैं। अत्यन्त खेद का विषय है कि राष्ट्रीय दूरदर्शन ने भी उनकी भोंडी नकल की ठान ली है। आधुनिकता के नाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, सुनाया जा रहा है, उससे भारतीय जीवन मूल्यों का दूर का भी रिश्ता नहीं है, वे सत्य से भी कोसों दूर हैं। नई पीढ़ी, जो स्वयं में रचनात्मक गुणों के विकास करने की जगह दूरदर्शन के सामने बैठकर कुछ सीखना, जानना और मनोरंजन करना चाहती है, उसका भगवान ही मालिक है। जो असत्य है, वह सत्य नहीं हो सकता। समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही। आज ही मजबूरी हो गई है कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले वासनायुक्त अश्लील दृश्यों से चार पीढ़ियाँ एक साथ आँखें चार कर रही हैं। नतीजा सामने है।
बलात्कार, अपहरण, छोटी बच्चियों के साथ निकट सम्बन्धियों द्वारा शर्मनाक यौनाचार की घटनाओं में वृद्धि। ठुमक कर चलते शिशु दूरदर्शन पर दिखाए और सुनाए जा रहे स्वर और भंगिमाओं पर अपनी कमर चलकाने लगे हैं। ऐसे जो शिव नहीं, वह सुन्दर कैसे हो सकता है? यदि इस प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों से समाज को बचाना है तो एक व्यवस्थित आचार-संहिता लागू की जानी चाहिए। जिसमें सम्मिलित किया जाए कि समाचार-पत्रों, दूरदर्शन व अन्य चैनलों पर मर्यादित व सभ्य कार्यक्रमों का ही प्रसारण किया जाए। समाज के गणमान्य लोगों, माता-पिता अपनी वर्तमान पीढ़ी को सुसंस्कारित करने का बीड़ा उठाना होगा, जिससे अश्लील विज्ञापनों, अमर्यादित टी.वी. कार्यक्रमों पर रोक लग सके।

चार पीढ़ियाँ एक साथ आँखें चार कर रही हैं।” वाक्य में रेखांकित पद है–

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118. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए–
स्वतंत्र व्यवसाय की अर्थनीति के नए वैश्विक वातावरण ने विदेशी पूँजी निवेश को खुली छुट दे रखी है जिसके कारण दूरदर्शन में ऐसे विज्ञापनों की भरमार हो गई है, जो उन्मुक्त वासना, हिंसा, अपराध, लालच और ईर्ष्या जैसी मानव की हीनतम प्रवृत्तियों को आधार मानकर चल रहे हैं। अत्यन्त खेद का विषय है कि राष्ट्रीय दूरदर्शन ने भी उनकी भोंडी नकल की ठान ली है। आधुनिकता के नाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, सुनाया जा रहा है, उससे भारतीय जीवन मूल्यों का दूर का भी रिश्ता नहीं है, वे सत्य से भी कोसों दूर हैं। नई पीढ़ी, जो स्वयं में रचनात्मक गुणों के विकास करने की जगह दूरदर्शन के सामने बैठकर कुछ सीखना, जानना और मनोरंजन करना चाहती है, उसका भगवान ही मालिक है। जो असत्य है, वह सत्य नहीं हो सकता। समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही। आज ही मजबूरी हो गई है कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले वासनायुक्त अश्लील दृश्यों से चार पीढ़ियाँ एक साथ आँखें चार कर रही हैं। नतीजा सामने है।
बलात्कार, अपहरण, छोटी बच्चियों के साथ निकट सम्बन्धियों द्वारा शर्मनाक यौनाचार की घटनाओं में वृद्धि। ठुमक कर चलते शिशु दूरदर्शन पर दिखाए और सुनाए जा रहे स्वर और भंगिमाओं पर अपनी कमर चलकाने लगे हैं। ऐसे जो शिव नहीं, वह सुन्दर कैसे हो सकता है? यदि इस प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों से समाज को बचाना है तो एक व्यवस्थित आचार-संहिता लागू की जानी चाहिए। जिसमें सम्मिलित किया जाए कि समाचार-पत्रों, दूरदर्शन व अन्य चैनलों पर मर्यादित व सभ्य कार्यक्रमों का ही प्रसारण किया जाए। समाज के गणमान्य लोगों, माता-पिता अपनी वर्तमान पीढ़ी को सुसंस्कारित करने का बीड़ा उठाना होगा, जिससे अश्लील विज्ञापनों, अमर्यादित टी.वी. कार्यक्रमों पर रोक लग सके।

‘अत्यन्त’ शब्द में संधि है–

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119. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए–
स्वतंत्र व्यवसाय की अर्थनीति के नए वैश्विक वातावरण ने विदेशी पूँजी निवेश को खुली छुट दे रखी है जिसके कारण दूरदर्शन में ऐसे विज्ञापनों की भरमार हो गई है, जो उन्मुक्त वासना, हिंसा, अपराध, लालच और ईर्ष्या जैसी मानव की हीनतम प्रवृत्तियों को आधार मानकर चल रहे हैं। अत्यन्त खेद का विषय है कि राष्ट्रीय दूरदर्शन ने भी उनकी भोंडी नकल की ठान ली है। आधुनिकता के नाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, सुनाया जा रहा है, उससे भारतीय जीवन मूल्यों का दूर का भी रिश्ता नहीं है, वे सत्य से भी कोसों दूर हैं। नई पीढ़ी, जो स्वयं में रचनात्मक गुणों के विकास करने की जगह दूरदर्शन के सामने बैठकर कुछ सीखना, जानना और मनोरंजन करना चाहती है, उसका भगवान ही मालिक है। जो असत्य है, वह सत्य नहीं हो सकता। समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही। आज ही मजबूरी हो गई है कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले वासनायुक्त अश्लील दृश्यों से चार पीढ़ियाँ एक साथ आँखें चार कर रही हैं। नतीजा सामने है।
बलात्कार, अपहरण, छोटी बच्चियों के साथ निकट सम्बन्धियों द्वारा शर्मनाक यौनाचार की घटनाओं में वृद्धि। ठुमक कर चलते शिशु दूरदर्शन पर दिखाए और सुनाए जा रहे स्वर और भंगिमाओं पर अपनी कमर चलकाने लगे हैं। ऐसे जो शिव नहीं, वह सुन्दर कैसे हो सकता है? यदि इस प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों से समाज को बचाना है तो एक व्यवस्थित आचार-संहिता लागू की जानी चाहिए। जिसमें सम्मिलित किया जाए कि समाचार-पत्रों, दूरदर्शन व अन्य चैनलों पर मर्यादित व सभ्य कार्यक्रमों का ही प्रसारण किया जाए। समाज के गणमान्य लोगों, माता-पिता अपनी वर्तमान पीढ़ी को सुसंस्कारित करने का बीड़ा उठाना होगा, जिससे अश्लील विज्ञापनों, अमर्यादित टी.वी. कार्यक्रमों पर रोक लग सके।

‘उससे भारतीय जीवन मूल्यों का दूर का भी रिश्ता नहीं है।’ वाक्य में ‘उससे’ शब्द है–

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120. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए–
स्वतंत्र व्यवसाय की अर्थनीति के नए वैश्विक वातावरण ने विदेशी पूँजी निवेश को खुली छुट दे रखी है जिसके कारण दूरदर्शन में ऐसे विज्ञापनों की भरमार हो गई है, जो उन्मुक्त वासना, हिंसा, अपराध, लालच और ईर्ष्या जैसी मानव की हीनतम प्रवृत्तियों को आधार मानकर चल रहे हैं। अत्यन्त खेद का विषय है कि राष्ट्रीय दूरदर्शन ने भी उनकी भोंडी नकल की ठान ली है। आधुनिकता के नाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, सुनाया जा रहा है, उससे भारतीय जीवन मूल्यों का दूर का भी रिश्ता नहीं है, वे सत्य से भी कोसों दूर हैं। नई पीढ़ी, जो स्वयं में रचनात्मक गुणों के विकास करने की जगह दूरदर्शन के सामने बैठकर कुछ सीखना, जानना और मनोरंजन करना चाहती है, उसका भगवान ही मालिक है। जो असत्य है, वह सत्य नहीं हो सकता। समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही। आज ही मजबूरी हो गई है कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले वासनायुक्त अश्लील दृश्यों से चार पीढ़ियाँ एक साथ आँखें चार कर रही हैं। नतीजा सामने है।
बलात्कार, अपहरण, छोटी बच्चियों के साथ निकट सम्बन्धियों द्वारा शर्मनाक यौनाचार की घटनाओं में वृद्धि। ठुमक कर चलते शिशु दूरदर्शन पर दिखाए और सुनाए जा रहे स्वर और भंगिमाओं पर अपनी कमर चलकाने लगे हैं। ऐसे जो शिव नहीं, वह सुन्दर कैसे हो सकता है? यदि इस प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों से समाज को बचाना है तो एक व्यवस्थित आचार-संहिता लागू की जानी चाहिए। जिसमें सम्मिलित किया जाए कि समाचार-पत्रों, दूरदर्शन व अन्य चैनलों पर मर्यादित व सभ्य कार्यक्रमों का ही प्रसारण किया जाए। समाज के गणमान्य लोगों, माता-पिता अपनी वर्तमान पीढ़ी को सुसंस्कारित करने का बीड़ा उठाना होगा, जिससे अश्लील विज्ञापनों, अमर्यादित टी.वी. कार्यक्रमों पर रोक लग सके।

गद्यांश में आया ‘हिंसा’ शब्द है–

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