Model Paper 1: REET लेवल 1st फ्री टेस्ट सीरीज 2025 | मनोविज्ञान, पर्यावरण & गणित, हिंदी & संस्कृत

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REET 2025 की तैयारी अभी से शुरू करें! हमारी फ्री टेस्ट सीरीज के साथ मनोविज्ञान, पर्यावरण, गणित, हिंदी और संस्कृत में महत्वपूर्ण प्रश्नों का अभ्यास करें। REET Level 1st के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन की गई यह टेस्ट सीरीज आपको परीक्षा में सफलता दिलाने में मदद करेगी। अभी Enroll करें और अपनी तैयारी को मजबूत बनाएं!

विषयवार प्रश्न संख्या:

विषयप्रश्न संख्या
मनोविज्ञान30
हिंदी30
संस्कृत30
पर्यावरण & गणित60
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Model Paper 1: REET लेवल 1st फ्री टेस्ट सीरीज 2025 | मनोविज्ञान, पर्यावरण & गणित, हिंदी & संस्कृत

Model Paper 1: REET लेवल 1st | Full Length Test 150 प्रश्न | भाषा: हिंदी | संस्कृत

🔴महत्वपूर्ण निर्देश 🔴

✅ टेस्ट शुरू करने से पहले कृपया सही जानकारी भरे |
✅ सभी प्रश्नों को आराम से पढ़कर उत्तर दे |
✅सभी प्रश्नों का उत्तर टेस्ट पूर्ण करने पर दिखाई देगा |
✅ टेस्ट पूर्ण करने पर सभी प्रश्नों के उत्तर विस्तार से समझाया गया है |

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32. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न के उत्तर दीजिए:
हम लोग जब हिन्दी की ‘सेवा’ करने की बात सोचते हैं, तो प्राय: भूल जाते हैं कि यह सामाजिक प्रयोग है। हिन्दी की सेवा का अर्थ है उस मानव-समाज की सेवा, जिसके विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम हिन्दी है। मनुष्य ही बड़ी चीज है, भाषा उसी की सेवा के लिए है। साहित्य-सृष्टि का भी यही अर्थ है। जो साहित्य अपने-आप के लिए लिखा जाता है उसकी क्या कीमत है, मैं नहीं कह सकता, परन्तु जो साहित्य मनुष्य-समाज को रोग-शोक, दरिद्रता, अज्ञान तथा परमुखापेक्षिता से बचाकर उसमें आत्मबल का संचार करता है, वह निश्चय ही अक्षय-निधि है।  ‘अज्ञान’ का विलोम शब्द है  

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34. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न के उत्तर दीजिए:
हम लोग जब हिन्दी की ‘सेवा’ करने की बात सोचते हैं, तो प्राय: भूल जाते हैं कि यह सामाजिक प्रयोग है। हिन्दी की सेवा का अर्थ है उस मानव-समाज की सेवा, जिसके विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम हिन्दी है। मनुष्य ही बड़ी चीज है, भाषा उसी की सेवा के लिए है। साहित्य-सृष्टि का भी यही अर्थ है। जो साहित्य अपने-आप के लिए लिखा जाता है उसकी क्या कीमत है, मैं नहीं कह सकता, परन्तु जो साहित्य मनुष्य-समाज को रोग-शोक, दरिद्रता, अज्ञान तथा परमुखापेक्षिता से बचाकर उसमें आत्मबल का संचार करता है, वह निश्चय ही अक्षय-निधि है। ‘सृष्टि’ शब्द का संधि-विच्छेद है–

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35. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न के उत्तर दीजिए:
हम लोग जब हिन्दी की ‘सेवा’ करने की बात सोचते हैं, तो प्राय: भूल जाते हैं कि यह सामाजिक प्रयोग है। हिन्दी की सेवा का अर्थ है उस मानव-समाज की सेवा, जिसके विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम हिन्दी है। मनुष्य ही बड़ी चीज है, भाषा उसी की सेवा के लिए है। साहित्य-सृष्टि का भी यही अर्थ है। जो साहित्य अपने-आप के लिए लिखा जाता है उसकी क्या कीमत है, मैं नहीं कह सकता, परन्तु जो साहित्य मनुष्य-समाज को रोग-शोक, दरिद्रता, अज्ञान तथा परमुखापेक्षिता से बचाकर उसमें आत्मबल का संचार करता है, वह निश्चय ही अक्षय-निधि है। ‘दरिद्रता’ शब्द में संज्ञा है–

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38. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न के उत्तर दीजिए:
हम लोग जब हिन्दी की ‘सेवा’ करने की बात सोचते हैं, तो प्राय: भूल जाते हैं कि यह सामाजिक प्रयोग है। हिन्दी की सेवा का अर्थ है उस मानव-समाज की सेवा, जिसके विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम हिन्दी है। मनुष्य ही बड़ी चीज है, भाषा उसी की सेवा के लिए है। साहित्य-सृष्टि का भी यही अर्थ है। जो साहित्य अपने-आप के लिए लिखा जाता है उसकी क्या कीमत है, मैं नहीं कह सकता, परन्तु जो साहित्य मनुष्य-समाज को रोग-शोक, दरिद्रता, अज्ञान तथा परमुखापेक्षिता से बचाकर उसमें आत्मबल का संचार करता है, वह निश्चय ही अक्षय-निधि है।

‘संचार’ शब्द का पर्यायवाची नहीं है–

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39. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न के उत्तर दीजिए:
हम लोग जब हिन्दी की ‘सेवा’ करने की बात सोचते हैं, तो प्राय: भूल जाते हैं कि यह सामाजिक प्रयोग है। हिन्दी की सेवा का अर्थ है उस मानव-समाज की सेवा, जिसके विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम हिन्दी है। मनुष्य ही बड़ी चीज है, भाषा उसी की सेवा के लिए है। साहित्य-सृष्टि का भी यही अर्थ है। जो साहित्य अपने-आप के लिए लिखा जाता है उसकी क्या कीमत है, मैं नहीं कह सकता, परन्तु जो साहित्य मनुष्य-समाज को रोग-शोक, दरिद्रता, अज्ञान तथा परमुखापेक्षिता से बचाकर उसमें आत्मबल का संचार करता है, वह निश्चय ही अक्षय-निधि है। ‘परमुखापेक्षिता’ शब्द का अर्थ है–

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42. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न के उत्तर दीजिए:
माता के स्नेह में पिता के समान प्रत्युपकार की वासना भी नहीं है। दया मानो देह-धरे सामने आकर खड़ी हो जाती है। टूटी फूस की झोंपड़ी में जब मूसलाधार पानी बरस रहा है, फूस का टाट सभी ओर से ऐसा टपकता है कि कहीं तिल भर भी जगह नहीं बची है, कंगाली के कारण इतना कपड़ा-लत्ता पास नहीं कि आप ओढ़े, आँधी से अपने दुध मुँहे बालक को ढाँपे माता उसको छाती से लगाए हुए है। अपने प्राण और देह की तनिक चिन्ता नहीं है, किन्तु वात और वृष्टि से पुत्र की रोगी और अस्वस्थ दशा में पलंग के पास उदास बैठी मन-मारे उसका मुँह ताक रही है। रात को नींद और दिन का भोजन दुस्तर हो गया है। भाँति-भाँति की मिन्नतें मनाती है, कोई भी जो कुछ कहता है वह सब-कुछ करती है। अपनी जान तक चाहे चली जाय, पर पुत्र को स्वास्थ्य-लाभ हो।
पिता को अपने शरीर पर इतना कष्ट उठाना कभी न भावेगा। यह माता ही है जो पुत्र के स्वाभाविक स्नेह के वश हो इतने-इतने दु:ख सहती है। बुद्धिमानों ने इन्हीं सब बातों को सोच-विचार कर लिख दिया है कि पिता से माँ का गौरव सौ गुना अधिक है। माँ का केवल गौरव मान बैठे रहना कैसा? हम तो कहेंगे कि पुत्र जन्म-भर तन-मन-धन से माँ की सेवा करे तो भी ऋण मुक्त नहीं हो सकता।

‘प्राण’ शब्द में वचन का प्रकार है–

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43. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न के उत्तर दीजिए:
माता के स्नेह में पिता के समान प्रत्युपकार की वासना भी नहीं है। दया मानो देह-धरे सामने आकर खड़ी हो जाती है। टूटी फूस की झोंपड़ी में जब मूसलाधार पानी बरस रहा है, फूस का टाट सभी ओर से ऐसा टपकता है कि कहीं तिल भर भी जगह नहीं बची है, कंगाली के कारण इतना कपड़ा-लत्ता पास नहीं कि आप ओढ़े, आँधी से अपने दुध मुँहे बालक को ढाँपे माता उसको छाती से लगाए हुए है। अपने प्राण और देह की तनिक चिन्ता नहीं है, किन्तु वात और वृष्टि से पुत्र की रोगी और अस्वस्थ दशा में पलंग के पास उदास बैठी मन-मारे उसका मुँह ताक रही है। रात को नींद और दिन का भोजन दुस्तर हो गया है। भाँति-भाँति की मिन्नतें मनाती है, कोई भी जो कुछ कहता है वह सब-कुछ करती है। अपनी जान तक चाहे चली जाय, पर पुत्र को स्वास्थ्य-लाभ हो।
पिता को अपने शरीर पर इतना कष्ट उठाना कभी न भावेगा। यह माता ही है जो पुत्र के स्वाभाविक स्नेह के वश हो इतने-इतने दु:ख सहती है। बुद्धिमानों ने इन्हीं सब बातों को सोच-विचार कर लिख दिया है कि पिता से माँ का गौरव सौ गुना अधिक है। माँ का केवल गौरव मान बैठे रहना कैसा? हम तो कहेंगे कि पुत्र जन्म-भर तन-मन-धन से माँ की सेवा करे तो भी ऋण मुक्त नहीं हो सकता।‘मूसलाधार पानी बरस रहा है।’ वाक्य में प्रयुक्त काल है–

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45. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न के उत्तर दीजिए:

माता के स्नेह में पिता के समान प्रत्युपकार की वासना भी नहीं है। दया मानो देह-धरे सामने आकर खड़ी हो जाती है। टूटी फूस की झोंपड़ी में जब मूसलाधार पानी बरस रहा है, फूस का टाट सभी ओर से ऐसा टपकता है कि कहीं तिल भर भी जगह नहीं बची है, कंगाली के कारण इतना कपड़ा-लत्ता पास नहीं कि आप ओढ़े, आँधी से अपने दुध मुँहे बालक को ढाँपे माता उसको छाती से लगाए हुए है। अपने प्राण और देह की तनिक चिन्ता नहीं है, किन्तु वात और वृष्टि से पुत्र की रोगी और अस्वस्थ दशा में पलंग के पास उदास बैठी मन-मारे उसका मुँह ताक रही है। रात को नींद और दिन का भोजन दुस्तर हो गया है। भाँति-भाँति की मिन्नतें मनाती है, कोई भी जो कुछ कहता है वह सब-कुछ करती है। अपनी जान तक चाहे चली जाय, पर पुत्र को स्वास्थ्य-लाभ हो।  पिता को अपने शरीर पर इतना कष्ट उठाना कभी न भावेगा। यह माता ही है जो पुत्र के स्वाभाविक स्नेह के वश हो इतने-इतने दु:ख सहती है। बुद्धिमानों ने इन्हीं सब बातों को सोच-विचार कर लिख दिया है कि पिता से माँ का गौरव सौ गुना अधिक है। माँ का केवल गौरव मान बैठे रहना कैसा? हम तो कहेंगे कि पुत्र जन्म-भर तन-मन-धन से माँ की सेवा करे तो भी ऋण मुक्त नहीं हो सकता।

‘धन’ शब्द में लिंग का प्रकार है–

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47. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न के उत्तर दीजिए:
माता के स्नेह में पिता के समान प्रत्युपकार की वासना भी नहीं है। दया मानो देह-धरे सामने आकर खड़ी हो जाती है। टूटी फूस की झोंपड़ी में जब मूसलाधार पानी बरस रहा है, फूस का टाट सभी ओर से ऐसा टपकता है कि कहीं तिल भर भी जगह नहीं बची है, कंगाली के कारण इतना कपड़ा-लत्ता पास नहीं कि आप ओढ़े, आँधी से अपने दुध मुँहे बालक को ढाँपे माता उसको छाती से लगाए हुए है। अपने प्राण और देह की तनिक चिन्ता नहीं है, किन्तु वात और वृष्टि से पुत्र की रोगी और अस्वस्थ दशा में पलंग के पास उदास बैठी मन-मारे उसका मुँह ताक रही है। रात को नींद और दिन का भोजन दुस्तर हो गया है। भाँति-भाँति की मिन्नतें मनाती है, कोई भी जो कुछ कहता है वह सब-कुछ करती है। अपनी जान तक चाहे चली जाय, पर पुत्र को स्वास्थ्य-लाभ हो।
पिता को अपने शरीर पर इतना कष्ट उठाना कभी न भावेगा। यह माता ही है जो पुत्र के स्वाभाविक स्नेह के वश हो इतने-इतने दु:ख सहती है। बुद्धिमानों ने इन्हीं सब बातों को सोच-विचार कर लिख दिया है कि पिता से माँ का गौरव सौ गुना अधिक है। माँ का केवल गौरव मान बैठे रहना कैसा? हम तो कहेंगे कि पुत्र जन्म-भर तन-मन-धन से माँ की सेवा करे तो भी ऋण मुक्त नहीं हो सकता।

‘बालक’ शब्द में वचन है–

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49. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न के उत्तर दीजिए:
माता के स्नेह में पिता के समान प्रत्युपकार की वासना भी नहीं है। दया मानो देह-धरे सामने आकर खड़ी हो जाती है। टूटी फूस की झोंपड़ी में जब मूसलाधार पानी बरस रहा है, फूस का टाट सभी ओर से ऐसा टपकता है कि कहीं तिल भर भी जगह नहीं बची है, कंगाली के कारण इतना कपड़ा-लत्ता पास नहीं कि आप ओढ़े, आँधी से अपने दुध मुँहे बालक को ढाँपे माता उसको छाती से लगाए हुए है। अपने प्राण और देह की तनिक चिन्ता नहीं है, किन्तु वात और वृष्टि से पुत्र की रोगी और अस्वस्थ दशा में पलंग के पास उदास बैठी मन-मारे उसका मुँह ताक रही है। रात को नींद और दिन का भोजन दुस्तर हो गया है। भाँति-भाँति की मिन्नतें मनाती है, कोई भी जो कुछ कहता है वह सब-कुछ करती है। अपनी जान तक चाहे चली जाय, पर पुत्र को स्वास्थ्य-लाभ हो।
पिता को अपने शरीर पर इतना कष्ट उठाना कभी न भावेगा। यह माता ही है जो पुत्र के स्वाभाविक स्नेह के वश हो इतने-इतने दु:ख सहती है। बुद्धिमानों ने इन्हीं सब बातों को सोच-विचार कर लिख दिया है कि पिता से माँ का गौरव सौ गुना अधिक है। माँ का केवल गौरव मान बैठे रहना कैसा? हम तो कहेंगे कि पुत्र जन्म-भर तन-मन-धन से माँ की सेवा करे तो भी ऋण मुक्त नहीं हो सकता।

 

निम्नलिखित में से पुल्लिंग शब्द नहीं है–

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92. एक वर्ग के विकर्ण की लम्बाई 52">52–√52सेमी. है तो इसका क्षेत्रफल क्या होगा?

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93. एक वर्ग का परिमाप 40 सेमी. है। यदि आयत की लम्बाई वर्ग की भुजा से 2 सेमी. अधिक तथा आयत की चौड़ाई वर्ग की भुजा से 2 सेमी. कम हो, तो आयत का क्षेत्रफल है-

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95. (left(1450frac{1}{5}+1450frac{2}{5}+1450frac{3}{5}+1450frac{4}{5}right)) का मान ज्ञात कीजिए?

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96. (1-frac{2}{3}left(1-frac{5}{6}×18right)+frac{3}{2}) का मान क्या होगा?

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100. एक बहुभुज के आंतरिक कोणों की मापों का योग 3240° है। बहुभुज में भुजाओं की संख्या ज्ञात कीजिए।

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102. PQRS एक चतुर्भुज है जिसकी भुजा PQ वृत्त का व्यास है और बिन्दु P, Q, R, और S वृत्त की परिधि पर स्थित है। यदि ">PSR = 140° है, तो ">QPR का माप है?

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103. किसी आसन्न कोणों के युग्म में –

कथन (i) – शीर्ष बिन्दु हमेशा उभयनिष्ठ होता है।

कथन (ii) – एक भुजा हमेशा उभयनिष्ठ होती है।

कथन (iii) – वे भुजाएँ जो उभयनिष्ठ नहीं है, हमेशा विपरीत किरणें होती है।

तब

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109. ₹75000 की राशि पर (2frac{5}{2})253%">% वार्षिक ब्याज की दर से 5 वर्ष की अवधि के साधारण ब्याज की राशि ज्ञात कीजिए।

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117. गणित शिक्षण की उपयुक्त विधि है-

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120. अच्छे मूल्यांकन परीक्षण की विशेषताएँ है-

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142. नीचे दिए गए यातायात संकेत इंगित करता है–

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