Model Paper 3: REET लेवल 1st फ्री टेस्ट सीरीज 2025 | मनोविज्ञान, पर्यावरण & गणित, हिंदी & संस्कृत

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REET Level 1 परीक्षा 2025 की तैयारी के लिए इस फ्री मॉडल पेपर 3 को आज ही हल करें! इसमें मनोविज्ञान, हिंदी, संस्कृत, पर्यावरण और गणित के 150 महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं। इस टेस्ट सीरीज से अपनी तैयारी का आंकलन करें और परीक्षा में सफलता प्राप्त करें।

विषयवार प्रश्न संख्या:

विषयप्रश्न संख्या
मनोविज्ञान30
हिंदी30
संस्कृत30
पर्यावरण & गणित60
कुल150

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Model Paper 3: REET लेवल 1st | Full Length Test 150 प्रश्न | भाषा: हिंदी | संस्कृत

Model Paper 3: REET लेवल 1st | Full Length Test 150 प्रश्न | भाषा: हिंदी | संस्कृत

🔴महत्वपूर्ण निर्देश 🔴

✅ टेस्ट शुरू करने से पहले कृपया सही जानकारी भरे |
✅ सभी प्रश्नों को आराम से पढ़कर उत्तर दे |
✅सभी प्रश्नों का उत्तर टेस्ट पूर्ण करने पर दिखाई देगा |
✅ टेस्ट पूर्ण करने पर सभी प्रश्नों के उत्तर विस्तार से समझाया गया है |

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9. सूची-I में दिए गए मनोवैज्ञानिकों के नाम को सूची-II में दिए गए सिद्धान्तों से सुमेलित कीजिए -

सूची-I (मनोवैज्ञानिक) सूची-II (सिद्धान्त)
A जीन पियाजे i पारिस्थितिकी तंत्र का सिद्धान्त
B यूरी ब्रोनफेन ब्रेन्नर ii मनोविश्लेषण का सिद्धान्त
C सिगमण्ड फ्रायड iii सामाजिक -सांस्कृतिक – संज्ञानात्मक सिद्धान्त
D लेव वाइगोत्सकी iv संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त

कूट :

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13. निम्नांकित कथनों पर ध्यान दे तथा दिए गए कूट संकेत के आधार पर उत्तर दें-
1. वैयक्तिक विभिन्नता का एक प्रमुख कारण आनुवंशिकता (Heredity) है।
2. बुद्धि वैयक्तिक विभिन्नता का एक प्रमुख क्षेत्र है।
3. वैयक्तिक विभिन्नता का अध्ययन करके व्यक्तित्व को मापा जा सकता है।
कूट संकेत :

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22. किण्डर गार्टन पद्धति के प्रतिपादक हैं-

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24. निम्नांकित में से कौन-सा कथन शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 के संबंध में सही नहीं है?

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31. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
बचपन में मेलों में जाने की अजीब उमंग थी, उछाह था। साथ में देख-रेख के लिए लोग जाते थे, पर मन में यही होता था कि कब उनको झाँसा देखकर निकल जाएँ और अपने हम उम्र साथियों के साथ स्वतंत्र विचरें, अपार सागर में उमंग की छोटी-सी नाव लेकर खो जाने का भय हो और उस भय में भी एक न्योता हो कि खोकर देखें कि खोना कैसा होता हे। घर में लुका-छिपी के खेल में छिपना मुश्किल होता है, कहीं ओट नहीं मिलती है और भीड़ से बड़ी कोई ओट नहीं होती है, भीड़ से बड़ा कोई भय भी नहीं होता। अपने आदमी भी भीड़ में पराये हो जाते हैं। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि भीड़ में आदमी गिर जाता है तो कोई अपना ही कुचल कर चल देता है, क्योंकि उस समय वह आदमी होता ही नहीं, भीड़ होती है। भीड़ कई प्रकार की होती है। एक भीड़ होती है रेल यात्रा के समय  आदमी स्थान के लिए रगड़ता-झगड़ता है, फिर थोड़ी ही देर में जाने कितने जमांतर का परिचय जग जाता है, बिछड़ते हुए भावुक हो जाता है। एक भीड़ होती है ऐसे जुलूस की जिसमें उमंग ही उमंग होती है, एक उमंग दूसरी के लिए एक प्रेरक होती है, वह भीड़ अब स्वाधीन भारत में नहीं दिखाई पड़ती। ऐसे भी जुलूस होते हैं जहाँ भीड़, भाड़े के आदमियों की होती है, जिन्हें पता ही नहीं होता कि हम किसलिए जुलूस में शरीक हैं। वहाँ बुलवाये गए नारे होते हैं, मन में वादा की गई धनराशि की चिंता होती है। वहाँ उमंग नहीं होती, उमंग का परिहास होता है। इन जुलूसों की भीड़ से बिल्कुल अलग एक भीड़ होती है जो मंदिरों में दर्शन के लिए जाती है, जो दर्शन की इच्छा से जाती है और जुलूस की नियंत्रित भीड़ से अधिक संयत और शांत होती है, आरती के समय अपने ढंग से ध्यानस्थ होती है। इन सबसे अलग है मेले की भीड़। कुछ उचक्के लोगों का अपवाद छोड़कर यह राग-रंग की उत्सुकता का महासागर होती है। कितने राग मिलते हैं, एक-दूसरे में घुलते हैं, कितने रंग मिलकर मेले की रंगत बनते हैं। प्रयाग के माघ मेले में किन-किन प्रदेशों के यात्रा गीत अलग-अलग धुनों में गूँजते हैं और सबकी एक अनुगूँज पूरे मेले को तरंगित करती रहती है। गाँव के मेले में भी यही होता था। किसी की पहचान खोती नहीं थी, लेकिन सबकी पहचान मिलकर एक मेले की पहचान बन जाती थी।

‘सबकी एक अनुगूँज पूरे मेले को तरंगित करती रहती है।‘ वाक्य में रेखांकित पद का अर्थ है–

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32. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
हमारे इतिहास के अध्ययन ने हमें यह दर्शाया है कि जीवन प्राय: बहुत क्रूर तथा कठोर है। इसके लिए उत्तेजित होना या लोगों को पूरी तरह दोषी ठहराना मूर्खता है और उसका कोई लाभ नहीं। गरीबी, दु:ख और शोषण के कारणों को समझने और उनको दूर करने के प्रयत्नों में ही समझदारी है। यदि हम ऐसा करने में असफल हो जाते हैं और घटनाओं की दौड़ में पीछे रह जाते हैं तो हम अवश्य कष्ट पाते हैं। भारत इस तरह से पीछे रह गया। इसके समाज ने पुरातन परंपरा को धारण कर लिया, इसके सामाजिक ढाँचे ने अपने जीवन और शक्ति को खो दिया और यह निष्क्रिय होने लगा। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत ने कष्ट पाया। अंग्रेज इसका कारण रहे हैं। यदि अंग्रेज ऐसा न करते तो शायद कोई और लोग ऐसा ही करते।
अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित भी किया। उनके नए और हष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ, परंतु जिनके भाग्य में नए राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था। तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब निश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था, परंतु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतंत्रता दे देगा।
भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिंदू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परंतु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ, ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परंतु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमें सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग प्रभावित हो गए थे। उन्नींसवी शताब्दी के आरंभ में पश्चिमी तरीकों से हिंदू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिंदू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे। द्वितीय प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था। इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान् व्यक्ति और एक महान विद्वान् जिसका नाम सती प्रथा की समाप्ति के संबंध में लिया जाता है। वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था। वे धार्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्म समाज कहलाया।

‘गरीब’ शब्द किस भाषा का शब्द है?

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33. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
हमारे इतिहास के अध्ययन ने हमें यह दर्शाया है कि जीवन प्राय: बहुत क्रूर तथा कठोर है। इसके लिए उत्तेजित होना या लोगों को पूरी तरह दोषी ठहराना मूर्खता है और उसका कोई लाभ नहीं। गरीबी, दु:ख और शोषण के कारणों को समझने और उनको दूर करने के प्रयत्नों में ही समझदारी है। यदि हम ऐसा करने में असफल हो जाते हैं और घटनाओं की दौड़ में पीछे रह जाते हैं तो हम अवश्य कष्ट पाते हैं। भारत इस तरह से पीछे रह गया। इसके समाज ने पुरातन परंपरा को धारण कर लिया, इसके सामाजिक ढाँचे ने अपने जीवन और शक्ति को खो दिया और यह निष्क्रिय होने लगा। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत ने कष्ट पाया। अंग्रेज इसका कारण रहे हैं। यदि अंग्रेज ऐसा न करते तो शायद कोई और लोग ऐसा ही करते।
अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित भी किया। उनके नए और हष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ, परंतु जिनके भाग्य में नए राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था। तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब निश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था, परंतु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतंत्रता दे देगा।
भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिंदू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परंतु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ, ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परंतु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमें सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग प्रभावित हो गए थे। उन्नींसवी शताब्दी के आरंभ में पश्चिमी तरीकों से हिंदू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिंदू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे। द्वितीय प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था। इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान् व्यक्ति और एक महान विद्वान् जिसका नाम सती प्रथा की समाप्ति के संबंध में लिया जाता है। वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था। वे धार्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्म समाज कहलाया।

निम्नलिखित में से स्त्रीलिंग शब्द नहीं है–

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34. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
हमारे इतिहास के अध्ययन ने हमें यह दर्शाया है कि जीवन प्राय: बहुत क्रूर तथा कठोर है। इसके लिए उत्तेजित होना या लोगों को पूरी तरह दोषी ठहराना मूर्खता है और उसका कोई लाभ नहीं। गरीबी, दु:ख और शोषण के कारणों को समझने और उनको दूर करने के प्रयत्नों में ही समझदारी है। यदि हम ऐसा करने में असफल हो जाते हैं और घटनाओं की दौड़ में पीछे रह जाते हैं तो हम अवश्य कष्ट पाते हैं। भारत इस तरह से पीछे रह गया। इसके समाज ने पुरातन परंपरा को धारण कर लिया, इसके सामाजिक ढाँचे ने अपने जीवन और शक्ति को खो दिया और यह निष्क्रिय होने लगा। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत ने कष्ट पाया। अंग्रेज इसका कारण रहे हैं। यदि अंग्रेज ऐसा न करते तो शायद कोई और लोग ऐसा ही करते।
अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित भी किया। उनके नए और हष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ, परंतु जिनके भाग्य में नए राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था। तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब निश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था, परंतु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतंत्रता दे देगा।
भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिंदू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परंतु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ, ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परंतु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमें सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग प्रभावित हो गए थे। उन्नींसवी शताब्दी के आरंभ में पश्चिमी तरीकों से हिंदू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिंदू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे। द्वितीय प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था। इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान् व्यक्ति और एक महान विद्वान् जिसका नाम सती प्रथा की समाप्ति के संबंध में लिया जाता है। वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था। वे धार्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्म समाज कहलाया।

गद्यांश में ‘शताब्दी’ शब्द का सही समास-विग्रह होगा–

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35. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
बचपन में मेलों में जाने की अजीब उमंग थी, उछाह था। साथ में देख-रेख के लिए लोग जाते थे, पर मन में यही होता था कि कब उनको झाँसा देखकर निकल जाएँ और अपने हम उम्र साथियों के साथ स्वतंत्र विचरें, अपार सागर में उमंग की छोटी-सी नाव लेकर खो जाने का भय हो और उस भय में भी एक न्योता हो कि खोकर देखें कि खोना कैसा होता हे। घर में लुका-छिपी के खेल में छिपना मुश्किल होता है, कहीं ओट नहीं मिलती है और भीड़ से बड़ी कोई ओट नहीं होती है, भीड़ से बड़ा कोई भय भी नहीं होता। अपने आदमी भी भीड़ में पराये हो जाते हैं। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि भीड़ में आदमी गिर जाता है तो कोई अपना ही कुचल कर चल देता है, क्योंकि उस समय वह आदमी होता ही नहीं, भीड़ होती है। भीड़ कई प्रकार की होती है। एक भीड़ होती है रेल यात्रा के समय  आदमी स्थान के लिए रगड़ता-झगड़ता है, फिर थोड़ी ही देर में जाने कितने जमांतर का परिचय जग जाता है, बिछड़ते हुए भावुक हो जाता है। एक भीड़ होती है ऐसे जुलूस की जिसमें उमंग ही उमंग होती है, एक उमंग दूसरी के लिए एक प्रेरक होती है, वह भीड़ अब स्वाधीन भारत में नहीं दिखाई पड़ती। ऐसे भी जुलूस होते हैं जहाँ भीड़, भाड़े के आदमियों की होती है, जिन्हें पता ही नहीं होता कि हम किसलिए जुलूस में शरीक हैं। वहाँ बुलवाये गए नारे होते हैं, मन में वादा की गई धनराशि की चिंता होती है। वहाँ उमंग नहीं होती, उमंग का परिहास होता है। इन जुलूसों की भीड़ से बिल्कुल अलग एक भीड़ होती है जो मंदिरों में दर्शन के लिए जाती है, जो दर्शन की इच्छा से जाती है और जुलूस की नियंत्रित भीड़ से अधिक संयत और शांत होती है, आरती के समय अपने ढंग से ध्यानस्थ होती है। इन सबसे अलग है मेले की भीड़। कुछ उचक्के लोगों का अपवाद छोड़कर यह राग-रंग की उत्सुकता का महासागर होती है। कितने राग मिलते हैं, एक-दूसरे में घुलते हैं, कितने रंग मिलकर मेले की रंगत बनते हैं। प्रयाग के माघ मेले में किन-किन प्रदेशों के यात्रा गीत अलग-अलग धुनों में गूँजते हैं और सबकी एक अनुगूँज पूरे मेले को तरंगित करती रहती है। गाँव के मेले में भी यही होता था। किसी की पहचान खोती नहीं थी, लेकिन सबकी पहचान मिलकर एक मेले की पहचान बन जाती थी।

गद्यांश में आए ‘वादा’ शब्द का बहुवचन निम्नलिखित में से होगा–

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36. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
हमारे इतिहास के अध्ययन ने हमें यह दर्शाया है कि जीवन प्राय: बहुत क्रूर तथा कठोर है। इसके लिए उत्तेजित होना या लोगों को पूरी तरह दोषी ठहराना मूर्खता है और उसका कोई लाभ नहीं। गरीबी, दु:ख और शोषण के कारणों को समझने और उनको दूर करने के प्रयत्नों में ही समझदारी है। यदि हम ऐसा करने में असफल हो जाते हैं और घटनाओं की दौड़ में पीछे रह जाते हैं तो हम अवश्य कष्ट पाते हैं। भारत इस तरह से पीछे रह गया। इसके समाज ने पुरातन परंपरा को धारण कर लिया, इसके सामाजिक ढाँचे ने अपने जीवन और शक्ति को खो दिया और यह निष्क्रिय होने लगा। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत ने कष्ट पाया। अंग्रेज इसका कारण रहे हैं। यदि अंग्रेज ऐसा न करते तो शायद कोई और लोग ऐसा ही करते।
अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित भी किया। उनके नए और हष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ, परंतु जिनके भाग्य में नए राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था। तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब निश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था, परंतु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतंत्रता दे देगा।
भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिंदू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परंतु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ, ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परंतु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमें सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग प्रभावित हो गए थे। उन्नींसवी शताब्दी के आरंभ में पश्चिमी तरीकों से हिंदू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिंदू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे। द्वितीय प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था। इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान् व्यक्ति और एक महान विद्वान् जिसका नाम सती प्रथा की समाप्ति के संबंध में लिया जाता है। वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था। वे धार्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्म समाज कहलाया।

“दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे।” उक्त कथन में रेखांकित पद है–

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37. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
हमारे इतिहास के अध्ययन ने हमें यह दर्शाया है कि जीवन प्राय: बहुत क्रूर तथा कठोर है। इसके लिए उत्तेजित होना या लोगों को पूरी तरह दोषी ठहराना मूर्खता है और उसका कोई लाभ नहीं। गरीबी, दु:ख और शोषण के कारणों को समझने और उनको दूर करने के प्रयत्नों में ही समझदारी है। यदि हम ऐसा करने में असफल हो जाते हैं और घटनाओं की दौड़ में पीछे रह जाते हैं तो हम अवश्य कष्ट पाते हैं। भारत इस तरह से पीछे रह गया। इसके समाज ने पुरातन परंपरा को धारण कर लिया, इसके सामाजिक ढाँचे ने अपने जीवन और शक्ति को खो दिया और यह निष्क्रिय होने लगा। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत ने कष्ट पाया। अंग्रेज इसका कारण रहे हैं। यदि अंग्रेज ऐसा न करते तो शायद कोई और लोग ऐसा ही करते।
अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित भी किया। उनके नए और हष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ, परंतु जिनके भाग्य में नए राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था। तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब निश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था, परंतु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतंत्रता दे देगा।
भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिंदू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परंतु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ, ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परंतु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमें सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग प्रभावित हो गए थे। उन्नींसवी शताब्दी के आरंभ में पश्चिमी तरीकों से हिंदू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिंदू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे। द्वितीय प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था। इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान् व्यक्ति और एक महान विद्वान् जिसका नाम सती प्रथा की समाप्ति के संबंध में लिया जाता है। वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था। वे धार्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्म समाज कहलाया।

उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया।‘ वाक्य में रेखांकित पद है–

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38. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
बचपन में मेलों में जाने की अजीब उमंग थी, उछाह था। साथ में देख-रेख के लिए लोग जाते थे, पर मन में यही होता था कि कब उनको झाँसा देखकर निकल जाएँ और अपने हम उम्र साथियों के साथ स्वतंत्र विचरें, अपार सागर में उमंग की छोटी-सी नाव लेकर खो जाने का भय हो और उस भय में भी एक न्योता हो कि खोकर देखें कि खोना कैसा होता हे। घर में लुका-छिपी के खेल में छिपना मुश्किल होता है, कहीं ओट नहीं मिलती है और भीड़ से बड़ी कोई ओट नहीं होती है, भीड़ से बड़ा कोई भय भी नहीं होता। अपने आदमी भी भीड़ में पराये हो जाते हैं। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि भीड़ में आदमी गिर जाता है तो कोई अपना ही कुचल कर चल देता है, क्योंकि उस समय वह आदमी होता ही नहीं, भीड़ होती है। भीड़ कई प्रकार की होती है। एक भीड़ होती है रेल यात्रा के समय  आदमी स्थान के लिए रगड़ता-झगड़ता है, फिर थोड़ी ही देर में जाने कितने जमांतर का परिचय जग जाता है, बिछड़ते हुए भावुक हो जाता है। एक भीड़ होती है ऐसे जुलूस की जिसमें उमंग ही उमंग होती है, एक उमंग दूसरी के लिए एक प्रेरक होती है, वह भीड़ अब स्वाधीन भारत में नहीं दिखाई पड़ती। ऐसे भी जुलूस होते हैं जहाँ भीड़, भाड़े के आदमियों की होती है, जिन्हें पता ही नहीं होता कि हम किसलिए जुलूस में शरीक हैं। वहाँ बुलवाये गए नारे होते हैं, मन में वादा की गई धनराशि की चिंता होती है। वहाँ उमंग नहीं होती, उमंग का परिहास होता है। इन जुलूसों की भीड़ से बिल्कुल अलग एक भीड़ होती है जो मंदिरों में दर्शन के लिए जाती है, जो दर्शन की इच्छा से जाती है और जुलूस की नियंत्रित भीड़ से अधिक संयत और शांत होती है, आरती के समय अपने ढंग से ध्यानस्थ होती है। इन सबसे अलग है मेले की भीड़। कुछ उचक्के लोगों का अपवाद छोड़कर यह राग-रंग की उत्सुकता का महासागर होती है। कितने राग मिलते हैं, एक-दूसरे में घुलते हैं, कितने रंग मिलकर मेले की रंगत बनते हैं। प्रयाग के माघ मेले में किन-किन प्रदेशों के यात्रा गीत अलग-अलग धुनों में गूँजते हैं और सबकी एक अनुगूँज पूरे मेले को तरंगित करती रहती है। गाँव के मेले में भी यही होता था। किसी की पहचान खोती नहीं थी, लेकिन सबकी पहचान मिलकर एक मेले की पहचान बन जाती थी।

“बचपन में मेलों में जाने की अजीब उमंग थी।” यह वाक्य किस काल का है?

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39. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
हमारे इतिहास के अध्ययन ने हमें यह दर्शाया है कि जीवन प्राय: बहुत क्रूर तथा कठोर है। इसके लिए उत्तेजित होना या लोगों को पूरी तरह दोषी ठहराना मूर्खता है और उसका कोई लाभ नहीं। गरीबी, दु:ख और शोषण के कारणों को समझने और उनको दूर करने के प्रयत्नों में ही समझदारी है। यदि हम ऐसा करने में असफल हो जाते हैं और घटनाओं की दौड़ में पीछे रह जाते हैं तो हम अवश्य कष्ट पाते हैं। भारत इस तरह से पीछे रह गया। इसके समाज ने पुरातन परंपरा को धारण कर लिया, इसके सामाजिक ढाँचे ने अपने जीवन और शक्ति को खो दिया और यह निष्क्रिय होने लगा। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत ने कष्ट पाया। अंग्रेज इसका कारण रहे हैं। यदि अंग्रेज ऐसा न करते तो शायद कोई और लोग ऐसा ही करते।
अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित भी किया। उनके नए और हष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ, परंतु जिनके भाग्य में नए राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था। तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब निश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था, परंतु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतंत्रता दे देगा।
भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिंदू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परंतु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ, ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परंतु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमें सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग प्रभावित हो गए थे। उन्नींसवी शताब्दी के आरंभ में पश्चिमी तरीकों से हिंदू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिंदू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे। द्वितीय प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था। इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान् व्यक्ति और एक महान विद्वान् जिसका नाम सती प्रथा की समाप्ति के संबंध में लिया जाता है। वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था। वे धार्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्म समाज कहलाया।

‘अध्ययन’ शब्द का संधि-विच्छेद है–

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40. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
हमारे इतिहास के अध्ययन ने हमें यह दर्शाया है कि जीवन प्राय: बहुत क्रूर तथा कठोर है। इसके लिए उत्तेजित होना या लोगों को पूरी तरह दोषी ठहराना मूर्खता है और उसका कोई लाभ नहीं। गरीबी, दु:ख और शोषण के कारणों को समझने और उनको दूर करने के प्रयत्नों में ही समझदारी है। यदि हम ऐसा करने में असफल हो जाते हैं और घटनाओं की दौड़ में पीछे रह जाते हैं तो हम अवश्य कष्ट पाते हैं। भारत इस तरह से पीछे रह गया। इसके समाज ने पुरातन परंपरा को धारण कर लिया, इसके सामाजिक ढाँचे ने अपने जीवन और शक्ति को खो दिया और यह निष्क्रिय होने लगा। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत ने कष्ट पाया। अंग्रेज इसका कारण रहे हैं। यदि अंग्रेज ऐसा न करते तो शायद कोई और लोग ऐसा ही करते।
अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित भी किया। उनके नए और हष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ, परंतु जिनके भाग्य में नए राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था। तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब निश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था, परंतु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतंत्रता दे देगा।
भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिंदू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परंतु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ, ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परंतु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमें सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग प्रभावित हो गए थे। उन्नींसवी शताब्दी के आरंभ में पश्चिमी तरीकों से हिंदू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिंदू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे। द्वितीय प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था। इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान् व्यक्ति और एक महान विद्वान् जिसका नाम सती प्रथा की समाप्ति के संबंध में लिया जाता है। वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था। वे धार्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्म समाज कहलाया।

‘निष्क्रिय’ शब्द का विलोम है–

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41. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
बचपन में मेलों में जाने की अजीब उमंग थी, उछाह था। साथ में देख-रेख के लिए लोग जाते थे, पर मन में यही होता था कि कब उनको झाँसा देखकर निकल जाएँ और अपने हम उम्र साथियों के साथ स्वतंत्र विचरें, अपार सागर में उमंग की छोटी-सी नाव लेकर खो जाने का भय हो और उस भय में भी एक न्योता हो कि खोकर देखें कि खोना कैसा होता हे। घर में लुका-छिपी के खेल में छिपना मुश्किल होता है, कहीं ओट नहीं मिलती है और भीड़ से बड़ी कोई ओट नहीं होती है, भीड़ से बड़ा कोई भय भी नहीं होता। अपने आदमी भी भीड़ में पराये हो जाते हैं। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि भीड़ में आदमी गिर जाता है तो कोई अपना ही कुचल कर चल देता है, क्योंकि उस समय वह आदमी होता ही नहीं, भीड़ होती है। भीड़ कई प्रकार की होती है। एक भीड़ होती है रेल यात्रा के समय  आदमी स्थान के लिए रगड़ता-झगड़ता है, फिर थोड़ी ही देर में जाने कितने जमांतर का परिचय जग जाता है, बिछड़ते हुए भावुक हो जाता है। एक भीड़ होती है ऐसे जुलूस की जिसमें उमंग ही उमंग होती है, एक उमंग दूसरी के लिए एक प्रेरक होती है, वह भीड़ अब स्वाधीन भारत में नहीं दिखाई पड़ती। ऐसे भी जुलूस होते हैं जहाँ भीड़, भाड़े के आदमियों की होती है, जिन्हें पता ही नहीं होता कि हम किसलिए जुलूस में शरीक हैं। वहाँ बुलवाये गए नारे होते हैं, मन में वादा की गई धनराशि की चिंता होती है। वहाँ उमंग नहीं होती, उमंग का परिहास होता है। इन जुलूसों की भीड़ से बिल्कुल अलग एक भीड़ होती है जो मंदिरों में दर्शन के लिए जाती है, जो दर्शन की इच्छा से जाती है और जुलूस की नियंत्रित भीड़ से अधिक संयत और शांत होती है, आरती के समय अपने ढंग से ध्यानस्थ होती है। इन सबसे अलग है मेले की भीड़। कुछ उचक्के लोगों का अपवाद छोड़कर यह राग-रंग की उत्सुकता का महासागर होती है। कितने राग मिलते हैं, एक-दूसरे में घुलते हैं, कितने रंग मिलकर मेले की रंगत बनते हैं। प्रयाग के माघ मेले में किन-किन प्रदेशों के यात्रा गीत अलग-अलग धुनों में गूँजते हैं और सबकी एक अनुगूँज पूरे मेले को तरंगित करती रहती है। गाँव के मेले में भी यही होता था। किसी की पहचान खोती नहीं थी, लेकिन सबकी पहचान मिलकर एक मेले की पहचान बन जाती थी।

गद्यांश में आया ‘जुलूस’ शब्द किस लिंग का है?

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42. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
हमारे इतिहास के अध्ययन ने हमें यह दर्शाया है कि जीवन प्राय: बहुत क्रूर तथा कठोर है। इसके लिए उत्तेजित होना या लोगों को पूरी तरह दोषी ठहराना मूर्खता है और उसका कोई लाभ नहीं। गरीबी, दु:ख और शोषण के कारणों को समझने और उनको दूर करने के प्रयत्नों में ही समझदारी है। यदि हम ऐसा करने में असफल हो जाते हैं और घटनाओं की दौड़ में पीछे रह जाते हैं तो हम अवश्य कष्ट पाते हैं। भारत इस तरह से पीछे रह गया। इसके समाज ने पुरातन परंपरा को धारण कर लिया, इसके सामाजिक ढाँचे ने अपने जीवन और शक्ति को खो दिया और यह निष्क्रिय होने लगा। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत ने कष्ट पाया। अंग्रेज इसका कारण रहे हैं। यदि अंग्रेज ऐसा न करते तो शायद कोई और लोग ऐसा ही करते।
अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित भी किया। उनके नए और हष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ, परंतु जिनके भाग्य में नए राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था। तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब निश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था, परंतु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतंत्रता दे देगा।
भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिंदू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परंतु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ, ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परंतु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमें सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग प्रभावित हो गए थे। उन्नींसवी शताब्दी के आरंभ में पश्चिमी तरीकों से हिंदू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिंदू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे। द्वितीय प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था। इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान् व्यक्ति और एक महान विद्वान् जिसका नाम सती प्रथा की समाप्ति के संबंध में लिया जाता है। वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था। वे धार्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्म समाज कहलाया।

‘धार्मिक’ शब्द में प्रत्यय है–

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59. वस्तुनिष्ठ परीक्षा की उपयोगिता का सर्वाधिक प्रमुख कारण है-

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61. स किं सखा साधु न शास्ति योऽधिपं हितात्र यः संशृणुते स किं प्रभुः।
सदानुकूलेषु हि कुर्वते इतिं नृपेष्वआत्येषु च सर्वसम्पदः।।
‘एकता' इत्यत्र कः प्रत्ययः?

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62. भ्रष्टाचारः न केवलं भारतस्य अपितु अखिलस्यापि विश्वस्य ज्वलन्ता समस्या अस्ति। 'भ्रष्टाचारः' इति नाम श्रुत्वैव जनानां मनस्सु नैकविधानि विचाराणि समुत्पद्यन्ते, किन्तु विचाराणि यथा आगच्छन्ति तथैव यान्ति च। अस्याः समस्यायाः उत्तरदायी, कश्चास्याः जनकः इति प्रश्नः पौनः पुन्येन भूयते। वास्तविकरूपेण वयमेव अस्याः समस्यायाः जनकत्वं सम्पादयामः। यदि अस्माकं किमपि लघुकार्यं भवति चेत् वयम् अधिकारिभ्यः उत्कोचधनं दमः, यतः असमाकं कार्यम् अविलम्बेन स्यात्। किन्तु एवं न कृत्वा वयं स्वकार्यं विना उत्कोचधनेन कारयामश्चेत् आस्माकीनः देशः भ्रष्टाचारमुक्तः भवितुं शक्यते।

‘कारयामः' इत्यत्र वचनं किम्?

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63. स किं सखा साधु न शास्ति योऽधिपं हितात्र यः संशृणुते स किं प्रभुः।
सदानुकूलेषु हि कुर्वते इतिं नृपेष्वआत्येषु च सर्वसम्पदः।।
‘कुर्वते' इत्यत्र किं वचनम्?

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64. स किं सखा साधु न शास्ति योऽधिपं हितात्र यः संशृणुते स किं प्रभुः।

सदानुकूलेषु हि कुर्वते इतिं नृपेष्वआत्येषु च सर्वसम्पदः।।

नृपेष्वामात्येषु इत्यत्र कः सन्धिः?

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65. भ्रष्टाचारः न केवलं भारतस्य अपितु अखिलस्यापि विश्वस्य ज्वलन्ता समस्या अस्ति। 'भ्रष्टाचारः' इति नाम श्रुत्वैव जनानां मनस्सु नैकविधानि विचाराणि समुत्पद्यन्ते, किन्तु विचाराणि यथा आगच्छन्ति तथैव यान्ति च। अस्याः समस्यायाः उत्तरदायी, कश्चास्याः जनकः इति प्रश्नः पौनः पुन्येन भूयते। वास्तविकरूपेण वयमेव अस्याः समस्यायाः जनकत्वं सम्पादयामः। यदि अस्माकं किमपि लघुकार्यं भवति चेत् वयम् अधिकारिभ्यः उत्कोचधनं दमः, यतः असमाकं कार्यम् अविलम्बेन स्यात्। किन्तु एवं न कृत्वा वयं स्वकार्यं विना उत्कोचधनेन कारयामश्चेत् आस्माकीनः देशः भ्रष्टाचारमुक्तः भवितुं शक्यते।

‘समुत्पद्यन्ते' इत्यत्र कति उपसर्गाः?

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66. भ्रष्टाचारः न केवलं भारतस्य अपितु अखिलस्यापि विश्वस्य ज्वलन्ता समस्या अस्ति। 'भ्रष्टाचारः' इति नाम श्रुत्वैव जनानां मनस्सु नैकविधानि विचाराणि समुत्पद्यन्ते, किन्तु विचाराणि यथा आगच्छन्ति तथैव यान्ति च। अस्याः समस्यायाः उत्तरदायी, कश्चास्याः जनकः इति प्रश्नः पौनः पुन्येन भूयते। वास्तविकरूपेण वयमेव अस्याः समस्यायाः जनकत्वं सम्पादयामः। यदि अस्माकं किमपि लघुकार्यं भवति चेत् वयम् अधिकारिभ्यः उत्कोचधनं दमः, यतः असमाकं कार्यम् अविलम्बेन स्यात्। किन्तु एवं न कृत्वा वयं स्वकार्यं विना उत्कोचधनेन कारयामश्चेत् आस्माकीनः देशः भ्रष्टाचारमुक्तः भवितुं शक्यते।

‘भवितुम्' इत्यत्र प्रत्ययः वर्तते -

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67. भ्रष्टाचारः न केवलं भारतस्य अपितु अखिलस्यापि विश्वस्य ज्वलन्ता समस्या अस्ति। 'भ्रष्टाचारः' इति नाम श्रुत्वैव जनानां मनस्सु नैकविधानि विचाराणि समुत्पद्यन्ते, किन्तु विचाराणि यथा आगच्छन्ति तथैव यान्ति च। अस्याः समस्यायाः उत्तरदायी, कश्चास्याः जनकः इति प्रश्नः पौनः पुन्येन भूयते। वास्तविकरूपेण वयमेव अस्याः समस्यायाः जनकत्वं सम्पादयामः। यदि अस्माकं किमपि लघुकार्यं भवति चेत् वयम् अधिकारिभ्यः उत्कोचधनं दमः, यतः असमाकं कार्यम् अविलम्बेन स्यात्। किन्तु एवं न कृत्वा वयं स्वकार्यं विना उत्कोचधनेन कारयामश्चेत् आस्माकीनः देशः भ्रष्टाचारमुक्तः भवितुं शक्यते।

‘भ्रष्टाचारमुक्तः' इत्यत्र समासः?

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68. भ्रष्टाचारः न केवलं भारतस्य अपितु अखिलस्यापि विश्वस्य ज्वलन्ता समस्या अस्ति। 'भ्रष्टाचारः' इति नाम श्रुत्वैव जनानां मनस्सु नैकविधानि विचाराणि समुत्पद्यन्ते, किन्तु विचाराणि यथा आगच्छन्ति तथैव यान्ति च। अस्याः समस्यायाः उत्तरदायी, कश्चास्याः जनकः इति प्रश्नः पौनः पुन्येन भूयते। वास्तविकरूपेण वयमेव अस्याः समस्यायाः जनकत्वं सम्पादयामः। यदि अस्माकं किमपि लघुकार्यं भवति चेत् वयम् अधिकारिभ्यः उत्कोचधनं दमः, यतः असमाकं कार्यम् अविलम्बेन स्यात्। किन्तु एवं न कृत्वा वयं स्वकार्यं विना उत्कोचधनेन कारयामश्चेत् आस्माकीनः देशः भ्रष्टाचारमुक्तः भवितुं शक्यते

‘भ्रष्टाचार' इत्यत्र सन्धिः वर्तते?

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69. स किं सखा साधु न शास्ति योऽधिपं हितात्र यः संशृणुते स किं प्रभुः।
सदानुकूलेषु हि कुर्वते इतिं नृपेष्वआत्येषु च सर्वसम्पदः।।
‘सदानुकूलेषु' अस्य विच्छेदः -

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91. यदि x=15">√x=15 तो x का मान क्या होगा?

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92. 2x+5=9">2x+5=9 समीकरण को हल करें और x  का मान निकालें।

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94. 23 × 34 एवं 25 × 32 का महत्तम समापवर्तक क्या है?

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99. यदि a:b = b:c हो तो a4:b4">a⁴:b=?

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114. “किसी गणितज्ञ के कार्यों की प्रशंसा करना” – किस मूल्य से सम्बन्धित है?

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115. प्रारंभिक स्तर पर गणित के लिखित कार्य में अधिकांश गलतियाँ किससे संबंध रहती है?

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116. गणित की भाषा में निम्नलिखित में से किसका प्रयोग नहीं किया जाता है?

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117. आगमन विधि द्वारा बालकों को प्रेरणा मिलती है-

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118. गणित शिक्षण में प्रायोजना विधि के सोपान बिना तार्किक क्रम के दिये जा रहे हैं –
(i) प्रोजेक्ट का चुनाव और उद्देश्य तय करना
(ii) प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन
(iii) परिस्थिति उपलब्ध कराना
(iv) प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार करना
(v) प्रोजेक्ट का अभिलेखन
(vi) प्रोजेक्ट का मूल्यांकन
निम्नलिखित में से कौन-सा विकल्प प्रोजेक्ट विधि के उपर्युक्त उल्लिखित सोपानों का सही तार्किक क्रम दर्शा रहा है?

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121. निम्नलिखित में से कौनसा जन्तु उभयचर वर्ग मे आता है ?

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122. डेंगू का रोगवाहक है ?

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123. फ्लोराइड के अधिक सेवन से कौनसा रोग होता है ?

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124. निम्नलिखित में से कौनसा भाग छोटी आँत  का नहीं है ?

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125. किस ग्रह को "लेटा हुआ ग्रह" कहते है ?

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126. बालुका -स्तूप के मध्य वर्षा जल एकत्र हेतु निर्मित एनिकट को क्या कहते है ?

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127. भारत के राष्ट्रगान को सर्वप्रथम कहाँ और कब गाया गया ?

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128. शीतला माता का मेला कब भरा जाता है ?

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129. निम्नलिखित युग्मों में से असुमेलित युग्म हैं -

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130. मसरू,इलायची,टसर,मलमल है :-

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131. निम्नलिखित में से कौनसा मंदिर उदयपुर में स्थित नहीं हैं ?

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132. किस किले को "राजस्थान का सिंहद्वार" कहा जाता है ?

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133. निम्नलिखित में से कौनसी परिवार की विशेषता नहीं हैं?

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134. बाल-श्रम निषेध दिवस कब मनाया जाता हैं ?

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135. निम्नलिखित में से प्राकृतिक रेशे है-

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136. भील जनजाति द्वारा निर्मित आवास कहलाता है-

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137. आर्द्र कृषि के लिए कौनसी मिट्टी आवश्यक है ?

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138. निम्नलिखित में से कौन-सा उद्योग कृषि आधारित है?

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139. कौनसे संविधान संशोधन के तहत् सहकारिता को संवैधानिक दर्जा दिया गया ?

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140. दिए गए यातायात संकेत का अर्थ हैं -

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