Model Paper 2: REET Level 2 SST Free Test Series 2025: Important Questions

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REET Level 2 SST की तैयारी के लिए निःशुल्क टेस्ट सीरीज 2025 में शामिल हों! मॉडल पेपर 2 में मनोविज्ञान, हिंदी, संस्कृत और सामाजिक विज्ञान के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं। इस टेस्ट सीरीज के माध्यम से अपनी तैयारी को परखें और REET परीक्षा में सफलता प्राप्त करें।

विषयवार प्रश्न संख्या:

विषयप्रश्न संख्या
मनोविज्ञान30
हिंदी30
संस्कृत30
सामाजिक विज्ञान60
कुल150

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Model Paper 2: REET लेवल 2nd SST | Full Length Test 150 प्रश्न | भाषा: हिंदी | संस्कृत

Model Paper 2: REET लेवल 2nd SST | Full Length Test 150 प्रश्न | भाषा: हिंदी | संस्कृत

🔴महत्वपूर्ण निर्देश 🔴

✅ टेस्ट शुरू करने से पहले कृपया सही जानकारी भरे |
✅ सभी प्रश्नों को आराम से पढ़कर उत्तर दे |
✅सभी प्रश्नों का उत्तर टेस्ट पूर्ण करने पर दिखाई देगा |
✅ टेस्ट पूर्ण करने पर सभी प्रश्नों के उत्तर विस्तार से समझाया गया है |

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31. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न का उत्तर दीजिए :
स्वावलंबन सफलता की कुंजी है। स्वावलंबी व्यक्ति जीवन में यश और धन दोनों अर्जित करता है। दूसरे के सहारे जीने वाला व्यक्ति तिरस्कार का पात्र बनता है। निरंतर निरादर और तिरस्कार पाता हुआ वह अपने आप में हीन-भावना से ग्रस्त होने लगता है। जीवन का यह तथ्य व्यक्ति के जीवन पर ही नहीं, वरन जातीय व राष्ट्र पर भी लागू होता है। यही कारण है कि स्वाधीनता संघर्ष के दौरान गाँधीजी ने देशवासियों में जातीय गौरव का भाव जगाने हेतु स्वावलंबन का संदेश दिया था। चरखा-आंदोलन और डांडी कूच इस दिशा में गाँधीजी के बड़े प्रभावी कदम सिद्ध हुए। स्वावलंबन के मार्ग पर चलकर ही व्यक्ति, जाति, समाज अथवा राष्ट्र उत्कर्ष को प्राप्त होते हैं।

निम्नलिखित में से विदेशी शब्द बताइए:

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32. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न का उत्तर दीजिए :
स्वावलंबन सफलता की कुंजी है। स्वावलंबी व्यक्ति जीवन में यश और धन दोनों अर्जित करता है। दूसरे के सहारे जीने वाला व्यक्ति तिरस्कार का पात्र बनता है। निरंतर निरादर और तिरस्कार पाता हुआ वह अपने आप में हीन-भावना से ग्रस्त होने लगता है। जीवन का यह तथ्य व्यक्ति के जीवन पर ही नहीं, वरन जातीय व राष्ट्र पर भी लागू होता है। यही कारण है कि स्वाधीनता संघर्ष के दौरान गाँधीजी ने देशवासियों में जातीय गौरव का भाव जगाने हेतु स्वावलंबन का संदेश दिया था। चरखा-आंदोलन और डांडी कूच इस दिशा में गाँधीजी के बड़े प्रभावी कदम सिद्ध हुए। स्वावलंबन के मार्ग पर चलकर ही व्यक्ति, जाति, समाज अथवा राष्ट्र उत्कर्ष को प्राप्त होते हैं।

‘स्वावलंबी’ शब्द के लिए प्रयुक्त सही वाक्यांश है-

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33. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न का उत्तर दीजिए :
स्वावलंबन सफलता की कुंजी है। स्वावलंबी व्यक्ति जीवन में यश और धन दोनों अर्जित करता है। दूसरे के सहारे जीने वाला व्यक्ति तिरस्कार का पात्र बनता है। निरंतर निरादर और तिरस्कार पाता हुआ वह अपने आप में हीन-भावना से ग्रस्त होने लगता है। जीवन का यह तथ्य व्यक्ति के जीवन पर ही नहीं, वरन जातीय व राष्ट्र पर भी लागू होता है। यही कारण है कि स्वाधीनता संघर्ष के दौरान गाँधीजी ने देशवासियों में जातीय गौरव का भाव जगाने हेतु स्वावलंबन का संदेश दिया था। चरखा-आंदोलन और डांडी कूच इस दिशा में गाँधीजी के बड़े प्रभावी कदम सिद्ध हुए। स्वावलंबन के मार्ग पर चलकर ही व्यक्ति, जाति, समाज अथवा राष्ट्र उत्कर्ष को प्राप्त होते हैं।

‘हीन-भावना’ शब्द में कौन-सा समास है?

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34. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न का उत्तर दीजिए :
स्वावलंबन सफलता की कुंजी है। स्वावलंबी व्यक्ति जीवन में यश और धन दोनों अर्जित करता है। दूसरे के सहारे जीने वाला व्यक्ति तिरस्कार का पात्र बनता है। निरंतर निरादर और तिरस्कार पाता हुआ वह अपने आप में हीन-भावना से ग्रस्त होने लगता है। जीवन का यह तथ्य व्यक्ति के जीवन पर ही नहीं, वरन जातीय व राष्ट्र पर भी लागू होता है। यही कारण है कि स्वाधीनता संघर्ष के दौरान गाँधीजी ने देशवासियों में जातीय गौरव का भाव जगाने हेतु स्वावलंबन का संदेश दिया था। चरखा-आंदोलन और डांडी कूच इस दिशा में गाँधीजी के बड़े प्रभावी कदम सिद्ध हुए। स्वावलंबन के मार्ग पर चलकर ही व्यक्ति, जाति, समाज अथवा राष्ट्र उत्कर्ष को प्राप्त होते हैं।

‘निरंतर’ शब्द में उपसर्ग है–

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35. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न का उत्तर दीजिए :
स्वावलंबन सफलता की कुंजी है। स्वावलंबी व्यक्ति जीवन में यश और धन दोनों अर्जित करता है। दूसरे के सहारे जीने वाला व्यक्ति तिरस्कार का पात्र बनता है। निरंतर निरादर और तिरस्कार पाता हुआ वह अपने आप में हीन-भावना से ग्रस्त होने लगता है। जीवन का यह तथ्य व्यक्ति के जीवन पर ही नहीं, वरन जातीय व राष्ट्र पर भी लागू होता है। यही कारण है कि स्वाधीनता संघर्ष के दौरान गाँधीजी ने देशवासियों में जातीय गौरव का भाव जगाने हेतु स्वावलंबन का संदेश दिया था। चरखा-आंदोलन और डांडी कूच इस दिशा में गाँधीजी के बड़े प्रभावी कदम सिद्ध हुए। स्वावलंबन के मार्ग पर चलकर ही व्यक्ति, जाति, समाज अथवा राष्ट्र उत्कर्ष को प्राप्त होते हैं।

‘दूसरे के सहारे जीने वाला व्यक्ति तिरस्कार का पात्र बनता है।‘ रेखांकित पद में संज्ञा का प्रकार है–

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36. निर्देश– गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
राष्ट्रीय एकता का अर्थ यह है कि देश के सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी संप्रदाय, जाति, धर्म, भाषा अथवा क्षेत्र से संबंधित हों, इन सब सीमाओं से ऊपर उठकर इस समूचे देश के प्रति वफादार और  आत्मीयतापूर्ण हों। इसके लिए यदि उनको अपने निजी स्वार्थ अथवा समूह के स्वार्थ का भी त्याग करना पड़े तो उसके लिए उन्हें  तैयार रहना चाहिए और उनके लिए देश का हित सर्वोपरि होना चाहिए। किंतु कभी-कभी तो लगता है कि देश की स्वतंत्रता के बाद हम राष्ट्रीय एकता से विमुख होकर राष्ट्रीय विघटन की ओर अग्रसर हो रहे हैं। स्वतंत्रता के पहले गाँधीजी के नेतृत्व में पूरा देश एक होकर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध लड़ा था। परंतु उसके बाद पुन: हम धर्म, भाषा, क्षेत्रीयता के नाम से आपसी झगड़ों में उलझ गए हैं। कई बार ऐसा लगता है कि हमारे देश में असमिया, बंगाली, पंजाबी, मराठा, मद्रासी इत्यादि तो हैं, पर भारतीय बिरले ही हैं। हमारा देश प्राचीन काल से ही विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, विचारधाराओं तथा परंपराओं का समन्वय-स्थल रहा है परंतु आधुनिक काल में जब से विभिन्न धर्मों और संप्रदायों में अलगाव होने लगा, पारस्परिक द्वेष, घृणा और संघर्ष बढ़ने लगा, तभी राष्ट्र प्रत्येक दृष्टि से कमजोर होने लगा। राजनीतिक दल इस पारस्परिक तनाव का लाभ उठाकर राजनीतिक स्वार्थ पूरा करने लगे। इसीलिए नेहरु जी ने कहा था, "मैं सांप्रदायिकता को देश का सबसे बड़ा शत्रु मानता हूँ।"

‘स्वार्थ ’ शब्द में वचन का प्रकार है–

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37. निर्देश– गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
राष्ट्रीय एकता का अर्थ यह है कि देश के सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी संप्रदाय, जाति, धर्म, भाषा अथवा क्षेत्र से संबंधित हों, इन सब सीमाओं से ऊपर उठकर इस समूचे देश के प्रति वफादार और  आत्मीयतापूर्ण हों। इसके लिए यदि उनको अपने निजी स्वार्थ अथवा समूह के स्वार्थ का भी त्याग करना पड़े तो उसके लिए उन्हें  तैयार रहना चाहिए और उनके लिए देश का हित सर्वोपरि होना चाहिए। किंतु कभी-कभी तो लगता है कि देश की स्वतंत्रता के बाद हम राष्ट्रीय एकता से विमुख होकर राष्ट्रीय विघटन की ओर अग्रसर हो रहे हैं। स्वतंत्रता के पहले गाँधीजी के नेतृत्व में पूरा देश एक होकर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध लड़ा था। परंतु उसके बाद पुन: हम धर्म, भाषा, क्षेत्रीयता के नाम से आपसी झगड़ों में उलझ गए हैं। कई बार ऐसा लगता है कि हमारे देश में असमिया, बंगाली, पंजाबी, मराठा, मद्रासी इत्यादि तो हैं, पर भारतीय बिरले ही हैं। हमारा देश प्राचीन काल से ही विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, विचारधाराओं तथा परंपराओं का समन्वय-स्थल रहा है परंतु आधुनिक काल में जब से विभिन्न धर्मों और संप्रदायों में अलगाव होने लगा, पारस्परिक द्वेष, घृणा और संघर्ष बढ़ने लगा, तभी राष्ट्र प्रत्येक दृष्टि से कमजोर होने लगा। राजनीतिक दल इस पारस्परिक तनाव का लाभ उठाकर राजनीतिक स्वार्थ पूरा करने लगे। इसीलिए नेहरु जी ने कहा था, "मैं सांप्रदायिकता को देश का सबसे बड़ा शत्रु मानता हूँ।"

‘भाषा’ शब्द में लिंग का प्रकार है–

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38. निर्देश– गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
राष्ट्रीय एकता का अर्थ यह है कि देश के सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी संप्रदाय, जाति, धर्म, भाषा अथवा क्षेत्र से संबंधित हों, इन सब सीमाओं से ऊपर उठकर इस समूचे देश के प्रति वफादार और  आत्मीयतापूर्ण हों। इसके लिए यदि उनको अपने निजी स्वार्थ अथवा समूह के स्वार्थ का भी त्याग करना पड़े तो उसके लिए उन्हें  तैयार रहना चाहिए और उनके लिए देश का हित सर्वोपरि होना चाहिए। किंतु कभी-कभी तो लगता है कि देश की स्वतंत्रता के बाद हम राष्ट्रीय एकता से विमुख होकर राष्ट्रीय विघटन की ओर अग्रसर हो रहे हैं। स्वतंत्रता के पहले गाँधीजी के नेतृत्व में पूरा देश एक होकर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध लड़ा था। परंतु उसके बाद पुन: हम धर्म, भाषा, क्षेत्रीयता के नाम से आपसी झगड़ों में उलझ गए हैं। कई बार ऐसा लगता है कि हमारे देश में असमिया, बंगाली, पंजाबी, मराठा, मद्रासी इत्यादि तो हैं, पर भारतीय बिरले ही हैं। हमारा देश प्राचीन काल से ही विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, विचारधाराओं तथा परंपराओं का समन्वय-स्थल रहा है परंतु आधुनिक काल में जब से विभिन्न धर्मों और संप्रदायों में अलगाव होने लगा, पारस्परिक द्वेष, घृणा और संघर्ष बढ़ने लगा, तभी राष्ट्र प्रत्येक दृष्टि से कमजोर होने लगा। राजनीतिक दल इस पारस्परिक तनाव का लाभ उठाकर राजनीतिक स्वार्थ पूरा करने लगे। इसीलिए नेहरु जी ने कहा था, "मैं सांप्रदायिकता को देश का सबसे बड़ा शत्रु मानता हूँ।"

"देश का हित सर्वोपरि होना चाहिए।" कथन का तात्पर्य है–

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39. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न का उत्तर दीजिए :
स्वावलंबन सफलता की कुंजी है। स्वावलंबी व्यक्ति जीवन में यश और धन दोनों अर्जित करता है। दूसरे के सहारे जीने वाला व्यक्ति तिरस्कार का पात्र बनता है। निरंतर निरादर और तिरस्कार पाता हुआ वह अपने आप में हीन-भावना से ग्रस्त होने लगता है। जीवन का यह तथ्य व्यक्ति के जीवन पर ही नहीं, वरन जातीय व राष्ट्र पर भी लागू होता है। यही कारण है कि स्वाधीनता संघर्ष के दौरान गाँधीजी ने देशवासियों में जातीय गौरव का भाव जगाने हेतु स्वावलंबन का संदेश दिया था। चरखा-आंदोलन और डांडी कूच इस दिशा में गाँधीजी के बड़े प्रभावी कदम सिद्ध हुए। स्वावलंबन के मार्ग पर चलकर ही व्यक्ति, जाति, समाज अथवा राष्ट्र उत्कर्ष को प्राप्त होते हैं।

‘तिरस्कार’ शब्द में कौन-सी संधि प्रयुक्त हुई है?

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40. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न का उत्तर दीजिए :
स्वावलंबन सफलता की कुंजी है। स्वावलंबी व्यक्ति जीवन में यश और धन दोनों अर्जित करता है। दूसरे के सहारे जीने वाला व्यक्ति तिरस्कार का पात्र बनता है। निरंतर निरादर और तिरस्कार पाता हुआ वह अपने आप में हीन-भावना से ग्रस्त होने लगता है। जीवन का यह तथ्य व्यक्ति के जीवन पर ही नहीं, वरन जातीय व राष्ट्र पर भी लागू होता है। यही कारण है कि स्वाधीनता संघर्ष के दौरान गाँधीजी ने देशवासियों में जातीय गौरव का भाव जगाने हेतु स्वावलंबन का संदेश दिया था। चरखा-आंदोलन और डांडी कूच इस दिशा में गाँधीजी के बड़े प्रभावी कदम सिद्ध हुए। स्वावलंबन के मार्ग पर चलकर ही व्यक्ति, जाति, समाज अथवा राष्ट्र उत्कर्ष को प्राप्त होते हैं।

‘उत्कर्ष’ का सही विलोम बताइए-

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41. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न का उत्तर दीजिए :
स्वावलंबन सफलता की कुंजी है। स्वावलंबी व्यक्ति जीवन में यश और धन दोनों अर्जित करता है। दूसरे के सहारे जीने वाला व्यक्ति तिरस्कार का पात्र बनता है। निरंतर निरादर और तिरस्कार पाता हुआ वह अपने आप में हीन-भावना से ग्रस्त होने लगता है। जीवन का यह तथ्य व्यक्ति के जीवन पर ही नहीं, वरन जातीय व राष्ट्र पर भी लागू होता है। यही कारण है कि स्वाधीनता संघर्ष के दौरान गाँधीजी ने देशवासियों में जातीय गौरव का भाव जगाने हेतु स्वावलंबन का संदेश दिया था। चरखा-आंदोलन और डांडी कूच इस दिशा में गाँधीजी के बड़े प्रभावी कदम सिद्ध हुए। स्वावलंबन के मार्ग पर चलकर ही व्यक्ति, जाति, समाज अथवा राष्ट्र उत्कर्ष को प्राप्त होते हैं।

‘गौरव’ शब्द में मूल शब्द व प्रत्यय है–

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42. निर्देश– गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
राष्ट्रीय एकता का अर्थ यह है कि देश के सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी संप्रदाय, जाति, धर्म, भाषा अथवा क्षेत्र से संबंधित हों, इन सब सीमाओं से ऊपर उठकर इस समूचे देश के प्रति वफादार और  आत्मीयतापूर्ण हों। इसके लिए यदि उनको अपने निजी स्वार्थ अथवा समूह के स्वार्थ का भी त्याग करना पड़े तो उसके लिए उन्हें  तैयार रहना चाहिए और उनके लिए देश का हित सर्वोपरि होना चाहिए। किंतु कभी-कभी तो लगता है कि देश की स्वतंत्रता के बाद हम राष्ट्रीय एकता से विमुख होकर राष्ट्रीय विघटन की ओर अग्रसर हो रहे हैं। स्वतंत्रता के पहले गाँधीजी के नेतृत्व में पूरा देश एक होकर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध लड़ा था। परंतु उसके बाद पुन: हम धर्म, भाषा, क्षेत्रीयता के नाम से आपसी झगड़ों में उलझ गए हैं। कई बार ऐसा लगता है कि हमारे देश में असमिया, बंगाली, पंजाबी, मराठा, मद्रासी इत्यादि तो हैं, पर भारतीय बिरले ही हैं। हमारा देश प्राचीन काल से ही विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, विचारधाराओं तथा परंपराओं का समन्वय-स्थल रहा है परंतु आधुनिक काल में जब से विभिन्न धर्मों और संप्रदायों में अलगाव होने लगा, पारस्परिक द्वेष, घृणा और संघर्ष बढ़ने लगा, तभी राष्ट्र प्रत्येक दृष्टि से कमजोर होने लगा। राजनीतिक दल इस पारस्परिक तनाव का लाभ उठाकर राजनीतिक स्वार्थ पूरा करने लगे। इसीलिए नेहरु जी ने कहा था, "मैं सांप्रदायिकता को देश का सबसे बड़ा शत्रु मानता हूँ।"

‘गाँधीजी के नेतृत्व में पूरा देश एक होकर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध लड़ा था।’ वाक्य में प्रयुक्त काल है–

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61. वर्षागमे चारुमरुं विहाय क्वान्यत्र कस्यापि रमेत चित्तम्।

सर: सु वर्षासमयेऽपि यस्मिन् शरत्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति।।

‘वर्षागमे चारुमरं विहाय’ इति पद्यांशे क: छन्द:?

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62. वर्षागमे चारुमरुं विहाय क्वान्यत्र कस्यापि रमेत चित्तम्।

सर: सु वर्षासमयेऽपि यस्मिन् शरत्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति।।

‘विहाय’ इति पदे क: प्रत्यय:?

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63. वर्षागमे चारुमरुं विहाय क्वान्यत्र कस्यापि रमेत चित्तम्।

सर: सु वर्षासमयेऽपि यस्मिन् शरत्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति।।

‘चारुमरुम्’ इति पदे प्रयुक्तसमासस्य किन्नाम?

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64. वर्षागमे चारुमरुं विहाय क्वान्यत्र कस्यापि रमेत चित्तम्।

सर: सु वर्षासमयेऽपि यस्मिन् शरत्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति।।

‘शरत् - प्रसन्नम्’ इति विशेषणस्य विशेष्यपदं किम्?

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65. वर्षागमे चारुमरुं विहाय क्वान्यत्र कस्यापि रमेत चित्तम्।

सर: सु वर्षासमयेऽपि यस्मिन् शरत्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति।।

‘कस्यापि’ इति पदस्य सन्धिविच्छेद: क:?

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66. इह खलु पञ्चेन्द्रियाणि, पञ्चेन्द्रियद्रव्याणि, पञ्चेन्द्रियार्थाः च भवन्ति। तत्र चक्षुः श्रोत्रं घ्राणं जिह्वा त्वक् च इति पञ्चेन्द्रियाणि। पञ्चेन्द्रियाणि। पञ्चेन्द्रियद्रव्याणि खं वायुः ज्योतिः आपो भूः इति। पञ्चेन्द्रियार्थाः शब्दस्पर्शरूपरसगन्धाः मनः पुनः सराणि च इन्द्रियाणि अर्थसंग्रहसमर्थानि भवन्ति। न इन्द्रियवशगः स्यात्। न चञ्चल मनः अनुभ्रामयेत्। गुरु-वृद्ध-आचार्यान् अर्चयेत्। मूर्ध-श्रोत्र घ्राण-पाद-तैलनित्यः स्यात्। अतिथीनां पूजकः स्यात्। काले हित-मित-मधुरार्थवादी स्यात्। वश्यात्मा, महोत्साहः, विनयबुद्धिः निर्भीकिः, क्षमावान्, सर्वप्राणिषु बन्धुभूतः स्यात्। न अनृत ब्रूयान्। न अति ब्रूयात्। न अन्यस्वम् आहरेत्। न वैर रोचयेत्। न कुर्यात् पापम् न पापेऽपि। पापी स्यात्। न अन्यदोषान् ब्रूयात्। न अन्यरहस्याम् आगमेयत्। अधार्मिकैः न दुष्टैः सह आसीत्। न नासिका कुष्णीयात्। न दन्तान् विघट्टयेत् न नासिका कुष्णीयात्। न दन्तान् विघट्येत्। न भूमि विलिखेत्। न दुष्टयानानि आरोहेत्। न द्रुमम् आरोहेत्। तृणम्। न दुष्टयानानि आरोहेत्। न द्रुमम् आरोहेत्। न जलोग्रवेगम् अवगाहेत्। न अदेशे, न अकाले, न कुत्सयन, न प्रतिकूलोपहितम्, न पर्यषितम्, अत्रम् खादेत्। न नक्तं दधि भुञ्जीत। न कञ्चिद् अवजानीयात्। न वेगान् धारयेत्। न अहंमानी स्यात्। न नियमं भिन्द्यात्। न कार्यकालम् अतिपातयेत्। न अपरीक्षितम् अभिनिविशेत्। न च अतिदीर्घसूत्री स्यात्। न सिद्धौ उत्सेक गच्छेत न असिद्धौ दैन्यम्।

‘गच्छेत’ इतिपदं कस्मिन् लकारे प्रयुक्तमस्ति?

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67. इह खलु पञ्चेन्द्रियाणि, पञ्चेन्द्रियद्रव्याणि, पञ्चेन्द्रियार्थाः च भवन्ति। तत्र चक्षुः श्रोत्रं घ्राणं जिह्वा त्वक् च इति पञ्चेन्द्रियाणि। पञ्चेन्द्रियाणि। पञ्चेन्द्रियद्रव्याणि खं वायुः ज्योतिः आपो भूः इति। पञ्चेन्द्रियार्थाः शब्दस्पर्शरूपरसगन्धाः मनः पुनः सराणि च इन्द्रियाणि अर्थसंग्रहसमर्थानि भवन्ति। न इन्द्रियवशगः स्यात्। न चञ्चल मनः अनुभ्रामयेत्। गुरु-वृद्ध-आचार्यान् अर्चयेत्। मूर्ध-श्रोत्र घ्राण-पाद-तैलनित्यः स्यात्। अतिथीनां पूजकः स्यात्। काले हित-मित-मधुरार्थवादी स्यात्। वश्यात्मा, महोत्साहः, विनयबुद्धिः निर्भीकिः, क्षमावान्, सर्वप्राणिषु बन्धुभूतः स्यात्। न अनृत ब्रूयान्। न अति ब्रूयात्। न अन्यस्वम् आहरेत्। न वैर रोचयेत्। न कुर्यात् पापम् न पापेऽपि। पापी स्यात्। न अन्यदोषान् ब्रूयात्। न अन्यरहस्याम् आगमेयत्। अधार्मिकैः न दुष्टैः सह आसीत्। न नासिका कुष्णीयात्। न दन्तान् विघट्टयेत् न नासिका कुष्णीयात्। न दन्तान् विघट्येत्। न भूमि विलिखेत्। न दुष्टयानानि आरोहेत्। न द्रुमम् आरोहेत्। तृणम्। न दुष्टयानानि आरोहेत्। न द्रुमम् आरोहेत्। न जलोग्रवेगम् अवगाहेत्। न अदेशे, न अकाले, न कुत्सयन, न प्रतिकूलोपहितम्, न पर्यषितम्, अत्रम् खादेत्। न नक्तं दधि भुञ्जीत। न कञ्चिद् अवजानीयात्। न वेगान् धारयेत्। न अहंमानी स्यात्। न नियमं भिन्द्यात्। न कार्यकालम् अतिपातयेत्। न अपरीक्षितम् अभिनिविशेत्। न च अतिदीर्घसूत्री स्यात्। न सिद्धौ उत्सेक गच्छेत न असिद्धौ दैन्यम्।

‘क्षमावान्’ इत्यत्र क: प्रत्यय:?

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68. इह खलु पञ्चेन्द्रियाणि, पञ्चेन्द्रियद्रव्याणि, पञ्चेन्द्रियार्थाः च भवन्ति। तत्र चक्षुः श्रोत्रं घ्राणं जिह्वा त्वक् च इति पञ्चेन्द्रियाणि। पञ्चेन्द्रियाणि। पञ्चेन्द्रियद्रव्याणि खं वायुः ज्योतिः आपो भूः इति। पञ्चेन्द्रियार्थाः शब्दस्पर्शरूपरसगन्धाः मनः पुनः सराणि च इन्द्रियाणि अर्थसंग्रहसमर्थानि भवन्ति। न इन्द्रियवशगः स्यात्। न चञ्चल मनः अनुभ्रामयेत्। गुरु-वृद्ध-आचार्यान् अर्चयेत्। मूर्ध-श्रोत्र घ्राण-पाद-तैलनित्यः स्यात्। अतिथीनां पूजकः स्यात्। काले हित-मित-मधुरार्थवादी स्यात्। वश्यात्मा, महोत्साहः, विनयबुद्धिः निर्भीकिः, क्षमावान्, सर्वप्राणिषु बन्धुभूतः स्यात्। न अनृत ब्रूयान्। न अति ब्रूयात्। न अन्यस्वम् आहरेत्। न वैर रोचयेत्। न कुर्यात् पापम् न पापेऽपि। पापी स्यात्। न अन्यदोषान् ब्रूयात्। न अन्यरहस्याम् आगमेयत्। अधार्मिकैः न दुष्टैः सह आसीत्। न नासिका कुष्णीयात्। न दन्तान् विघट्टयेत् न नासिका कुष्णीयात्। न दन्तान् विघट्येत्। न भूमि विलिखेत्। न दुष्टयानानि आरोहेत्। न द्रुमम् आरोहेत्। तृणम्। न दुष्टयानानि आरोहेत्। न द्रुमम् आरोहेत्। न जलोग्रवेगम् अवगाहेत्। न अदेशे, न अकाले, न कुत्सयन, न प्रतिकूलोपहितम्, न पर्यषितम्, अत्रम् खादेत्। न नक्तं दधि भुञ्जीत। न कञ्चिद् अवजानीयात्। न वेगान् धारयेत्। न अहंमानी स्यात्। न नियमं भिन्द्यात्। न कार्यकालम् अतिपातयेत्। न अपरीक्षितम् अभिनिविशेत्। न च अतिदीर्घसूत्री स्यात्। न सिद्धौ उत्सेक गच्छेत न असिद्धौ दैन्यम्।

‘गुरुवृद्धाचार्यान्’ इति पदे क: समास:?

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97. सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए-

सूची – I

सूची -II

(ज्वालामुखी)

(प्रमुख देश)

A. कोह ए - सुल्तान

1. USA

B. माउण्ट पोपा

2. तंजानिया

C. माउण्ट किलिमंजारो

3. म्यांमार

D. सेन्ट हैलेना

4. ईरान

नीचे दिए गए कूट से सही उत्तर का चयन कीजिए-

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109. संविधान सभा के चुनाव के बाद कांग्रेस की विजय देख मुस्लिम लीग ने प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस कब मनाया?

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111. किस वर्ष के पश्चात् भारत के संविधान में कुल मौलिक अधिकारों की संख्या 6 हैं?

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115. सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए तथा नीचे दिए कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए–

सूची-I सूची-II
A वंचित वर्ग की जातियाँ 1 अन्य पिछड़ा वर्ग
B आदिवासी जातियाँ 2 अल्पसंख्यक
C सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक रूप से पिछड़ी अन्य जातियाँ 3 अनुसूचित जन जाति
D जनसंख्या में धार्मिक व भाषायी रूप से छोटा समूह 4 अनुसूचित जाति

कूट:-

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131. सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए तथा नीचे दिए गए कूट से सही उत्तर का चयन कीजिए-
सूची-I  -  सूची-II
(राज्य)  (पॉलिटिकल एजेंट)
A. मारवाड़ - 1. कर्नल ईडन
B. मेवाड़ - 2. मेजर बर्टन
C. कोटा - 3. मैक मैसन
D. जयपुर - 4. कैप्टन शॉवर्स
कूट:

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137. निम्नलिखित सूची को सुमेलित कर सही कूट का चयन कीजिए–

होली स्थान
A. कोड़ामार होली 1. करौली
B. पत्थर मार होली 2. भिनाय
C. लट्‌ठमार होली 3. ब्यावर
D. देवर भाभी होली 4. बाड़मेर

कूट:-

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