Model Paper 3: REET Level 2nd SST फ्री टेस्ट सीरीज 2025 | महत्वपूर्ण प्रश्न |

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REET Level 2 SST 2025 की तैयारी के लिए Free Test Series में शामिल हों! Model Paper 3 अभी डाउनलोड करें और अपनी तैयारी को परखें। इस मॉडल पेपर में 150 प्रश्न शामिल हैं, जो मनोविज्ञान (30 प्रश्न), हिंदी (30 प्रश्न), संस्कृत (30 प्रश्न) और सामाजिक विज्ञान (60 प्रश्न) विषयों को कवर करते हैं। Important questions के साथ अपनी REET exam की तैयारी को मजबूत बनाएं और सफलता प्राप्त करें!

Table:

विषयप्रश्न संख्या
मनोविज्ञान30
हिंदी30
संस्कृत30
सामाजिक विज्ञान60
कुल150

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Model Paper 3: REET लेवल 2nd SST | Full Length Test 150 प्रश्न | भाषा: हिंदी | संस्कृत

Model Paper 3: REET लेवल 2nd SST | Full Length Test 150 प्रश्न | भाषा: हिंदी | संस्कृत

🔴महत्वपूर्ण निर्देश 🔴

✅ टेस्ट शुरू करने से पहले कृपया सही जानकारी भरे |
✅ सभी प्रश्नों को आराम से पढ़कर उत्तर दे |
✅सभी प्रश्नों का उत्तर टेस्ट पूर्ण करने पर दिखाई देगा |
✅ टेस्ट पूर्ण करने पर सभी प्रश्नों के उत्तर विस्तार से समझाया गया है |

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22. निम्नलिखित में से असुमेलित युग्म की पहचान कीजिए-
नदी          -        उद्गम स्थल

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25. भू-उपयोग सांख्यिकी 2022-23 के अनुसार  राजस्थान में बंजर भूमि  का क्षेत्रफल कितना प्रतिशत है?

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29. निम्नलिखित में से किस पद का निर्वहन भैरों सिंह शेखावत ने नहीं किया?

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30. भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के अनुसार मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है?

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31. सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए तथा नीचे दिए गए कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए–
सूची-I (राजस्थान के राज्यपाल)    सूची-II(राजस्थान के मुख्यमंत्री)
A वसंतराव पाटिल                     1. अशोक गहलोत
B प्रभा राव                               2. वसुंधरा राजे
C राम नाईक                            3. हरिदेव जोशी
D दरबारा सिंह                          4.भैरों सिंह शेखावत
कूट:-

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32. 'स्वीप' (SVEEP) संबंधित है-(निम्न में से सबसे उपयुक्त विकल्प चुनें)

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33. राष्ट्रपति पद की आकस्मिक रिक्ति पर कितने समय में नए  राष्ट्रपति का निर्वाचन आवश्यक है?

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35. भारत के संविधान में संशोधन करने की शक्ति किसे प्राप्त है? (निम्न में से सबसे उपयुक्त विकल्प चुनें)

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36. सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए तथा नीचे दिए गए कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए–

सूची-I(मौलिक अधिकार) सूची-II(संबंध)
A समता का अधिकार 1 बलात् श्रम का प्रतिषेध
B स्वतंत्रता का अधिकार 2 अस्पृश्यता का अंत
C शोषण के विरुद्ध अधिकार 3 प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण
D धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार 4 धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता

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41. सूची I को सूची II के साथ सुमेलित कर सही कूट का चयन कीजिए
सूची- I (जैवमंडलीय आरक्षित क्षेत्र)    सूची-II (राज्य)
(A) नीलगिरी                                 i. केरल
(B) शीत मरुस्थल                          ii.असम
(C) डिबु साइखोवा                        iii. हिमाचल प्रदेश
(D) अगस्थ्यामलाई                        iv. कर्नाटक
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53. अभिकथन (A) : किसान असंतोष 1857 के विद्रोह के प्रमुख कारणों में से एक था।
कारण (R) : अवध के लगभग प्रत्येक किसान परिवार का सदस्य ब्रिटिश सेना में था।
उपर्युक्त दो कथनों के संदर्भ में, निम्न में से कौन-सा कथन सही है?

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58. सूची-I को सूची- II से सुमेलित कीजिए-

   सूची-I सूची-II
A. ज्योतिष 1. आर्यभट्‌ट
B. रस चिकित्सा 2. ब्रह्मगुप्त
C. गुरुत्वाकर्षण 3. वराहमिहिर
D. दशमलव प्रणाली 4. नागार्जुन

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80. स्वामीकेशवानन्दस्य जन्म पौषमासे 1940 तमे विक्रम-संवत्सरे (ईस्वी 1883) राजस्थानस्य सीकर-जनपदे मगलूणा ग्रामे अभवत्। अस्य पितुर्नाम ठाकुरसी ढाका इति मातुश्च नामा सारा इत्यासीत्। बाल्ये केशवानन्दस्य नाम ‘बीरमा’ इत्यासीत्। यदा एष: बाल: सप्तवर्षकल्प: आसीत् तदैव उष्ट्रमेकमाश्रित्य रतनगढ़ – स्थले जीवनयापनं कुर्वन्नस्य पिता दिवङ्गत:। पितु: प्रयाणात् प्रागेव विपन्नतायां श्रेष्ठिगृहेषु गोधूमादि पेेषणं पात्रमार्जनम् इत्येवमादिभि: कार्यै: यथाकथिञ्च कालयापनं कुर्वती अस्य बालस्य वराकी माता इदानीं वैधव्य कारणाद् इतोऽपि विपदाभिभूता अभवत् उच्यते हि– ‘छिद्रेष्वनर्था: बहुली भवन्ति।” इदानीं मातु: सहयोगाय बीरमा बालकेन गोचारण कार्यमारब्धम्।

‘प्रागेव’ इत्यत्र सन्धि: अस्ति -

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81. स्वामीकेशवानन्दस्य जन्म पौषमासे 1940 तमे विक्रम-संवत्सरे (ईस्वी 1883) राजस्थानस्य सीकर-जनपदे मगलूणा ग्रामे अभवत्। अस्य पितुर्नाम ठाकुरसी ढाका इति मातुश्च नामा सारा इत्यासीत्। बाल्ये केशवानन्दस्य नाम ‘बीरमा’ इत्यासीत्। यदा एष: बाल: सप्तवर्षकल्प: आसीत् तदैव उष्ट्रमेकमाश्रित्य रतनगढ़ – स्थले जीवनयापनं कुर्वन्नस्य पिता दिवङ्गत:। पितु: प्रयाणात् प्रागेव विपन्नतायां श्रेष्ठिगृहेषु गोधूमादि पेेषणं पात्रमार्जनम् इत्येवमादिभि: कार्यै: यथाकथिञ्च कालयापनं कुर्वती अस्य बालस्य वराकी माता इदानीं वैधव्य कारणाद् इतोऽपि विपदाभिभूता अभवत् उच्यते हि– ‘छिद्रेष्वनर्था: बहुली भवन्ति।” इदानीं मातु: सहयोगाय बीरमा बालकेन गोचारण कार्यमारब्धम्।

‘आरब्धम्’ इत्यत्र क: प्रत्यय:

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82. विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।

पात्रत्वाद् धनमाप्नोति धनाद् धर्मं तत: सुखम्।।

"समुचित्तम्' पदे क: उपसर्ग:?

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83. स्वामीकेशवानन्दस्य जन्म पौषमासे 1940 तमे विक्रम-संवत्सरे (ईस्वी 1883) राजस्थानस्य सीकर-जनपदे मगलूणा ग्रामे अभवत्। अस्य पितुर्नाम ठाकुरसी ढाका इति मातुश्च नामा सारा इत्यासीत्। बाल्ये केशवानन्दस्य नाम ‘बीरमा’ इत्यासीत्। यदा एष: बाल: सप्तवर्षकल्प: आसीत् तदैव उष्ट्रमेकमाश्रित्य रतनगढ़ – स्थले जीवनयापनं कुर्वन्नस्य पिता दिवङ्गत:। पितु: प्रयाणात् प्रागेव विपन्नतायां श्रेष्ठिगृहेषु गोधूमादि पेेषणं पात्रमार्जनम् इत्येवमादिभि: कार्यै: यथाकथिञ्च कालयापनं कुर्वती अस्य बालस्य वराकी माता इदानीं वैधव्य कारणाद् इतोऽपि विपदाभिभूता अभवत् उच्यते हि– ‘छिद्रेष्वनर्था: बहुली भवन्ति।” इदानीं मातु: सहयोगाय बीरमा बालकेन गोचारण कार्यमारब्धम्।

‘आसीत्’ इति पदं लृट्लकारे परिवर्तयत-

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84. विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।

पात्रत्वाद् धनमाप्नोति धनाद् धर्मं तत: सुखम्।।

"याति' पदे क: धातु:?

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85. विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।

पात्रत्वाद् धनमाप्नोति धनाद् धर्मं तत: सुखम्।।

'आप्नोति' पदे लकारस्य निर्णयं कुरूत?

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86. विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।

पात्रत्वाद् धनमाप्नोति धनाद् धर्मं तत: सुखम्।।

"पात्रत्वाद्' पदे विभक्ति निर्णयं कुरूत?

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87. स्वामीकेशवानन्दस्य जन्म पौषमासे 1940 तमे विक्रम-संवत्सरे (ईस्वी 1883) राजस्थानस्य सीकर-जनपदे मगलूणा ग्रामे अभवत्। अस्य पितुर्नाम ठाकुरसी ढाका इति मातुश्च नामा सारा इत्यासीत्। बाल्ये केशवानन्दस्य नाम ‘बीरमा’ इत्यासीत्। यदा एष: बाल: सप्तवर्षकल्प: आसीत् तदैव उष्ट्रमेकमाश्रित्य रतनगढ़ – स्थले जीवनयापनं कुर्वन्नस्य पिता दिवङ्गत:। पितु: प्रयाणात् प्रागेव विपन्नतायां श्रेष्ठिगृहेषु गोधूमादि पेेषणं पात्रमार्जनम् इत्येवमादिभि: कार्यै: यथाकथिञ्च कालयापनं कुर्वती अस्य बालस्य वराकी माता इदानीं वैधव्य कारणाद् इतोऽपि विपदाभिभूता अभवत् उच्यते हि– ‘छिद्रेष्वनर्था: बहुली भवन्ति।” इदानीं मातु: सहयोगाय बीरमा बालकेन गोचारण कार्यमारब्धम्।

“कालयापनम्” इत्यत्र क: समास: -

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88. विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।

पात्रत्वाद् धनमाप्नोति धनाद् धर्मं तत: सुखम्।।

"चित्वा' पदे क: प्रत्यय: ?

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89. स्वामीकेशवानन्दस्य जन्म पौषमासे 1940 तमे विक्रम-संवत्सरे (ईस्वी 1883) राजस्थानस्य सीकर-जनपदे मगलूणा ग्रामे अभवत्। अस्य पितुर्नाम ठाकुरसी ढाका इति मातुश्च नामा सारा इत्यासीत्। बाल्ये केशवानन्दस्य नाम ‘बीरमा’ इत्यासीत्। यदा एष: बाल: सप्तवर्षकल्प: आसीत् तदैव उष्ट्रमेकमाश्रित्य रतनगढ़ – स्थले जीवनयापनं कुर्वन्नस्य पिता दिवङ्गत:। पितु: प्रयाणात् प्रागेव विपन्नतायां श्रेष्ठिगृहेषु गोधूमादि पेेषणं पात्रमार्जनम् इत्येवमादिभि: कार्यै: यथाकथिञ्च कालयापनं कुर्वती अस्य बालस्य वराकी माता इदानीं वैधव्य कारणाद् इतोऽपि विपदाभिभूता अभवत् उच्यते हि– ‘छिद्रेष्वनर्था: बहुली भवन्ति।” इदानीं मातु: सहयोगाय बीरमा बालकेन गोचारण कार्यमारब्धम्।

मातु: इत्यत्र का विभक्ति: अस्ति -

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90. विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।

पात्रत्वाद् धनमाप्नोति धनाद् धर्मं तत: सुखम्।।

‘विद्या विनयं ददाति’ वाक्यस्यास्य वाच्यपरिवर्तनं कुरूत-

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109. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
बचपन में मेलों में जाने की अजीब उमंग थी, उछाह था। साथ में देख-रेख के लिए लोग जाते थे, पर मन में यही होता था कि कब उनको झाँसा देखकर निकल जाएँ और अपने हम उम्र साथियों के साथ स्वतंत्र विचरें, अपार सागर में उमंग की छोटी-सी नाव लेकर खो जाने का भय हो और उस भय में भी एक न्योता हो कि खोकर देखें कि खोना कैसा होता हे। घर में लुका-छिपी के खेल में छिपना मुश्किल होता है, कहीं ओट नहीं मिलती है और भीड़ से बड़ी कोई ओट नहीं होती है, भीड़ से बड़ा कोई भय भी नहीं होता। अपने आदमी भी भीड़ में पराये हो जाते हैं। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि भीड़ में आदमी गिर जाता है तो कोई अपना ही कुचल कर चल देता है, क्योंकि उस समय वह आदमी होता ही नहीं, भीड़ होती है। भीड़ कई प्रकार की होती है। एक भीड़ होती है रेल यात्रा के समय  आदमी स्थान के लिए रगड़ता-झगड़ता है, फिर थोड़ी ही देर में जाने कितने जमांतर का परिचय जग जाता है, बिछड़ते हुए भावुक हो जाता है। एक भीड़ होती है ऐसे जुलूस की जिसमें उमंग ही उमंग होती है, एक उमंग दूसरी के लिए एक प्रेरक होती है, वह भीड़ अब स्वाधीन भारत में नहीं दिखाई पड़ती। ऐसे भी जुलूस होते हैं जहाँ भीड़, भाड़े के आदमियों की होती है, जिन्हें पता ही नहीं होता कि हम किसलिए जुलूस में शरीक हैं। वहाँ बुलवाये गए नारे होते हैं, मन में वादा की गई धनराशि की चिंता होती है। वहाँ उमंग नहीं होती, उमंग का परिहास होता है। इन जुलूसों की भीड़ से बिल्कुल अलग एक भीड़ होती है जो मंदिरों में दर्शन के लिए जाती है, जो दर्शन की इच्छा से जाती है और जुलूस की नियंत्रित भीड़ से अधिक संयत और शांत होती है, आरती के समय अपने ढंग से ध्यानस्थ होती है। इन सबसे अलग है मेले की भीड़। कुछ उचक्के लोगों का अपवाद छोड़कर यह राग-रंग की उत्सुकता का महासागर होती है। कितने राग मिलते हैं, एक-दूसरे में घुलते हैं, कितने रंग मिलकर मेले की रंगत बनते हैं। प्रयाग के माघ मेले में किन-किन प्रदेशों के यात्रा गीत अलग-अलग धुनों में गूँजते हैं और सबकी एक अनुगूँज पूरे मेले को तरंगित करती रहती है। गाँव के मेले में भी यही होता था। किसी की पहचान खोती नहीं थी, लेकिन सबकी पहचान मिलकर एक मेले की पहचान बन जाती थी।

‘सबकी एक अनुगूँज पूरे मेले को तरंगित करती रहती है।‘ वाक्य में रेखांकित पद का अर्थ है–

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110. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
बचपन में मेलों में जाने की अजीब उमंग थी, उछाह था। साथ में देख-रेख के लिए लोग जाते थे, पर मन में यही होता था कि कब उनको झाँसा देखकर निकल जाएँ और अपने हम उम्र साथियों के साथ स्वतंत्र विचरें, अपार सागर में उमंग की छोटी-सी नाव लेकर खो जाने का भय हो और उस भय में भी एक न्योता हो कि खोकर देखें कि खोना कैसा होता हे। घर में लुका-छिपी के खेल में छिपना मुश्किल होता है, कहीं ओट नहीं मिलती है और भीड़ से बड़ी कोई ओट नहीं होती है, भीड़ से बड़ा कोई भय भी नहीं होता। अपने आदमी भी भीड़ में पराये हो जाते हैं। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि भीड़ में आदमी गिर जाता है तो कोई अपना ही कुचल कर चल देता है, क्योंकि उस समय वह आदमी होता ही नहीं, भीड़ होती है। भीड़ कई प्रकार की होती है। एक भीड़ होती है रेल यात्रा के समय  आदमी स्थान के लिए रगड़ता-झगड़ता है, फिर थोड़ी ही देर में जाने कितने जमांतर का परिचय जग जाता है, बिछड़ते हुए भावुक हो जाता है। एक भीड़ होती है ऐसे जुलूस की जिसमें उमंग ही उमंग होती है, एक उमंग दूसरी के लिए एक प्रेरक होती है, वह भीड़ अब स्वाधीन भारत में नहीं दिखाई पड़ती। ऐसे भी जुलूस होते हैं जहाँ भीड़, भाड़े के आदमियों की होती है, जिन्हें पता ही नहीं होता कि हम किसलिए जुलूस में शरीक हैं। वहाँ बुलवाये गए नारे होते हैं, मन में वादा की गई धनराशि की चिंता होती है। वहाँ उमंग नहीं होती, उमंग का परिहास होता है। इन जुलूसों की भीड़ से बिल्कुल अलग एक भीड़ होती है जो मंदिरों में दर्शन के लिए जाती है, जो दर्शन की इच्छा से जाती है और जुलूस की नियंत्रित भीड़ से अधिक संयत और शांत होती है, आरती के समय अपने ढंग से ध्यानस्थ होती है। इन सबसे अलग है मेले की भीड़। कुछ उचक्के लोगों का अपवाद छोड़कर यह राग-रंग की उत्सुकता का महासागर होती है। कितने राग मिलते हैं, एक-दूसरे में घुलते हैं, कितने रंग मिलकर मेले की रंगत बनते हैं। प्रयाग के माघ मेले में किन-किन प्रदेशों के यात्रा गीत अलग-अलग धुनों में गूँजते हैं और सबकी एक अनुगूँज पूरे मेले को तरंगित करती रहती है। गाँव के मेले में भी यही होता था। किसी की पहचान खोती नहीं थी, लेकिन सबकी पहचान मिलकर एक मेले की पहचान बन जाती थी।

गद्यांश में आए ‘वादा’ शब्द का बहुवचन निम्नलिखित में से होगा–

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111. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
बचपन में मेलों में जाने की अजीब उमंग थी, उछाह था। साथ में देख-रेख के लिए लोग जाते थे, पर मन में यही होता था कि कब उनको झाँसा देखकर निकल जाएँ और अपने हम उम्र साथियों के साथ स्वतंत्र विचरें, अपार सागर में उमंग की छोटी-सी नाव लेकर खो जाने का भय हो और उस भय में भी एक न्योता हो कि खोकर देखें कि खोना कैसा होता हे। घर में लुका-छिपी के खेल में छिपना मुश्किल होता है, कहीं ओट नहीं मिलती है और भीड़ से बड़ी कोई ओट नहीं होती है, भीड़ से बड़ा कोई भय भी नहीं होता। अपने आदमी भी भीड़ में पराये हो जाते हैं। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि भीड़ में आदमी गिर जाता है तो कोई अपना ही कुचल कर चल देता है, क्योंकि उस समय वह आदमी होता ही नहीं, भीड़ होती है। भीड़ कई प्रकार की होती है। एक भीड़ होती है रेल यात्रा के समय  आदमी स्थान के लिए रगड़ता-झगड़ता है, फिर थोड़ी ही देर में जाने कितने जमांतर का परिचय जग जाता है, बिछड़ते हुए भावुक हो जाता है। एक भीड़ होती है ऐसे जुलूस की जिसमें उमंग ही उमंग होती है, एक उमंग दूसरी के लिए एक प्रेरक होती है, वह भीड़ अब स्वाधीन भारत में नहीं दिखाई पड़ती। ऐसे भी जुलूस होते हैं जहाँ भीड़, भाड़े के आदमियों की होती है, जिन्हें पता ही नहीं होता कि हम किसलिए जुलूस में शरीक हैं। वहाँ बुलवाये गए नारे होते हैं, मन में वादा की गई धनराशि की चिंता होती है। वहाँ उमंग नहीं होती, उमंग का परिहास होता है। इन जुलूसों की भीड़ से बिल्कुल अलग एक भीड़ होती है जो मंदिरों में दर्शन के लिए जाती है, जो दर्शन की इच्छा से जाती है और जुलूस की नियंत्रित भीड़ से अधिक संयत और शांत होती है, आरती के समय अपने ढंग से ध्यानस्थ होती है। इन सबसे अलग है मेले की भीड़। कुछ उचक्के लोगों का अपवाद छोड़कर यह राग-रंग की उत्सुकता का महासागर होती है। कितने राग मिलते हैं, एक-दूसरे में घुलते हैं, कितने रंग मिलकर मेले की रंगत बनते हैं। प्रयाग के माघ मेले में किन-किन प्रदेशों के यात्रा गीत अलग-अलग धुनों में गूँजते हैं और सबकी एक अनुगूँज पूरे मेले को तरंगित करती रहती है। गाँव के मेले में भी यही होता था। किसी की पहचान खोती नहीं थी, लेकिन सबकी पहचान मिलकर एक मेले की पहचान बन जाती थी।

गद्यांश में आया ‘जुलूस’ शब्द किस लिंग का है?

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112. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
बचपन में मेलों में जाने की अजीब उमंग थी, उछाह था। साथ में देख-रेख के लिए लोग जाते थे, पर मन में यही होता था कि कब उनको झाँसा देखकर निकल जाएँ और अपने हम उम्र साथियों के साथ स्वतंत्र विचरें, अपार सागर में उमंग की छोटी-सी नाव लेकर खो जाने का भय हो और उस भय में भी एक न्योता हो कि खोकर देखें कि खोना कैसा होता हे। घर में लुका-छिपी के खेल में छिपना मुश्किल होता है, कहीं ओट नहीं मिलती है और भीड़ से बड़ी कोई ओट नहीं होती है, भीड़ से बड़ा कोई भय भी नहीं होता। अपने आदमी भी भीड़ में पराये हो जाते हैं। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि भीड़ में आदमी गिर जाता है तो कोई अपना ही कुचल कर चल देता है, क्योंकि उस समय वह आदमी होता ही नहीं, भीड़ होती है। भीड़ कई प्रकार की होती है। एक भीड़ होती है रेल यात्रा के समय  आदमी स्थान के लिए रगड़ता-झगड़ता है, फिर थोड़ी ही देर में जाने कितने जमांतर का परिचय जग जाता है, बिछड़ते हुए भावुक हो जाता है। एक भीड़ होती है ऐसे जुलूस की जिसमें उमंग ही उमंग होती है, एक उमंग दूसरी के लिए एक प्रेरक होती है, वह भीड़ अब स्वाधीन भारत में नहीं दिखाई पड़ती। ऐसे भी जुलूस होते हैं जहाँ भीड़, भाड़े के आदमियों की होती है, जिन्हें पता ही नहीं होता कि हम किसलिए जुलूस में शरीक हैं। वहाँ बुलवाये गए नारे होते हैं, मन में वादा की गई धनराशि की चिंता होती है। वहाँ उमंग नहीं होती, उमंग का परिहास होता है। इन जुलूसों की भीड़ से बिल्कुल अलग एक भीड़ होती है जो मंदिरों में दर्शन के लिए जाती है, जो दर्शन की इच्छा से जाती है और जुलूस की नियंत्रित भीड़ से अधिक संयत और शांत होती है, आरती के समय अपने ढंग से ध्यानस्थ होती है। इन सबसे अलग है मेले की भीड़। कुछ उचक्के लोगों का अपवाद छोड़कर यह राग-रंग की उत्सुकता का महासागर होती है। कितने राग मिलते हैं, एक-दूसरे में घुलते हैं, कितने रंग मिलकर मेले की रंगत बनते हैं। प्रयाग के माघ मेले में किन-किन प्रदेशों के यात्रा गीत अलग-अलग धुनों में गूँजते हैं और सबकी एक अनुगूँज पूरे मेले को तरंगित करती रहती है। गाँव के मेले में भी यही होता था। किसी की पहचान खोती नहीं थी, लेकिन सबकी पहचान मिलकर एक मेले की पहचान बन जाती थी।

“बचपन में मेलों में जाने की अजीब उमंग थी।” यह वाक्य किस काल का है?

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113. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
हमारे इतिहास के अध्ययन ने हमें यह दर्शाया है कि जीवन प्राय: बहुत क्रूर तथा कठोर है। इसके लिए उत्तेजित होना या लोगों को पूरी तरह दोषी ठहराना मूर्खता है और उसका कोई लाभ नहीं। गरीबी, दु:ख और शोषण के कारणों को समझने और उनको दूर करने के प्रयत्नों में ही समझदारी है। यदि हम ऐसा करने में असफल हो जाते हैं और घटनाओं की दौड़ में पीछे रह जाते हैं तो हम अवश्य कष्ट पाते हैं। भारत इस तरह से पीछे रह गया। इसके समाज ने पुरातन परंपरा को धारण कर लिया, इसके सामाजिक ढाँचे ने अपने जीवन और शक्ति को खो दिया और यह निष्क्रिय होने लगा। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत ने कष्ट पाया। अंग्रेज इसका कारण रहे हैं। यदि अंग्रेज ऐसा न करते तो शायद कोई और लोग ऐसा ही करते।
अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित भी किया। उनके नए और हष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ, परंतु जिनके भाग्य में नए राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था। तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब निश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था, परंतु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतंत्रता दे देगा।
भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिंदू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परंतु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ, ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परंतु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमें सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग प्रभावित हो गए थे। उन्नींसवी शताब्दी के आरंभ में पश्चिमी तरीकों से हिंदू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिंदू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे। द्वितीय प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था। इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान् व्यक्ति और एक महान विद्वान् जिसका नाम सती प्रथा की समाप्ति के संबंध में लिया जाता है। वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था। वे धार्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्म समाज कहलाया।

‘गरीब’ शब्द किस भाषा का शब्द है?

114 / 150

114. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
हमारे इतिहास के अध्ययन ने हमें यह दर्शाया है कि जीवन प्राय: बहुत क्रूर तथा कठोर है। इसके लिए उत्तेजित होना या लोगों को पूरी तरह दोषी ठहराना मूर्खता है और उसका कोई लाभ नहीं। गरीबी, दु:ख और शोषण के कारणों को समझने और उनको दूर करने के प्रयत्नों में ही समझदारी है। यदि हम ऐसा करने में असफल हो जाते हैं और घटनाओं की दौड़ में पीछे रह जाते हैं तो हम अवश्य कष्ट पाते हैं। भारत इस तरह से पीछे रह गया। इसके समाज ने पुरातन परंपरा को धारण कर लिया, इसके सामाजिक ढाँचे ने अपने जीवन और शक्ति को खो दिया और यह निष्क्रिय होने लगा। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत ने कष्ट पाया। अंग्रेज इसका कारण रहे हैं। यदि अंग्रेज ऐसा न करते तो शायद कोई और लोग ऐसा ही करते।
अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित भी किया। उनके नए और हष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ, परंतु जिनके भाग्य में नए राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था। तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब निश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था, परंतु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतंत्रता दे देगा।
भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिंदू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परंतु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ, ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परंतु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमें सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग प्रभावित हो गए थे। उन्नींसवी शताब्दी के आरंभ में पश्चिमी तरीकों से हिंदू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिंदू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे। द्वितीय प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था। इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान् व्यक्ति और एक महान विद्वान् जिसका नाम सती प्रथा की समाप्ति के संबंध में लिया जाता है। वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था। वे धार्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्म समाज कहलाया।

निम्नलिखित में से स्त्रीलिंग शब्द नहीं है–

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115. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
हमारे इतिहास के अध्ययन ने हमें यह दर्शाया है कि जीवन प्राय: बहुत क्रूर तथा कठोर है। इसके लिए उत्तेजित होना या लोगों को पूरी तरह दोषी ठहराना मूर्खता है और उसका कोई लाभ नहीं। गरीबी, दु:ख और शोषण के कारणों को समझने और उनको दूर करने के प्रयत्नों में ही समझदारी है। यदि हम ऐसा करने में असफल हो जाते हैं और घटनाओं की दौड़ में पीछे रह जाते हैं तो हम अवश्य कष्ट पाते हैं। भारत इस तरह से पीछे रह गया। इसके समाज ने पुरातन परंपरा को धारण कर लिया, इसके सामाजिक ढाँचे ने अपने जीवन और शक्ति को खो दिया और यह निष्क्रिय होने लगा। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत ने कष्ट पाया। अंग्रेज इसका कारण रहे हैं। यदि अंग्रेज ऐसा न करते तो शायद कोई और लोग ऐसा ही करते।
अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित भी किया। उनके नए और हष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ, परंतु जिनके भाग्य में नए राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था। तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब निश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था, परंतु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतंत्रता दे देगा।
भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिंदू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परंतु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ, ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परंतु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमें सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग प्रभावित हो गए थे। उन्नींसवी शताब्दी के आरंभ में पश्चिमी तरीकों से हिंदू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिंदू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे। द्वितीय प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था। इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान् व्यक्ति और एक महान विद्वान् जिसका नाम सती प्रथा की समाप्ति के संबंध में लिया जाता है। वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था। वे धार्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्म समाज कहलाया।

‘धार्मिक’ शब्द में प्रत्यय है–

116 / 150

116. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
हमारे इतिहास के अध्ययन ने हमें यह दर्शाया है कि जीवन प्राय: बहुत क्रूर तथा कठोर है। इसके लिए उत्तेजित होना या लोगों को पूरी तरह दोषी ठहराना मूर्खता है और उसका कोई लाभ नहीं। गरीबी, दु:ख और शोषण के कारणों को समझने और उनको दूर करने के प्रयत्नों में ही समझदारी है। यदि हम ऐसा करने में असफल हो जाते हैं और घटनाओं की दौड़ में पीछे रह जाते हैं तो हम अवश्य कष्ट पाते हैं। भारत इस तरह से पीछे रह गया। इसके समाज ने पुरातन परंपरा को धारण कर लिया, इसके सामाजिक ढाँचे ने अपने जीवन और शक्ति को खो दिया और यह निष्क्रिय होने लगा। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत ने कष्ट पाया। अंग्रेज इसका कारण रहे हैं। यदि अंग्रेज ऐसा न करते तो शायद कोई और लोग ऐसा ही करते।
अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित भी किया। उनके नए और हष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ, परंतु जिनके भाग्य में नए राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था। तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब निश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था, परंतु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतंत्रता दे देगा।
भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिंदू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परंतु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ, ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परंतु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमें सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग प्रभावित हो गए थे। उन्नींसवी शताब्दी के आरंभ में पश्चिमी तरीकों से हिंदू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिंदू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे। द्वितीय प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था। इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान् व्यक्ति और एक महान विद्वान् जिसका नाम सती प्रथा की समाप्ति के संबंध में लिया जाता है। वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था। वे धार्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्म समाज कहलाया।

गद्यांश में ‘शताब्दी’ शब्द का सही समास-विग्रह होगा–

117 / 150

117. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
हमारे इतिहास के अध्ययन ने हमें यह दर्शाया है कि जीवन प्राय: बहुत क्रूर तथा कठोर है। इसके लिए उत्तेजित होना या लोगों को पूरी तरह दोषी ठहराना मूर्खता है और उसका कोई लाभ नहीं। गरीबी, दु:ख और शोषण के कारणों को समझने और उनको दूर करने के प्रयत्नों में ही समझदारी है। यदि हम ऐसा करने में असफल हो जाते हैं और घटनाओं की दौड़ में पीछे रह जाते हैं तो हम अवश्य कष्ट पाते हैं। भारत इस तरह से पीछे रह गया। इसके समाज ने पुरातन परंपरा को धारण कर लिया, इसके सामाजिक ढाँचे ने अपने जीवन और शक्ति को खो दिया और यह निष्क्रिय होने लगा। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत ने कष्ट पाया। अंग्रेज इसका कारण रहे हैं। यदि अंग्रेज ऐसा न करते तो शायद कोई और लोग ऐसा ही करते।
अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित भी किया। उनके नए और हष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ, परंतु जिनके भाग्य में नए राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था। तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब निश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था, परंतु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतंत्रता दे देगा।
भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिंदू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परंतु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ, ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परंतु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमें सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग प्रभावित हो गए थे। उन्नींसवी शताब्दी के आरंभ में पश्चिमी तरीकों से हिंदू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिंदू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे। द्वितीय प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था। इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान् व्यक्ति और एक महान विद्वान् जिसका नाम सती प्रथा की समाप्ति के संबंध में लिया जाता है। वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था। वे धार्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्म समाज कहलाया।

उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया।‘ वाक्य में रेखांकित पद है–

118 / 150

118. ‘निष्क्रिय’ शब्द का विलोम है–

119 / 150

119. गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का सबसे उचित विकल्प चुनिए–
हमारे इतिहास के अध्ययन ने हमें यह दर्शाया है कि जीवन प्राय: बहुत क्रूर तथा कठोर है। इसके लिए उत्तेजित होना या लोगों को पूरी तरह दोषी ठहराना मूर्खता है और उसका कोई लाभ नहीं। गरीबी, दु:ख और शोषण के कारणों को समझने और उनको दूर करने के प्रयत्नों में ही समझदारी है। यदि हम ऐसा करने में असफल हो जाते हैं और घटनाओं की दौड़ में पीछे रह जाते हैं तो हम अवश्य कष्ट पाते हैं। भारत इस तरह से पीछे रह गया। इसके समाज ने पुरातन परंपरा को धारण कर लिया, इसके सामाजिक ढाँचे ने अपने जीवन और शक्ति को खो दिया और यह निष्क्रिय होने लगा। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत ने कष्ट पाया। अंग्रेज इसका कारण रहे हैं। यदि अंग्रेज ऐसा न करते तो शायद कोई और लोग ऐसा ही करते।
अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित भी किया। उनके नए और हष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ, परंतु जिनके भाग्य में नए राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था। तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब निश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था, परंतु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतंत्रता दे देगा।
भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिंदू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परंतु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ, ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परंतु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमें सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग प्रभावित हो गए थे। उन्नींसवी शताब्दी के आरंभ में पश्चिमी तरीकों से हिंदू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिंदू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे। द्वितीय प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था। इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान् व्यक्ति और एक महान विद्वान् जिसका नाम सती प्रथा की समाप्ति के संबंध में लिया जाता है। वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था। वे धार्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्म समाज कहलाया।

“दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे।” उक्त कथन में रेखांकित पद है–

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120. ‘अध्ययन’ शब्द का संधि-विच्छेद है–

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