मॉडल पेपर 4: REET Level 1st फ्री टेस्ट सीरीज 2025: (मनोविज्ञान, पर्यावरण, गणित, हिंदी, संस्कृत)

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REET 2025 की तैयारी अभी से शुरू करें! इस फ्री टेस्ट सीरीज के मॉडल पेपर 4 में 150 महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं, जो मनोविज्ञान (30 प्रश्न), हिंदी (30 प्रश्न), संस्कृत (30 प्रश्न) और पर्यावरण एवं गणित (60 प्रश्न) से संबंधित हैं। अपनी तैयारी को परखें और REET Level 1st में सफलता प्राप्त करें!

Table:

विषयप्रश्न संख्या
मनोविज्ञान30
हिंदी30
संस्कृत30
पर्यावरण & गणित60
कुल150

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Model Paper 4: REET लेवल 1st | Full Length Test 150 प्रश्न | भाषा: हिंदी | संस्कृत

Model Paper 4: REET लेवल 1st | Full Length Test 150 प्रश्न | भाषा: हिंदी | संस्कृत

🔴महत्वपूर्ण निर्देश 🔴

✅ टेस्ट शुरू करने से पहले कृपया सही जानकारी भरे |
✅ सभी प्रश्नों को आराम से पढ़कर उत्तर दे |
✅सभी प्रश्नों का उत्तर टेस्ट पूर्ण करने पर दिखाई देगा |
✅ टेस्ट पूर्ण करने पर सभी प्रश्नों के उत्तर विस्तार से समझाया गया है |

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25. निम्नलिखित में से प्रोटीन की कमी से होने वाला रोग है -

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29. निम्नलिखित में से कौनसा उदाहरण संघ प्रोटोजोआ वर्ग का नहीं है -

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30. विटामिन –A का रासायनिक नाम क्या है ?

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35. गणित के नियमों, सूत्रों, सिद्धांतों पर आधारित प्राप्त करने के लिए निरन्तर …… की आवश्यकता होती है।

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36. “प्रोजेक्ट कार्य की एक इकाई है, जिसमें छात्रों को कार्य की योजना और सम्पन्नता के लिए उत्तरदायी बनाया जाता है।“ उपर्युक्त परिभाषा का संबंध है–

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37. निम्नलिखित में से बालकेन्द्रित विधि नहीं है-
(1) प्रयोजना
(2) प्रयोगशाला
(3) समस्या-समाधान
(4) व्याख्यान
(5) व्याख्यान-प्रदर्शन
कूट:

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38. आगमन विधि निम्नलिखित में से किसके लिए उपयुक्त है?

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39. गणित की भाषा की विशेषता है-

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40. प्राथमिक स्तर पर गणित का क्या महत्त्व है?

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52. 45 लोगों को एक तालाब खोदने में 18 दिन लगते हैं। यदि तालाब को 15 दिन में खोदना पड़े, तो नियोजित किये जाने वाले व्यक्तियों की संख्या होगी

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55. प्रिया ने 25">2/5 मीटर कपड़ा व सरोज ने 73">7/3 मीटर कपड़ा खरीदा, तो दोनों ने कुल कितना कपड़ा खरीदा?

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56. एक व्यक्ति अपने वेतन का 1/5 भाग शिक्षा पर, 14">1/4 भाग भोजन पर, 3/10 भाग मनोरंजन पर खर्च करता है तथा 10140 रु. की बचत करता है तो व्यक्ति का वेतन ज्ञात कीजिए।

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58. निम्नलिखित को हल कीजिए।

176 + 17.6+ 1.76 + 0.176 + 0.0176 = ?

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59. 12 मिलियन को भारतीय संख्या प्रणाली में किस प्रकार लिखा जा सकता है?

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60. एक स्कूल में आधे छात्र क्रिकेट खेलते है, एक-चौथाई छात्र वॉलीबॉल खेलते है, \(\frac{1}{8}\) छात्र टेनिस खेलते है तथा \(\frac{1}{16}\) छात्र शतरंज खेलते है और शेष बैडमिंटन खेलते है। यदि वॉलीबॉल खेलने वाले छात्रों की संख्या 160 है तो शंतरज खेलने वाले छात्रों की संख्या कितनी है?

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61. एक स्कूल में आधे छात्र क्रिकेट खेलते है, एक-चौथाई छात्र वॉलीबॉल खेलते है, \(\frac{1}{8}\) छात्र टेनिस खेलते है तथा \(\frac{1}{16}\) छात्र शतरंज खेलते है और शेष बैडमिंटन खेलते है। यदि वॉलीबॉल खेलने वाले छात्रों की संख्या 160 है तो शंतरज खेलने वाले छात्रों की संख्या कितनी है?

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82. स्वामीकेशवानन्दस्य जन्म पौषमासे 1940 तमे विक्रम-संवत्सरे (ईस्वी 1883) राजस्थानस्य सीकर-जनपदे मगलूणा ग्रामे अभवत्। अस्य पितुर्नाम ठाकुरसी ढाका इति मातुश्च नामा सारा इत्यासीत्। बाल्ये केशवानन्दस्य नाम ‘बीरमा’ इत्यासीत्। यदा एष: बाल: सप्तवर्षकल्प: आसीत् तदैव उष्ट्रमेकमाश्रित्य रतनगढ़ – स्थले जीवनयापनं कुर्वन्नस्य पिता दिवङ्गत:। पितु: प्रयाणात् प्रागेव विपन्नतायां श्रेष्ठिगृहेषु गोधूमादि पेेषणं पात्रमार्जनम् इत्येवमादिभि: कार्यै: यथाकथिञ्च कालयापनं कुर्वती अस्य बालस्य वराकी माता इदानीं वैधव्य कारणाद् इतोऽपि विपदाभिभूता अभवत् उच्यते हि– ‘छिद्रेष्वनर्था: बहुली भवन्ति।” इदानीं मातु: सहयोगाय बीरमा बालकेन गोचारण कार्यमारब्धम्।

‘प्रागेव’ इत्यत्र सन्धि: अस्ति -

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83. स्वामीकेशवानन्दस्य जन्म पौषमासे 1940 तमे विक्रम-संवत्सरे (ईस्वी 1883) राजस्थानस्य सीकर-जनपदे मगलूणा ग्रामे अभवत्। अस्य पितुर्नाम ठाकुरसी ढाका इति मातुश्च नामा सारा इत्यासीत्। बाल्ये केशवानन्दस्य नाम ‘बीरमा’ इत्यासीत्। यदा एष: बाल: सप्तवर्षकल्प: आसीत् तदैव उष्ट्रमेकमाश्रित्य रतनगढ़ – स्थले जीवनयापनं कुर्वन्नस्य पिता दिवङ्गत:। पितु: प्रयाणात् प्रागेव विपन्नतायां श्रेष्ठिगृहेषु गोधूमादि पेेषणं पात्रमार्जनम् इत्येवमादिभि: कार्यै: यथाकथिञ्च कालयापनं कुर्वती अस्य बालस्य वराकी माता इदानीं वैधव्य कारणाद् इतोऽपि विपदाभिभूता अभवत् उच्यते हि– ‘छिद्रेष्वनर्था: बहुली भवन्ति।” इदानीं मातु: सहयोगाय बीरमा बालकेन गोचारण कार्यमारब्धम्।

‘आरब्धम्’ इत्यत्र क: प्रत्यय:

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84. वर्षागमे चारुमरुं विहाय क्वान्यत्र कस्यापि रमेत चित्तम्।

सर: सु वर्षासमयेऽपि यस्मिन् शरत्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति।।

‘कस्यापि’ इति पदस्य सन्धिविच्छेद: क:?

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85. वर्षागमे चारुमरुं विहाय क्वान्यत्र कस्यापि रमेत चित्तम्।

सर: सु वर्षासमयेऽपि यस्मिन् शरत्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति।।

‘शरत् - प्रसन्नम्’ इति विशेषणस्य विशेष्यपदं किम्?

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86. स्वामीकेशवानन्दस्य जन्म पौषमासे 1940 तमे विक्रम-संवत्सरे (ईस्वी 1883) राजस्थानस्य सीकर-जनपदे मगलूणा ग्रामे अभवत्। अस्य पितुर्नाम ठाकुरसी ढाका इति मातुश्च नामा सारा इत्यासीत्। बाल्ये केशवानन्दस्य नाम ‘बीरमा’ इत्यासीत्। यदा एष: बाल: सप्तवर्षकल्प: आसीत् तदैव उष्ट्रमेकमाश्रित्य रतनगढ़ – स्थले जीवनयापनं कुर्वन्नस्य पिता दिवङ्गत:। पितु: प्रयाणात् प्रागेव विपन्नतायां श्रेष्ठिगृहेषु गोधूमादि पेेषणं पात्रमार्जनम् इत्येवमादिभि: कार्यै: यथाकथिञ्च कालयापनं कुर्वती अस्य बालस्य वराकी माता इदानीं वैधव्य कारणाद् इतोऽपि विपदाभिभूता अभवत् उच्यते हि– ‘छिद्रेष्वनर्था: बहुली भवन्ति।” इदानीं मातु: सहयोगाय बीरमा बालकेन गोचारण कार्यमारब्धम्।

‘आसीत्’ इति पदं लृट्लकारे परिवर्तयत-

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87. वर्षागमे चारुमरुं विहाय क्वान्यत्र कस्यापि रमेत चित्तम्।

सर: सु वर्षासमयेऽपि यस्मिन् शरत्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति।।

‘चारुमरुम्’ इति पदे प्रयुक्तसमासस्य किन्नाम?

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88. स्वामीकेशवानन्दस्य जन्म पौषमासे 1940 तमे विक्रम-संवत्सरे (ईस्वी 1883) राजस्थानस्य सीकर-जनपदे मगलूणा ग्रामे अभवत्। अस्य पितुर्नाम ठाकुरसी ढाका इति मातुश्च नामा सारा इत्यासीत्। बाल्ये केशवानन्दस्य नाम ‘बीरमा’ इत्यासीत्। यदा एष: बाल: सप्तवर्षकल्प: आसीत् तदैव उष्ट्रमेकमाश्रित्य रतनगढ़ – स्थले जीवनयापनं कुर्वन्नस्य पिता दिवङ्गत:। पितु: प्रयाणात् प्रागेव विपन्नतायां श्रेष्ठिगृहेषु गोधूमादि पेेषणं पात्रमार्जनम् इत्येवमादिभि: कार्यै: यथाकथिञ्च कालयापनं कुर्वती अस्य बालस्य वराकी माता इदानीं वैधव्य कारणाद् इतोऽपि विपदाभिभूता अभवत् उच्यते हि– ‘छिद्रेष्वनर्था: बहुली भवन्ति।” इदानीं मातु: सहयोगाय बीरमा बालकेन गोचारण कार्यमारब्धम्।

“कालयापनम्” इत्यत्र क: समास: -

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89. स्वामीकेशवानन्दस्य जन्म पौषमासे 1940 तमे विक्रम-संवत्सरे (ईस्वी 1883) राजस्थानस्य सीकर-जनपदे मगलूणा ग्रामे अभवत्। अस्य पितुर्नाम ठाकुरसी ढाका इति मातुश्च नामा सारा इत्यासीत्। बाल्ये केशवानन्दस्य नाम ‘बीरमा’ इत्यासीत्। यदा एष: बाल: सप्तवर्षकल्प: आसीत् तदैव उष्ट्रमेकमाश्रित्य रतनगढ़ – स्थले जीवनयापनं कुर्वन्नस्य पिता दिवङ्गत:। पितु: प्रयाणात् प्रागेव विपन्नतायां श्रेष्ठिगृहेषु गोधूमादि पेेषणं पात्रमार्जनम् इत्येवमादिभि: कार्यै: यथाकथिञ्च कालयापनं कुर्वती अस्य बालस्य वराकी माता इदानीं वैधव्य कारणाद् इतोऽपि विपदाभिभूता अभवत् उच्यते हि– ‘छिद्रेष्वनर्था: बहुली भवन्ति।” इदानीं मातु: सहयोगाय बीरमा बालकेन गोचारण कार्यमारब्धम्।

मातु: इत्यत्र का विभक्ति: अस्ति -

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90. वर्षागमे चारुमरुं विहाय क्वान्यत्र कस्यापि रमेत चित्तम्।

सर: सु वर्षासमयेऽपि यस्मिन् शरत्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति।।

‘विहाय’ इति पदे क: प्रत्यय:?

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91. वर्षागमे चारुमरुं विहाय क्वान्यत्र कस्यापि रमेत चित्तम्।

सर: सु वर्षासमयेऽपि यस्मिन् शरत्-प्रसन्नं सलिलं चकास्ति।।

‘वर्षागमे चारुमरं विहाय’ इति पद्यांशे क: छन्द:?

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107. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
सुखी सफल और उत्तम जीवन जीने के लिए किए गए आचरण और प्रयत्नों का नाम ही धर्म है। देश, काल और सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से संसार में भारी विविधता है, अतएव अपने-अपने ढंग से जीवन को पूर्णता की ओर ले जाने वाले विविध धर्मों के बीच भी ऊपर से विविधता दिखाई देती है। आदमी का स्वभाव है कि वह अपने विचारों और जीने के तौर तरीकों को तथा अपनी भाषा और खानपान को सर्वश्रेष्ठ मानता है तथा चाहता है कि लोग उसी का अनुसरण करें; यथाशक्ति दूसरों से अपने धर्म को श्रेष्ठतर समझते हुए वह चाहता है कि सभी लोग उसे अपनाएँ। इसके लिए वह जोर-जबर्दस्ती को भी बुरा नहीं समझता। धर्म के नाम पर होने वाले जातिगत विद्वेष, मारकाट और हिंसा के पीछे मनुष्य की यही स्वार्थ-भावना काम करती है।

‘अपने हित के लिए किया गया कार्य’ वाक्यांश के लिए एक शब्द है–

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108. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
इस भूमि, भूमि पर बसने वाला जन और उसकी संस्कृति– इन तीनों के सम्मिलित रूप से राष्ट्र का स्वरूप बनता है। भूमि के मौखिक रूप और समृद्धि के प्रति सचेत होना हमारा कर्तव्य है। जो राष्ट्रीयता पृथ्वी के साथ जुड़ी नहीं होती, वह निर्मूल होती है। धरती माता की कोख में जो अमूल्य निधियाँ भरी पड़ी है, उन्हीं के कारण वह वसुंधरा कहलाती है। मातृभूमि पर निवास करने वाले मनुष्य राष्ट्र का दूसरा अंग है। उनके कारण ही पृथ्वी मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है। पृथ्वी माता है और जन सच्चे अर्थों में पृथ्वी का पुत्र है। यहाँ यह भाव नहीं है, वहाँ जन और भूमि का संबंध अचेतन और जड़ बना रहता है। माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती है। इस प्रकार पृथ्वी पर बसने वाले सभी जन बराबर है। उनमें ऊँच और नीच का भाव नहीं है। ये जन अनेक प्रकार की भाषा बोलने वाले और अनेक धर्मों को मानने वाले हैं, फिर भी ये मातृभूमि के पुत्र है।

‘अमूल्य’ का अर्थ है–

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109. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
सुखी सफल और उत्तम जीवन जीने के लिए किए गए आचरण और प्रयत्नों का नाम ही धर्म है। देश, काल और सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से संसार में भारी विविधता है, अतएव अपने-अपने ढंग से जीवन को पूर्णता की ओर ले जाने वाले विविध धर्मों के बीच भी ऊपर से विविधता दिखाई देती है। आदमी का स्वभाव है कि वह अपने विचारों और जीने के तौर तरीकों को तथा अपनी भाषा और खानपान को सर्वश्रेष्ठ मानता है तथा चाहता है कि लोग उसी का अनुसरण करें; यथाशक्ति दूसरों से अपने धर्म को श्रेष्ठतर समझते हुए वह चाहता है कि सभी लोग उसे अपनाएँ। इसके लिए वह जोर-जबर्दस्ती को भी बुरा नहीं समझता। धर्म के नाम पर होने वाले जातिगत विद्वेष, मारकाट और हिंसा के पीछे मनुष्य की यही स्वार्थ-भावना काम करती है।

‘अतएव’ शब्द में संधि है–

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110. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
सुखी सफल और उत्तम जीवन जीने के लिए किए गए आचरण और प्रयत्नों का नाम ही धर्म है। देश, काल और सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से संसार में भारी विविधता है, अतएव अपने-अपने ढंग से जीवन को पूर्णता की ओर ले जाने वाले विविध धर्मों के बीच भी ऊपर से विविधता दिखाई देती है। आदमी का स्वभाव है कि वह अपने विचारों और जीने के तौर तरीकों को तथा अपनी भाषा और खानपान को सर्वश्रेष्ठ मानता है तथा चाहता है कि लोग उसी का अनुसरण करें; यथाशक्ति दूसरों से अपने धर्म को श्रेष्ठतर समझते हुए वह चाहता है कि सभी लोग उसे अपनाएँ। इसके लिए वह जोर-जबर्दस्ती को भी बुरा नहीं समझता। धर्म के नाम पर होने वाले जातिगत विद्वेष, मारकाट और हिंसा के पीछे मनुष्य की यही स्वार्थ-भावना काम करती है।

‘श्रेष्ठतर’ शब्द में विशेषण की कौन-सी अवस्था है?

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111. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
सुखी सफल और उत्तम जीवन जीने के लिए किए गए आचरण और प्रयत्नों का नाम ही धर्म है। देश, काल और सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से संसार में भारी विविधता है, अतएव अपने-अपने ढंग से जीवन को पूर्णता की ओर ले जाने वाले विविध धर्मों के बीच भी ऊपर से विविधता दिखाई देती है। आदमी का स्वभाव है कि वह अपने विचारों और जीने के तौर तरीकों को तथा अपनी भाषा और खानपान को सर्वश्रेष्ठ मानता है तथा चाहता है कि लोग उसी का अनुसरण करें; यथाशक्ति दूसरों से अपने धर्म को श्रेष्ठतर समझते हुए वह चाहता है कि सभी लोग उसे अपनाएँ। इसके लिए वह जोर-जबर्दस्ती को भी बुरा नहीं समझता। धर्म के नाम पर होने वाले जातिगत विद्वेष, मारकाट और हिंसा के पीछे मनुष्य की यही स्वार्थ-भावना काम करती है।

‘देश’ शब्द का पर्यायवाची है–

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112. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
सुखी सफल और उत्तम जीवन जीने के लिए किए गए आचरण और प्रयत्नों का नाम ही धर्म है। देश, काल और सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से संसार में भारी विविधता है, अतएव अपने-अपने ढंग से जीवन को पूर्णता की ओर ले जाने वाले विविध धर्मों के बीच भी ऊपर से विविधता दिखाई देती है। आदमी का स्वभाव है कि वह अपने विचारों और जीने के तौर तरीकों को तथा अपनी भाषा और खानपान को सर्वश्रेष्ठ मानता है तथा चाहता है कि लोग उसी का अनुसरण करें; यथाशक्ति दूसरों से अपने धर्म को श्रेष्ठतर समझते हुए वह चाहता है कि सभी लोग उसे अपनाएँ। इसके लिए वह जोर-जबर्दस्ती को भी बुरा नहीं समझता। धर्म के नाम पर होने वाले जातिगत विद्वेष, मारकाट और हिंसा के पीछे मनुष्य की यही स्वार्थ-भावना काम करती है।

‘वह जोर-जबर्दस्ती को भी बुरा नहीं समझता।’ वाक्य में कौन-सा सर्वनाम है?

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113. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
सुखी सफल और उत्तम जीवन जीने के लिए किए गए आचरण और प्रयत्नों का नाम ही धर्म है। देश, काल और सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से संसार में भारी विविधता है, अतएव अपने-अपने ढंग से जीवन को पूर्णता की ओर ले जाने वाले विविध धर्मों के बीच भी ऊपर से विविधता दिखाई देती है। आदमी का स्वभाव है कि वह अपने विचारों और जीने के तौर तरीकों को तथा अपनी भाषा और खानपान को सर्वश्रेष्ठ मानता है तथा चाहता है कि लोग उसी का अनुसरण करें; यथाशक्ति दूसरों से अपने धर्म को श्रेष्ठतर समझते हुए वह चाहता है कि सभी लोग उसे अपनाएँ। इसके लिए वह जोर-जबर्दस्ती को भी बुरा नहीं समझता। धर्म के नाम पर होने वाले जातिगत विद्वेष, मारकाट और हिंसा के पीछे मनुष्य की यही स्वार्थ-भावना काम करती है।

‘आचरण और प्रयत्नों का नाम ही धर्म है।’ वाक्य में रेखांकित शब्द में अव्यय है–

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114. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
इस भूमि, भूमि पर बसने वाला जन और उसकी संस्कृति– इन तीनों के सम्मिलित रूप से राष्ट्र का स्वरूप बनता है। भूमि के मौखिक रूप और समृद्धि के प्रति सचेत होना हमारा कर्तव्य है। जो राष्ट्रीयता पृथ्वी के साथ जुड़ी नहीं होती, वह निर्मूल होती है। धरती माता की कोख में जो अमूल्य निधियाँ भरी पड़ी है, उन्हीं के कारण वह वसुंधरा कहलाती है। मातृभूमि पर निवास करने वाले मनुष्य राष्ट्र का दूसरा अंग है। उनके कारण ही पृथ्वी मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है। पृथ्वी माता है और जन सच्चे अर्थों में पृथ्वी का पुत्र है। यहाँ यह भाव नहीं है, वहाँ जन और भूमि का संबंध अचेतन और जड़ बना रहता है। माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती है। इस प्रकार पृथ्वी पर बसने वाले सभी जन बराबर है। उनमें ऊँच और नीच का भाव नहीं है। ये जन अनेक प्रकार की भाषा बोलने वाले और अनेक धर्मों को मानने वाले हैं, फिर भी ये मातृभूमि के पुत्र है।

‘भाव’ शब्द है–

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115. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
सुखी सफल और उत्तम जीवन जीने के लिए किए गए आचरण और प्रयत्नों का नाम ही धर्म है। देश, काल और सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से संसार में भारी विविधता है, अतएव अपने-अपने ढंग से जीवन को पूर्णता की ओर ले जाने वाले विविध धर्मों के बीच भी ऊपर से विविधता दिखाई देती है। आदमी का स्वभाव है कि वह अपने विचारों और जीने के तौर तरीकों को तथा अपनी भाषा और खानपान को सर्वश्रेष्ठ मानता है तथा चाहता है कि लोग उसी का अनुसरण करें; यथाशक्ति दूसरों से अपने धर्म को श्रेष्ठतर समझते हुए वह चाहता है कि सभी लोग उसे अपनाएँ। इसके लिए वह जोर-जबर्दस्ती को भी बुरा नहीं समझता। धर्म के नाम पर होने वाले जातिगत विद्वेष, मारकाट और हिंसा के पीछे मनुष्य की यही स्वार्थ-भावना काम करती है।

‘विद्वेष’ शब्द में उपसर्ग है–

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116. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
सुखी सफल और उत्तम जीवन जीने के लिए किए गए आचरण और प्रयत्नों का नाम ही धर्म है। देश, काल और सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से संसार में भारी विविधता है, अतएव अपने-अपने ढंग से जीवन को पूर्णता की ओर ले जाने वाले विविध धर्मों के बीच भी ऊपर से विविधता दिखाई देती है। आदमी का स्वभाव है कि वह अपने विचारों और जीने के तौर तरीकों को तथा अपनी भाषा और खानपान को सर्वश्रेष्ठ मानता है तथा चाहता है कि लोग उसी का अनुसरण करें; यथाशक्ति दूसरों से अपने धर्म को श्रेष्ठतर समझते हुए वह चाहता है कि सभी लोग उसे अपनाएँ। इसके लिए वह जोर-जबर्दस्ती को भी बुरा नहीं समझता। धर्म के नाम पर होने वाले जातिगत विद्वेष, मारकाट और हिंसा के पीछे मनुष्य की यही स्वार्थ-भावना काम करती है।

‘उत्तम’ का विलोम है–

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117. Solution

मनुष्य – जातिवाचक संज्ञा  मनुष्य शब्द पूरी जाति का बोध कराता है इसलिए यह जातिवाचक संज्ञा है।
मनुष्य की भाववाचक संज्ञा मनुष्यता है।
जिन संज्ञाओं में एक जाति के अन्तर्गत आने वाले सभी व्यक्तियों, वस्तुओं, स्थानों के नामों का बोध होता है, जातिवाचक संज्ञा कहलाती है;
​​​​​​​ जैसे– मनुष्यों की जाति– छात्र, छात्रा, लड़का, लड़की, बालक, बालिका, औरत, स्त्री, महिला, पुरुष, आदमी इत्यादि।

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118. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
सुखी सफल और उत्तम जीवन जीने के लिए किए गए आचरण और प्रयत्नों का नाम ही धर्म है। देश, काल और सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से संसार में भारी विविधता है, अतएव अपने-अपने ढंग से जीवन को पूर्णता की ओर ले जाने वाले विविध धर्मों के बीच भी ऊपर से विविधता दिखाई देती है। आदमी का स्वभाव है कि वह अपने विचारों और जीने के तौर तरीकों को तथा अपनी भाषा और खानपान को सर्वश्रेष्ठ मानता है तथा चाहता है कि लोग उसी का अनुसरण करें; यथाशक्ति दूसरों से अपने धर्म को श्रेष्ठतर समझते हुए वह चाहता है कि सभी लोग उसे अपनाएँ। इसके लिए वह जोर-जबर्दस्ती को भी बुरा नहीं समझता। धर्म के नाम पर होने वाले जातिगत विद्वेष, मारकाट और हिंसा के पीछे मनुष्य की यही स्वार्थ-भावना काम करती है।

‘मनुष्य’ शब्द में संज्ञा का प्रकार है–

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119. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
सुखी सफल और उत्तम जीवन जीने के लिए किए गए आचरण और प्रयत्नों का नाम ही धर्म है। देश, काल और सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से संसार में भारी विविधता है, अतएव अपने-अपने ढंग से जीवन को पूर्णता की ओर ले जाने वाले विविध धर्मों के बीच भी ऊपर से विविधता दिखाई देती है। आदमी का स्वभाव है कि वह अपने विचारों और जीने के तौर तरीकों को तथा अपनी भाषा और खानपान को सर्वश्रेष्ठ मानता है तथा चाहता है कि लोग उसी का अनुसरण करें; यथाशक्ति दूसरों से अपने धर्म को श्रेष्ठतर समझते हुए वह चाहता है कि सभी लोग उसे अपनाएँ। इसके लिए वह जोर-जबर्दस्ती को भी बुरा नहीं समझता। धर्म के नाम पर होने वाले जातिगत विद्वेष, मारकाट और हिंसा के पीछे मनुष्य की यही स्वार्थ-भावना काम करती है।

‘यथाशक्ति’ शब्द में समास का प्रकार है–

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120. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
सुखी सफल और उत्तम जीवन जीने के लिए किए गए आचरण और प्रयत्नों का नाम ही धर्म है। देश, काल और सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से संसार में भारी विविधता है, अतएव अपने-अपने ढंग से जीवन को पूर्णता की ओर ले जाने वाले विविध धर्मों के बीच भी ऊपर से विविधता दिखाई देती है। आदमी का स्वभाव है कि वह अपने विचारों और जीने के तौर तरीकों को तथा अपनी भाषा और खानपान को सर्वश्रेष्ठ मानता है तथा चाहता है कि लोग उसी का अनुसरण करें; यथाशक्ति दूसरों से अपने धर्म को श्रेष्ठतर समझते हुए वह चाहता है कि सभी लोग उसे अपनाएँ। इसके लिए वह जोर-जबर्दस्ती को भी बुरा नहीं समझता। धर्म के नाम पर होने वाले जातिगत विद्वेष, मारकाट और हिंसा के पीछे मनुष्य की यही स्वार्थ-भावना काम करती है।

‘सामाजिक’ शब्द में मूल शब्द व प्रत्यय है–

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121. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
इस भूमि, भूमि पर बसने वाला जन और उसकी संस्कृति– इन तीनों के सम्मिलित रूप से राष्ट्र का स्वरूप बनता है। भूमि के मौखिक रूप और समृद्धि के प्रति सचेत होना हमारा कर्तव्य है। जो राष्ट्रीयता पृथ्वी के साथ जुड़ी नहीं होती, वह निर्मूल होती है। धरती माता की कोख में जो अमूल्य निधियाँ भरी पड़ी है, उन्हीं के कारण वह वसुंधरा कहलाती है। मातृभूमि पर निवास करने वाले मनुष्य राष्ट्र का दूसरा अंग है। उनके कारण ही पृथ्वी मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है। पृथ्वी माता है और जन सच्चे अर्थों में पृथ्वी का पुत्र है। यहाँ यह भाव नहीं है, वहाँ जन और भूमि का संबंध अचेतन और जड़ बना रहता है। माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती है। इस प्रकार पृथ्वी पर बसने वाले सभी जन बराबर है। उनमें ऊँच और नीच का भाव नहीं है। ये जन अनेक प्रकार की भाषा बोलने वाले और अनेक धर्मों को मानने वाले हैं, फिर भी ये मातृभूमि के पुत्र है।

‘उन्हीं के कारण पृथ्वी मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है।’ वाक्य में कौन-सा काल है?

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