REET संस्कृतपाठ्यपुस्तकानि,परीक्षा (मौखिक लिखित),मूल्यांकनम् | REET 2025 | संस्कृत | महत्वपूर्ण प्रश्न by RPSC | December 25, 2024 Facebook फ्री टेस्ट , नोट्स और अपडेट के लिए Join करे 👇👇 Join WhatsApp Join Now Join Telegram Join Now Report a question What’s wrong with this question? You cannot submit an empty report. Please add some details. /10 34 12345678910 संस्कृतपाठ्यपुस्तकानि,परीक्षा (मौखिक लिखित),मूल्यांकनम् | REET 2025 | संस्कृत | महत्वपूर्ण प्रश्न 🔴महत्वपूर्ण निर्देश 🔴 ✅ टेस्ट शुरू करने से पहले कृपया सही जानकारी भरे | ✅ सभी प्रश्नों को आराम से पढ़कर उत्तर दे | ✅सभी प्रश्नों का उत्तर टेस्ट पूर्ण करने पर दिखाई देगा | ✅ टेस्ट पूर्ण करने पर सभी प्रश्नों के उत्तर विस्तार से समझाया गया है | Name 1 / 10 1. अनेक प्रश्नेषु एकात्त्मक सटीक उत्तरस्य चयनं कुत्र क्रियते? निबन्धात्मक परीक्षायाम् लघुत्तरात्मक परीक्षायाम् वस्तुनिष्ठपरीक्षायाम् अन्त्याक्षरी परीक्षायाम् Solution ● वस्तुनिष्ठ परीक्षा में बहुविकल्पी प्रश्न होते हैं जिनमें से एक सही विकल्प का चयन करना होता है। ● निबन्धात्मक परीक्षा में दो या तीन पृष्ठों में प्रश्नों का उत्तर देना होता है। इसमें विचार, चिंतन व विवेकपूर्ण अभिव्यक्ति दी जाती है। ● अन्त्याक्षरी परीक्षा में कोई श्लोक बोला जाता है तथा उसमें अन्तिम अक्षर से अन्य व्यक्ति दूसरा श्लोक बोलता है। इसी प्रकार क्रम चलता रहता है। 2 / 10 2. छात्रस्य ज्ञानात्मकक्षेत्रस्य परीक्षणं कथं क्रियते? दर्शनेन परीक्षया मूल्यांकनेन भाषणेन Solution ● छात्रों के ज्ञानात्मक क्षेत्र का परीक्षण परीक्षा द्वारा किया जाता है। जबकि मूल्यांकन छात्र के ज्ञानात्मक, भावात्मक क्रियात्मक क्षेत्र को जाँचने वाली सतत् प्रक्रिया है। 3 / 10 3. मूल्यांङ्कनस्य कति भेदा: सन्ति? एकम् द्वौ चत्वार: चञ्च Solution मूल्यांकन के दो भेद है – ● 1. आंतरिक मूल्यांकन – आंतरिक मूल्यांकन के लिए मूूल्यांकन की सभी प्रविधियों को अपनाया जाता है। इसमें सत्रपर्यन्त दैनिक गतिविधियों का मूल्यांकन होता है। इसमें गृहकार्य, रचनात्मकता, साहित्यिक गतिविधियाँ तथा सृजनात्मकता पक्ष शामिल है। ● 2. बाह्य मूल्यांकन – यह लिखित परीक्षा के माध्यम से विश्वविद्यालय या बोर्ड के माध्यम से होता है। इसमें प्रश्नपत्रों का निर्माण होता है। 4 / 10 4. निबन्धात्मक ज्ञानस्य स्वरूपं कीदृशं भवति? प्रौढ एवं अति विस्तृतम् विषयानुरूपं अपेक्षानुकूल विस्तृतम् निबन्ध लेखनं अनुवादय: Solution ● निबन्धात्मक ज्ञान का स्वरूप विषयानुरूप, अपेक्षानुकूल, विस्तृत होता है। 5 / 10 5. छात्राणां सुलेख: लेखनशैली अभिव्यक्ति: च कै: प्रश्नै: परीक्ष्यन्ते? वस्तुनिष्ठप्रश्ने: निबन्धात्मक प्रश्नै: लघुत्तरात्मक प्रश्नै: अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नै: Solution निबन्धात्मक प्रश्न:- ● इन प्रश्नों के द्वारा छात्रों की अभिव्यक्ति सुलेख क्षमता, लेखन शैली तथा लिखित अभिव्यक्ति का परीक्षण निबन्धात्मक परीक्षा द्वारा होता है। ● इन प्रश्नों में निबन्ध, तुलना, व्याख्या इत्यादि से सम्बन्धित विषय समाहित होता है। ● छात्रों की चिन्तन शैली तथा अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ मूल्यांकन निबन्धात्मक प्रश्नों के द्वारा होता है। ● ये प्रश्न निबन्धात्मक (विस्तृत उत्तर), लघुत्तरात्मक (दो से पाँच पंक्ति) अतिलघूत्तरात्मक (2-3 शब्द या 1 पंक्ति) में हो सकते है। ● निबन्धात्मक प्रश्नों में कर्तृनिष्ठता होती है। अत: मूल्यांकन के स्तर पर विविधता हो सकती है। 6 / 10 6. मौखिक परीक्षाया: प्रकाराणि सन्ति? श्लाकापरीक्षा शास्त्रार्थम् भाषणम् सर्वाणि Solution मौखिक परीक्षा के भेद:- शलाका/लघुकाष्ठ खण्ड परीक्षण ● पुस्तक में कई पर भी शलाका डालकर उस पृष्ठ से प्रश्न समस्याओं तथा भावों को पूछा जाता है। ● यह परीक्षा छात्रों को स्वाध्याय, विषय पर अधिकार व चिन्तन के लिए प्रेरित करती है। ● उस विधि से छात्र की कल्पना शक्ति का विकास होता है। शास्त्रार्थ:- किसी विषय या समस्या पर तर्क-वितर्क करके अन्तिम निर्णय के रूप में परीक्षा शास्त्रार्थ कहलाती है। भाषण:- भाषण या निर्धारित अंशों का पठन या पत्र वाचन। 7 / 10 7. पाठ्यपुस्तकस्य प्रारम्भाय छात्राणां पूर्वज्ञानस्याधारिता: प्रश्ना: कथ्यन्ते- प्रस्तावनात्मकप्रश्ना: आवृत्यात्मकप्रश्ना: निदानात्मकप्रश्ना: बोधात्मकप्रश्ना: Solution ● पाठ्यपुस्तक के प्रारम्भ में छात्रों को प्रस्तावना प्रश्न में पूर्वज्ञान पर आधारित प्रश्न किए जाते हैं। प्रस्तावना प्रश्न – ● ये प्रश्न पूर्वज्ञान पर आधारित होते हैं। ● ये प्रश्न 4 या 5 हो सकते हैं। ● अन्तिम प्रश्न समस्यात्मक होना चाहिए। ● अन्तिम समस्यात्मक प्रश्न के माध्यम से ही उद्देश्य कथन होना चाहिए। 8 / 10 8. योजनाया: अभावे शिक्षणकार्यं भवति। रोचकं उद्देश्यहीनं परं रोचकम् अरोचकमुद्देश्यहीनम् अरोचकं शीघ्रतम् च Solution ● योजना के अभाव में शिक्षण कार्य अरोचक व उद्देश्यहीन होता है। ● यदि किसी कार्य को पूरा करने के लिए कोई उचित योजना नहीं बनाई जाती, तो वह कार्य सही ढंग से संपन्न नहीं हो सकता। विशेष रूप से शिक्षण कार्य में भी योजना का होना अत्यंत आवश्यक है, ताकि शिक्षा का वितरण प्रभावी और सुचारू रूप से हो सके। 9 / 10 9. पुस्तकविधौ आधारितोऽस्ति – सरलात् मिश्रितं वाक्यानि प्रति। सरलात् कठिनं वाक्यानि प्रति। कठिनात् सरलं वाक्यानि प्रति। कठिनात् कठिनं वाक्यानि प्रति। Solution ● पुस्तक विधि सरल से कठिन की ओर शिक्षण सूत्र पर आधारित है। सरलात् कठिनं प्रति (सरल से कठिन की ओर) – किसी भी विषय को प्रारम्भ करने से पहले छात्रों द्वारा ज्ञात विषयों को पढ़ा कर कठिन पाठ पढ़ाने चाहिए। क्योंकि ज्ञात विषय सरल और अज्ञात विषय कठिन होता है। इस प्रकार इस शिक्षण सूत्र में ज्ञातदज्ञातं प्रति सूत्र का प्रयोग होता है। जैसे -संधि पढ़ाते समय दीर्घ संधि का अध्ययन करवाकर अन्य संधियों का अध्यापन करवाना चाहिए। 10 / 10 10. पाठ्यपुस्तकस्यस्थानं शिक्षणेमहत्वपूर्णं विद्यते? बालकानां ज्ञानस्य सीमायां विस्ताराय। व्यावहारिक ज्ञानस्य सम्पादनाय। छात्रेषु स्वाध्यायं प्रति रूच्युत्पादनाय। उपर्युक्तानां सर्वेषाम् उद्देश्यानां सम्पादनाय। Solution ● पाठ्यपुस्तक के उद्देश्य – 1. बालकों के ज्ञान की सीमा का विस्तार करना। 2. व्यावहारिक ज्ञान का सम्पादन। 3. छात्रों में कल्पना शक्ति का विकास करना। 4. सृजनात्मक शक्ति का विकास करना। 5. शब्दभण्डार में वृद्धि करना। 6. छात्रों में स्वाध्याय की भावना का विकास करना। Your score is 0% पुनः प्रारम्भ करे आपको यह क्विज कैसी लगी ….रेटिंग दे | धन्यवाद 😍 👇👇 Send feedback फ्री टेस्ट , नोट्स और अपडेट के लिए Join करे 👇👇 Join WhatsApp Join Now Join Telegram Join Now