REET अव्यय प्रकरण, कारक प्रकरण | REET 2025 | संस्कृत | महत्वपूर्ण प्रश्न by RPSC | December 22, 2024 Facebook फ्री टेस्ट , नोट्स और अपडेट के लिए Join करे 👇👇 Join WhatsApp Join Now Join Telegram Join Now Report a question What’s wrong with this question? You cannot submit an empty report. Please add some details. /10 24 12345678910 अव्यय प्रकरण, कारक प्रकरण | REET 2025 | संस्कृत | महत्वपूर्ण प्रश्न 🔴महत्वपूर्ण निर्देश 🔴 ✅ टेस्ट शुरू करने से पहले कृपया सही जानकारी भरे | ✅ सभी प्रश्नों को आराम से पढ़कर उत्तर दे | ✅सभी प्रश्नों का उत्तर टेस्ट पूर्ण करने पर दिखाई देगा | ✅ टेस्ट पूर्ण करने पर सभी प्रश्नों के उत्तर विस्तार से समझाया गया है | Name 1 / 10 1. ‘अहमिच्छामि यत् त्वं सर्वदा चात्रेव तिष्ठ’ वाक्येऽस्मिन् कति अव्ययपदानि? 1 2 3 4 Solution ●‘अहमिच्छामि यत् त्वं सर्वदा चात्रेव तिष्ठ’ इस वाक्य में सर्वदा (हमेशा), च (और), अत्र (यहाँ) एव (ही) इन चार अव्यय पदों का प्रयोग हुआ है। 2 / 10 2. व्यावहारेण जायन्ते मित्राणि रिपव:….। रिक्तस्थाने अव्ययस्य शुद्धरूपं भविष्यति। यथा यदा तथा खलु Solution ●व्यावहारेण जायन्ते मित्राणि रिपव: तथा। व्यवहार से ही मित्र और शत्रु बनते है। यहाँ ‘तथा’ अव्यय का प्रयोग हुआ है। 3 / 10 3. वत्से लते! त्वमपि…जीव। उचितम् अव्ययस्य प्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थाने पूरयन्तु – खलु एव चिरम् ननु Solution ●वत्से लते! त्वमपि चिरं जीव। यहाँ चिरम् अव्यय का अर्थ है देर तक/बहुत समय तक। 4 / 10 4. ‘स: प्रात: उत्थाय, स्नात्वा च दिवा एव शेते’ वाक्येऽस्मिन् कति अव्ययपदानि? 4 5 6 7 Solution ●‘स: प्रात: उत्थाय स्नात्वा च दिवा एव शेते’ वाक्य में प्रात: (सुबह), उत्थाय (उठकर), स्नात्वा (स्नान करके), च (और), दिवा (दिन में), एव (ही) इन छ: अव्यय पदों का प्रयोग हुआ है। 5 / 10 5. मूर्खा: जना: प्राय:…वदन्ति। रिक्तस्थाने अव्ययस्य शुद्धरूपं भविष्यति। एव वृथा इव विना Solution ●मूर्खा: जना: प्राय: वृथा वदन्ति। यहाँ वृथा का अर्थ है व्यर्थ में। 6 / 10 6. सुमेलनं करुत – A. दा धातुयोगे 1 . षष्ठी B. अङ्गविकारे 2. पञ्चमी C. सम्बन्धे 3. चतुर्थी D. प्रमाद्यति धातु योगे 4. तृतीया कूट : A-1 , B-3, C-4, D-2 A-4, B-3, C-2, D-1 A-1 , B-4, C-3, D-2 A-3, B-4, C-1 , D-2 Solution दा धातु योगे – चतुर्थी विभक्तिअङ्गविकारे – तृतीया विभक्तिसम्बन्धे – षष्ठी विभक्तिप्रमाद्यति धातुयोगे – पञ्चमी विभक्ति 7 / 10 7. ‘स: भ्रमणं कुर्वन् चौरान् पश्यति।’ उदाहरणमस्ति – अकथितं च अभिनिविशश्च सम्बोधने च तथायुक्तं चानीप्सितम् Solution ‘तथायुक्तं चानीप्सितम्’ अर्थात् सर्वाधिक इष्ट कारक के साथ, यदि कोई अनीप्सित (अनचाहा) कारक हो, तो अनचाहे कारक की भी कर्मठता हो जाती है।यद्यपि कर्ता को क्रिया के द्वारा प्राप्त करने में वह कारक इष्ट नहीं होता, फिर भी उसकी कर्म संज्ञा हो जाती है।जैसे – स: भ्रमणं कुर्वन् चौरान् पश्यति।यहाँ भ्रमण के समय चौर (अनचाहे) को देखता है।यहाँ ‘भ्रमणं’ ईप्सिततम तथा ‘चौर’ अनीप्सितम् कर्म है। 8 / 10 8. हिमालयस्य गङ्गा प्रभवति। अत्र रेखाङ्किते शुद्धप्रयोग: स्यात् – हिमालय हिमालयाद् हिमालयम् हिमालयस्य Solution हिमालयस्य गङ्गा प्रभवति। प्रस्तुत वाक्य अशुद्ध है। ‘भुव: प्रभव:’ सूत्र से प्रभवति के योग में हिमालयस्य के स्थान पर हिमालयाद् होगा।अत: शुद्ध वाक्य है – हिमालयाद् गङ्गा प्रभवति। (हिमालय से गंगा निकलती है।)भुव: प्रभव: – प्रकाशित होने के अर्थ में नदी आदि जहाँ से निकलती है, उसकी सञ्ज्ञा (पञ्चमी विभक्ति) होती है। 9 / 10 9. ‘द्रोणो व्रीहि:’ इत्यत्र ‘द्रोण’ शब्दोत्तरप्रथमा विभक्ति: कस्मिन्नर्थे भवति? प्रातिपादिकार्थमात्रे लिङ्गमात्राधिक्ये परिमाणमात्राधिक्ये वचनमात्रे Solution वस्तु का परिमाण या माप – तोल बताने के लिए प्रथमा विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा – द्रोणो ब्रीहि – द्रोण भर चावल। सूत्र – ‘परिमाणमात्र’प्रथमा विभक्ति का प्रयोग निम्नलिखित जगहों पर होता है –प्रथमा विभक्ति. अलिङ्ग प्रातिपदिकार्थमात्र – उच्चै:, नीचै:2. नियतलिङ्गप्रातिपदिकार्थमात्र – कृष्ण:, श्री, ज्ञानम्3. अनियलिङ्गप्रातिपदिकार्थमात्र – तट:, तटी, तटम्4. परिमाणमात्र – द्रोणो ब्रीहि:5. वचनमात्र – एक:, द्वौ, बहव: 10 / 10 10. …..अन्तिकम् आश्रमोऽस्ति – रिक्तस्थाने उचित विभक्ति पदं स्यात् – वनात् वनस्य उभयो वनाय Solution वनात्/वनस्य वा अन्तिकम् आश्रमोऽस्ति। यहाँ दूरान्तिकार्थे षष्ठ्यन्तरस्याम् सूत्र से अन्तिक के योग में वन में पञ्चमी व षष्ठी दोनों विभक्तियों का प्रयोग हुआ है। Your score is 0% पुनः प्रारम्भ करे आपको यह क्विज कैसी लगी ….रेटिंग दे | धन्यवाद 😍 👇👇 Send feedback फ्री टेस्ट , नोट्स और अपडेट के लिए Join करे 👇👇 Join WhatsApp Join Now Join Telegram Join Now